भव्य पहाड़ों, विशाल किलों और आकर्षक महलों से घिरी, पिछोला झील किसी सपनों की दुनिया से कम नहीं लगती। झील की नीली सतह पर सूर्योदय की पहली किरण के गिरने का नज़ारा जादू-सा लगता है। और ढलते सूरज के साथ हरे-भरे पहाड़ों की परछाइयों का पानी पर पड़ना और साथ-साथ आसपास के रेस्तरां, होटलों और टिमटिमाते सितारों की रोशनी को लहरों पर तैरते देखना भी उतना ही सुंदर दिखाई देता है। उदयपुर के बीचोबीच मौजूद, पिछोला झील शहर की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी झीलों में से एक है। यह वर्ष 1362 में महाराणा लाखा के शासन के दौरान पिचू बजनारा द्वारा बनाई गई थी। कहानियां तो यह भी कहती हैं कि झील की सुंदरता ने महाराणा उदय सिंह को उसके किनारे एक शहर बनाने के लिए लुभाया था। महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने इसको विस्तार दिया। उन्होंने बैडिपोल क्षेत्र में झील पर एक पत्थर का बांध भी बनवाया। आज, झील 4 किमी लंबी और 3 किमी चौड़ी है।
झील पर चार द्वीप हैं: जग निवास, जहां आज होटल लेक पैलेस है, जग मंदिर, जहां इसी नाम का एक महल है, मोहन मंदिर, जहां से राजा हर साल होने वाले गणगौर उत्सव समारोह का आनंद लेते थे और अरसी विलास, एक छोटा-सा द्वीप है, जिसमें एक छोटा महल और एक गोला-बारूद का भंडार था। बताया जाता है कि इसे उदयपुर के एक राजा ने झील पर सूर्यास्त का आनंद लेने के लिए बनाया था। यहां एक अभयारण्य भी है, जहां पर तरह-तरह के पक्षी जैसे एग्रेट्स, कॉर्मोरेंट, कूट, टफ्टेठ बतख, टर्न और किंगफ़िशर देखे जा सकते हैं। कई जगहों पर झील के किनारों को जोड़ने के लिए सुंदर गोलाकार पुल बनाए गए थे। आज इस झील के पूर्वी किनारे पर शानदार सिटी पैलेस है, तो दूसरी ओर दक्षिणी किनारे पर मचला मगरी (मचाला मगरा) या मछली पहाड़ी है, जिस पर एकलिंगगढ़ किले के खंडहर मौजूद हैं।

झील पर की जाने वाली बोट राइड उदयपुर के सबसे बेहतरीन अनुभवों में से एक है। और शांत झील की सैर के दौरान, लेखक रूडयार्ड किपलिंग के इन शब्दों का सही अर्थ समझ आता है: "यदि विनीशियन के पास पिछोला झील होती, तो उसका ये कहना सही ही होता कि, 'मरने से पहले इसे ज़रुर देखना चाहिए'"!

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