इस शहर का रमण आश्रम सबसे शांत स्थानों में से एक है। यह स्थान 20वीं शताब्दी के दक्षिण भारतीय ऋषि, रमण महर्षि के दिव्य धर्मोपदेशों और सहज ध्यान पद्धति के लिए जाना जाता है। महर्षि के शिष्यों द्वारा निर्मित इस आश्रम में प्रति वर्ष हजारों भक्त आते हैं। आश्रम के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही आप ऊंचे पेड़ों से घिरे एक बड़े खुले आंगन में पहुंच जाते हैं। यहां एक 400 साल पुराना इलुप्पाई का वृक्ष है। इसके ठीक बगल में पारंपरिक द्रविड़ शैली में निर्मित दो भव्य टॉवर हैं। पहला टॉवर रमण महर्षि की माता की समाधि, मातृभूतेश्वर के तीर्थ स्थल पर स्थित है, वहीं दूसरा टॉवर न्यू हॉल के ऊपर है। इस हॉल में रमण महर्षि की एक आदमकद प्रतिमा और एक बड़ी सी शय्या या योगासन है, जिसमें एकाश्म काले संगमरमर के पत्थर से नक्काशी की गई है। हॉल रोजाना सुबह 5 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक और दोपहर 2 से रात 9 बजे तक खुला रहता है। आगंतुक न्यू हॉल के पूर्व में स्थित छोटे निर्वाण कमरे में भी जा सकते हैं। यह वह कमरा है जिसमें रमण महर्षि ने अपने अंतिम दिन बिताए थे। अध्यात्म पर विशाल पुस्तकों के संग्रह को देखने और आनंद लेने के लिए आश्रम परिसर के रमण पुस्तकालय में रुकें। सैलानी, पालि तीर्थन टैंक के समीप, पालाकट्टू वन क्षेत्र में स्थित, नव निर्मित अतिथि कक्ष और कॉटेज में भी ठहर सकते हैं। यहां महर्षि रमण लंबे सैर पर जाया करते थे।

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