थिरुवयारु

 कावेरी नदी के तट पर बसा यह शहर तंजावुर के बाहरी इलाके में स्थित है। यहां का मुख्य आकर्षण पंचनाथेश्वर मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। हरे-भरे धान के खेतों और पेड़ों से घिरे होने के करण इस मंदिर का वातावरण बहुत ही शांत है। ऐसा माना जाता है कि भक्तगण यहां आकर अगर कावेरी नदी में डुबकी लगाएं तो सारे पापों से छुटकारा पाया जा सकता है। यहां का एक अन्य आकर्षण थिरुवयारु मंदिर है, जो सप्त सतनाम नामक सात मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव के वाहन नंदी (बैल देवता) की शादी से जुड़ा हुआ है।  

 थिरुवयारु को उस स्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है, जहां कर्नाटक संगीत के संगीतकार और संगीत त्रिमूर्ति के सदस्य, संत त्यागराज रहते थे और यहीं उन्होंने समाधि ली थी। मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय संत त्यागराज के जन्मदिन का उपलक्ष्य है, जिसमें हर जनवरी के दौरान एक संगीत समारोह आयोजित किया जाता है।   

 थिरुवयारु

तिरुवरुर

तिरुवरुर शहर को कर्नाटक संगीत के संगीतकार संत त्यागराज के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है, वे संगीत त्रिमूर्ति के सदस्यों में से एक थे। यहां का मुख्य आकर्षण त्यागराज स्वामी मंदिर है, जो कि दक्षिण भारत का सबसे बड़ा मंदिर है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर शिलालेखों और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। ये शिलालेख और मूर्तियां राजा मनु नीति चोलन की कहानी बताते हैं, जिसके अनुसार राजा मनु नीति ने अपने ही बेटे को रथ के पहियों के नीचे कुचलने का आदेशस जारी किया था। कहा जाता है कि उनके पुत्र ने लापरवाही के चलते एक बछड़े को रथ से कुचल कर मार दिया था। तब भगवान शिव ने इस पर हस्तक्षेप किया और राजा मनु के पुत्र को बचाया और बछड़े को भी पुनर्जीवित किया। मंदिर हर साल मार्च-अप्रैल के महीने में रथ महोत्सव का आयोजन करता है। यह उत्सव अत्यंत भव्य और विशाल उत्सव है, इसे अवश्य देखना चाहिए। मंदिर के समीप 25 एकड़ का एक कमलालयम टैंक है और सन् 1997 से राज्य पर्यटन विभाग यहां नौका विहार सेवाएं प्रदान कर रहा है। इसके अलावा यहां थिरुवेझिमलाई, थिरुप्पुरामम, तिरुमिचुर, श्रीवांज्यम, तिलिविलगाम और थिरुक्क्नमंगई जैसे कुछ अन्य मंदिर हैं, जो देखने लायक हैं।

 तिरुवरुर

श्वार्ट्ज चर्च

इस क्षेत्र के सबसे पुराने चर्चों में से एक, श्वार्ट्ज चर्च शहर का एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह चर्च अपनी नव-शास्त्रीय वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, तथा उस समय के प्रसिद्ध इटैलियन मूर्तिकार जॉन फ्लैक्समैन द्वारा बनाई गई मूर्तियां यहां रखी गई हैं। 1779 ई. में भोंसले वंश के अंतिम शासक राजा सेरफ़ोजी द्वितीय ने, अपने गुरू सीवी श्वार्ट्ज की निशानी के रूप में इस चर्च को बनवाया था। सीवी श्वार्ट्ज एक डेनिश प्रचारक थे। सीवी श्वार्ट्ज तमिल भाषा के विशेषज्ञ थे और उन्होंने मराठा राजा के बचपन में उन्हें शिक्षा भी दी थी। औपनिवेशिक युग में इस चर्च का प्रयोग ब्रिटिश सेना के लिए प्रार्थना कक्ष के रूप में किया जाता था। जब सीवी श्वार्ट्ज की मृत्यु हुई, तो राजा ने उनकी स्मृति में यहां एक प्रतिमा की स्थापना की और चर्च के वित्तीय खर्च को अपने अधिकार में ले लिया।

 श्वार्ट्ज चर्च

स्वामीमलाई

स्वामीमलाई मंदिर तंजावुर के करीब एक पहाड़ी पर स्थित है, जो भगवान मुरुगन को समर्पित है। यहां तक पहुंचने के लिए 60 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो 60 साल के हिंदू वर्षों के चक्र को दर्शाती हैं। कहा जाता है कि भगवान मुरुगन ने खुद एक बार इस स्थल पर आकर अपने पिता भगवान शिव की पूजा करने के लिए प्रणय मंत्र का अर्थ बताया था। स्वामीमलाई को भगवान मुरुगन के छह पवित्र निवास स्थानों में से एक माना जाता है। यह स्थान भगवान मुरुगन के पड़ई वीदुगल (युद्ध शिविर) के रूप में प्रसिद्ध है। पहाड़ी पर स्वामीमलाई मंदिर से थोड़ा नीचे स्थित भगवान शिव का भी एक मंदिर है। मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय अप्रैल में आयोजित 'टेम्पल कार फेस्टिवल' और मार्च के महीने में 'पंगुनी उथिरम' महोत्सव के दौरान होता है।

 स्वामीमलाई

दारासुरम

शहर के बाहरी इलाके में स्थित दारासुरम नगर एरावतेश्वर मंदिर के लिए जाना जाता है, जो कि यूनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व धरोहर है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में चोल वंश के महान शासक राजराज द्वितीय ने करवाया था। मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति के अलावा देवी पार्वती, मृत्यु के देवता यम, भगवान सुब्रमण्य और देवी सरस्वती की भी मूर्तियां हैं। यहां पर्यटकों को सप्तमातृकाएं और विभिन्न शैव भक्तों की मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं। मुख्य मंदिर के ठीक सामने अलंकार का मंडप है। स्तंभावली वाले इन मंडपों में किनारों पर चबूतरे हैं, और प्रत्येक चबूतरों में शैव परंपराओं में तराशे गए चित्र मौजूद है। मंडप के दक्षिणी छोर पर मंडप से जुड़े पत्थर के बड़े-बड़े पहिए और घोड़ों की मूर्तियां हैं, जिससे मंडप, रथ के रूप में दिखता है। 14वीं शताब्दी के दौरान, मंदिर की वास्तुशिल्प में ईंट-पत्थर का इस्तेमाल कर बदलाव किया गया, जो तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर में इस्तेमाल किए गए प्रारूप से मिलता-जुलता है।

 दारासुरम

मयिलादुथुराई

इतिहास में मइलादुथुरई का स्थान एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल के रूप में आता है। कावेरी नदी के तट पर स्थित इस शहर में अनेक मंदिर हैं, जिनमें से मयूर नाथ स्वामी मंदिर सबसे प्रमुख है। यह मंदिर मयूरनाथर के रूप में पूजे जाने वाले भगवान शिव को समर्पित है, इसके साथ एक दिलचस्प किंवदंती जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि देवी पार्वती को मोरनी बन जाने का श्राप मिला था, और वे इसी रूप में भगवान शिव की पूजा के लिए यहां आई थीं। तब से, इस शहर का नाम मयिलादुथुराई या 'मोर का शहर' पड़ गया। यहां आने वाले पर्यटक नवग्रहों को समर्पित पवित्र स्थलों की भी यात्रा कर सकते हैं। हिंदू ज्योतिष के अनुसार वे नौ ग्रह हैं, सूर्य, चंद्रमा, मंगल,बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु।

 मयिलादुथुराई

बृहदेश्वर मंदिर / पेरुवुदैयार कोविल मंदिर

बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण 1010 ई. में चोल वंश के महान राजा, राजराज प्रथम द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया है। बाद में, अतिरिक्त सुरक्षा के लिए इसकी बाहरी किलेबंदी नायक वंश द्वारा करवाई गई थी। तंजावुर के सबसे प्रमुख स्थल के रूप में, इस मंदिर को पेरुवुदैयार कोविल या 'बड़े मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर चोल वास्तुकला की एक जीती जागती मिसाल है, और इसका निर्माण उस समय की सबसे उन्नत तकनीकों द्वारा किया गया था। मंदिर में हज़ार साल पुराने कई ऐसे शिलालेख भी हैं, जो उस समय के शहर और उसके जीवन का विस्तृत विवरण देते हैं। मंदिर की ऊंचाई 212 फीट है, और यह मंदिर पूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के भीतर मौजूद 13 फीट ऊंचा शिवलिंग भारत के सबसे ऊंचे शिवलिंगों में से एक है। इस मंदिर का एक और मुख्य आकर्षण नंदी बैल की मूर्ति है, जो कि साढ़े 12 फीट ऊंची, आठ फीट लंबी और पांच फीट चौड़ी है। भूमि के रक्षक के रूप में, नंदी बैल मंदिर के द्वार पर खड़े हैं। सन् 2010 में बृहदेश्वर मंदिर के निर्माण के 1,000 वर्ष पूरे हो चुके हैं, जिसे बड़ी ही धूम-धाम से मनाया गया था। फरवरी में मनाया जाने वाला महा शिवरात्रि त्योहार, मंदिर का प्रमुख त्योहार है।

 बृहदेश्वर मंदिर / पेरुवुदैयार कोविल मंदिर