बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण 1010 ई. में चोल वंश के महान राजा, राजराज प्रथम द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया है। बाद में, अतिरिक्त सुरक्षा के लिए इसकी बाहरी किलेबंदी नायक वंश द्वारा करवाई गई थी। तंजावुर के सबसे प्रमुख स्थल के रूप में, इस मंदिर को पेरुवुदैयार कोविल या 'बड़े मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर चोल वास्तुकला की एक जीती जागती मिसाल है, और इसका निर्माण उस समय की सबसे उन्नत तकनीकों द्वारा किया गया था। मंदिर में हज़ार साल पुराने कई ऐसे शिलालेख भी हैं, जो उस समय के शहर और उसके जीवन का विस्तृत विवरण देते हैं। मंदिर की ऊंचाई 212 फीट है, और यह मंदिर पूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के भीतर मौजूद 13 फीट ऊंचा शिवलिंग भारत के सबसे ऊंचे शिवलिंगों में से एक है। इस मंदिर का एक और मुख्य आकर्षण नंदी बैल की मूर्ति है, जो कि साढ़े 12 फीट ऊंची, आठ फीट लंबी और पांच फीट चौड़ी है। भूमि के रक्षक के रूप में, नंदी बैल मंदिर के द्वार पर खड़े हैं। सन् 2010 में बृहदेश्वर मंदिर के निर्माण के 1,000 वर्ष पूरे हो चुके हैं, जिसे बड़ी ही धूम-धाम से मनाया गया था। फरवरी में मनाया जाने वाला महा शिवरात्रि त्योहार, मंदिर का प्रमुख त्योहार है।

अन्य आकर्षण