अपने सम्‍मोहक अस्थिर रेत के टीलों के लिए विख्‍यात, चुरु का छोटा शहर थार रेगिस्तान का प्रवेश द्वार है। दिलचस्‍प बात यह है कि 50-100 कमरों वाले सूक्ष्‍म भित्ति चित्रों से सुसज्जित भव्य हवेलियों वाले चुरु का कोई शाही इतिहास नहीं है। ये हवेलियां, क्षेत्र में रहने वाले अमीर और समृद्ध व्यापारियों का घर हुआ करती थीं। हवेलियों में सजी चित्रकारी या तो हवेली मालिक की जीवन शैली या उस समय के चलन का चित्रण करती है, जैसे कार या रेल की यात्रा। इसकी चित्रकला इतनी जीवंत है कि अतीत आपको दरवाजे़ पर दस्तक दे रहा है। ऐसा लगता है कि यह चित्र कल ही बनाये गये हैं। हवेलियों के दरवाजे़ भी सूक्ष्‍म रूप से डिज़ाइन किये गये हैं और उन्हें निहारने में एक पूरा दिन व्यतीत हो सकता है; कोई भी दो दरवाजे़ एक-सरीखे नहीं हैं। चुरु एक सुंदर नज़ारा पेश करता है, जहां एक तरफ सूर्यास्त के आकाश के रंगों की छटा है, और दूसरी ओर चांद पानी से बाहर झांकता है।

राजपूतों के निरबन कबीले द्वारा 1620 ई. में स्थापित चुरु, पाली को अंबाला से जोड़ता है। यह, अपने देवताओं की संगमरमर की मूर्तियों की पूजा करने वाले साधुओं के नाथ संप्रदाय की एक धार्मिक पीठ भी है। यहां के अन्य दर्शनीय स्थलों में 400 साल पुराना एक किला भी शामिल है, जो शहर के बीचों-बीच स्थित है। देखने के लिए इस इलाके का एक और उल्‍लेखनीय स्थान, 'मन्त्री हवेली' है। चुरु छत्रियों (ऊंचे गुंबद के आकार के मंडपों) के लिए भी प्रसिद्ध है। बड़ी संख्या में हाथ की कढ़ाई करने वाली महिलाओं के चलते, क्षेत्र की संस्कृति को दर्शाने वाले हस्तनिर्मित उत्पाद यहां ढेरों मिलते हैं। आज़ादी से पहले, शेखावटी बीकानेर का एक हिस्सा था और यहां सालासर बालाजी और बाबोसा महाराज के सुंदर मंदिर हैं।

अन्य आकर्षण