पत्थरों से निर्मित सांची स्तूप, शांति और आध्यात्मिकता का खजाना है। यह हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। बौद्ध सर्किट में यह एक प्रमुख स्थल है। सांची स्तूप और अशोक स्तंभ बौद्ध स्मारकों की एक समृद्ध विरासत का जीता जागता उदाहरण यहां देखने को मिलता है। इन इमारतों को देखकर आप स्वतः समय के उस कालखंड में चले जाते हैं, मानो भगवा वस्त्र में बौद्ध भिक्षु संभवतः "बुद्धम् शरणम् गच्छामि" का जाप करते हुए सांची की इमारतों को जीवंत कर रहे हों। सांची की शांत सुंदरता, मौर्य सम्राट अशोक की शक्ति का एक नमूना है।

अपने उद्देश्य को शब्दशः जीती, सांची शांत रहकर बड़ी धैर्य के साथ साम्राज्यों को उगते और डूबते देखा है। इन्ही वजहों से सांची ने चुपचाप इतिहास और पौराणिक कथाओं में अपनी जगह बना ली है। स्मारकों की जटिल नक्काशियां भगवान बुद्ध के उपदेशों को जीवन्त कर देती हैं।

ऐसा कहा जाता है कि अशोक ने लंबे युद्ध के बाद एकाएक हिंसक योद्धा से एक उदार और परोपकारी शासक बन गए थे। माना जाता है कि यह हृदय परिवर्तन कलिंग की उस वीभत्स लड़ाई का परिणाम था जिसमें लाखों लोग मारे गए थे। ऐसा कहा जाता है कि इतने बड़े खून-खराबे से यह सम्राट अपराध बोध से भर गया था। इस अनुभव ने अशोक को पूरी तरह बदलकर रख दिया था और उसने बौद्ध अवशेषों का संरक्षण और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कई स्तूपों के निर्माण का आदेश दिया। उनका दृढ़ विश्वास था कि कि बौद्ध धर्म में विश्व को सकारात्मक दिशा की संभावनाएं हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस पहाड़ी पर यह महान स्तूप खड़ा है उसने अशोक को इसे धार्मिक केंद्र के रूप में चुनने और स्थापित करने के लिए प्रेरित किया होगा। सांची की प्राचीनतम बौद्ध वास्तुकला को ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के शुरुआती मौर्य काल का माना जाता है और इसमें कुछ नव निर्माण बारहवी शताब्दी में किए गए। शुंग वंश ने भी स्तूपों की इस परम्परा को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दिया। इस काल में कई नई इमारतों का निर्माण हुआ और महान स्तूपों को जंगलों, सीढ़ियों और हार्मिकों से सजाया गया था। आंध्र-सातवाहन वंश ने ईसा पूर्व पहली शताब्दी में स्तूप में प्रवेश के लिए एक भव्य द्वार बनवाया। गुप्त काल में मंदिर और मूर्तियां अपनी विशिष्ट शैली में बनने लगीं। इसी काल में भगवान बुद्ध की चार बैठी हुई प्रतिमाएं महान स्तूप के चारों प्रवेश द्वारों के सामने छत्र के नीचे बनाई गई थी। सांची सातवीं और बारहवीं शताब्दी ईस्वी के बीच काफी समृद्ध हुई।

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