सूर्य या सूर्य देव को समर्पित विशाल और भव्य सूर्य मंदिर कोणार्क (कोण अर्क- सूर्य के अर्क से बना कोण), जो उनके रथ के आकार में डिज़ाइन किया गया है, प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प विरासत के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल, इस लुभावनी शानदार मंदिर का वर्णन, नोबेल परस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने कभी इस प्रकार किया था, "जहां पत्थर की भाषा, मनुष्य की भाषा को मात देती है"। पुरी से लगभग 30 किमी दूरी पर स्थित यह मंदिर समुद्र की गहराई से निकलता हुआ प्रतीत होता है, जो बंगाल की खाड़ी के तट से सिर्फ 2 किमी दूरी पर है। 13 वीं शताब्दी में गंगा राजा नरसिम्हदेव प्रथम द्वारा निर्मित, अद्भुत मूर्तिकला बारीकियों वाला यह मंदिर, कलिंग वास्तुकला के सबसे विकसित काल का एक उत्कृष्ट प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि उगते सूरज की पहली किरणें देउल (गर्भगृह) और मुख्य अराध्य देव को प्रकाशित करेंगी। यह मंदिर, 24 जटिल नक्काशी किये गये पहियों, जिसके दोनो तरफ बारह बारह पहिये हैं, के बल पर खड़ा है। 24 पहियों में से चार का उपयोग सूर्यघड़ी के रूप में, समय देखने के लिए किया जा सकता है!

विशेषज्ञों के अनुसार, इस मंदिर का उपयोग पूजा के लिये बहुत कम अवधि के लिए किया गया था, और 17 वीं शताब्दी में, मुख्य देवता को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ले जाया गया। मंदिर का मुख्य द्वार, गजसिम्हा (गज का अर्थ हाथी और सिहम् का अर्थ सिंह है) का नाम पत्थर के दो बड़े शेरों द्वारा हाथियों को कुचले जाने के चलते पड़ा है। यह द्वार, बारीक नक्काशी किये नाट्य मंडप (नृत्य कक्ष) की ओर ले जाता है। एक चौड़ी सीड़ी, जिसके दोनो ओर दौड़ते घोड़ों की मूर्तियां हैं, जगमोहन सभा गृह की ओर जाती है। यद्यपि इन मूर्तियों को पत्थर से तराश कर बनाया गया है, लेकिन इन घोड़ों के उभरे स्नायू और दवाव से खिंचे बागडोर इन्हें जीवन्त रूप देते है। मंदिर में तीन अनुकूल स्थानों पर, सूर्य देव की प्रभावशाली नक्काशी है, ताकि सुबह, दोपहर और सूर्यास्त के समयों पर, सूर्य की किरणे उन पर पड़े। मंदिर के आधार स्थल पर और इसकी दीवारों पर की गई नक्काशियां, रोज़मर्रा की गतिविधियों को दर्शाता है। यद्यपि कोणार्क मंदिर अद्वितीय है, पर देश में कई अन्य स्थानों पर भी रथ-मंदिर हैं, जैसे कर्नाटक में हम्पी, तमिलनाडु में महाबलिपुरम आदि। हर साल लाखों लोग कोणार्क के सूर्य मंदिर देखने आते हैं, और यहां आयोजित होने वाला वार्षिक कोणार्क महोत्सव, अपने सांस्कृतिक महत्व के लिए अति प्रसिद्ध है।

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