गांधी सेतु

लगभग 5ए750 मीटर लंबा महात्मा गांधी सेतु को गंगा सेतु के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा पुल है। पटना से हाजीपुर को जोड़ने वाला यह पुल गंगा नदी पर बना है। इस पुल की लंबाई लगभग 5ए750 मीटर ;या 18ए860 फिटद्ध है। इस पुल का उद्घाटन मई 1982 में इंदिरा गांधी ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में किया था। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि आज इस पुल का 12ए000 पैदल यात्रियों के साथ 85ए000 से अधिक वाहन रोजाना उपयोग करते हैं। यह पुल राज्य के लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैए जिससे वह लंबी दूरी कुछ ही मिनटों में तय कर लेते है। इसमें 45 स्तंभ हैं जो 121 मीटर ऊंचाई पर बने इस पुल को सहारा देते हैं। इतनी ऊंचाई पर बने होने के कारणय इसके नीचे से जहाज़ आराम से निकल सकते हैं।

गांधी सेतु

शहीद स्मारक

शहीद स्मारक का निर्माण सात युवा स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में किया गया थाए जिन्होंने वर्ष 1942 में भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के श्भारत छोड़ो आंदोलनश् के दौरान अपना जीवन त्याग दिया था। यह संरचना काफी आधुनिक है जो शहर के मध्य में पटना सचिवालय के सामने स्थित है। सात बहादुरों की यह मूर्ति उस जगह की और संकेत करती है जहां इन स्वतंत्रता सेनानियों को सभा भवन के ऊपर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने का प्रयास करते समय गोली मार दी गई थी।

महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने वाले डॉण् अनुग्रह नारायण को पटना में तिरंगा फहराने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया था। उनकी गिरफ्तारी की प्रतिक्रिया में सात छात्रों ने अपने दम पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का प्रयास कियाए लेकिन अफसोस अंग्रेजों ने उन्हें मार डाला। स्वतंत्रता सेनानियों के नामए स्मारक पर अंकित हैं। ब्रिटिश सैनिकों की गोलियों से शिकार होने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का नाम उमाकांत प्रसाद सिन्हा ;रमन जीद्धए रामानंद सिंहए सतीश प्रसाद झाए जगतपति कुमारए देवीपाड़ा चौधरीए राजेंद्र सिंह और रामगोविंद सिंह था। ऐसा कहा जाता है कि उस समय ब्रिटिश सैनिकों ने अंधाधुंध गोलीबारी नहीं की बल्कि उन्होंने केवल उस व्यक्ति पर गोली चलाई जो ध्वज के साथ चल रहा था। लेकिन जैसे एक बहादुर छात्र गोली लगने के कारण गिरताए दूसरा छात्र भागकर उसकी जगह ले लेता था। अंत में वहां सात मृत छात्र और लगभग 14 घायल हुए लोग थे। शहीद स्मारक की आधार शिला 15 अगस्तए 1947 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल श्री जयरामदास दौलतराम द्वारा रखी गई थी। धोती.कुर्ता और गांधी की टोपी में सात छात्रों की मूर्तियां कांस्य धातु से बनाई गई हैं। उनमें से एक छात्र झंडा पकड़े खड़ा है जबकि बाकी छात्र या तो घायल होकर गिर चुके हैं या गिरने वाले हैं।

शहीद स्मारक

सदाकत आश्रम

सदाकत आश्रम हवाई अड्डे से लगभग 7 किमी दूर गंगा नदी के तट परए दीघा नाम के एक शांतिपूर्ण क्षेत्र में मुख्य सड़क के किनारे स्थित है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉण् राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1962 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद यहीं निवास किया था। उनके जीवन के अंतिम दिन इसी आश्रम के शांत वातावरण में बीते थे। यहां आज उनकी स्मृति में राजेंद्र स्मृति संग्रहालय नामक एक छोटा सा संग्रहालय हैए जो उनके व्यक्तिगत सामानों के साथ.साथ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उपयोग की जाने वाली कई वस्तुओं को प्रदर्शित करता है। इसके अलावा इस संग्रहालय में कई भव्य पेंटिंग भी लगी हुई है। यह आश्रम वर्ष 1921 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित किया गया था। यह आश्रम 20 एकड़ के हरे.भरे क्षेत्र में फैला हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि यह क्षेत्र खैरूण मियां द्वारा दान में दिया गया था। खैरूण मियांए गांधीजी के निकट सहयोगी मौलाना मजहरुल के गहरे मित्र थे। खैरूण मियां ने इस जमीन का दान राष्ट्रीय आंदोलन को आगे बढ़ाने और स्वतंत्रता सेनानियों की कई महत्वपूर्ण बैठकें यहां आयोजित करने के लिए दिया था। इस परिसर में आज भी मौलाना मजहरुल हक पुस्तकालय भी हैए जिसमें पुस्तकों के अच्छे संग्रह के साथ एक वाचनालय ;रीडिंग रूमद्ध भी है। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी ये सुविधाएं बरकरार हैं।

सदाकत आश्रम

श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र

श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद का एक हिस्सा है। यह देश का पहला और इसके साथ.साथ यह बिहार का एकमात्र क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र है। इसे वर्ष 1978 में स्थापित किया गया था और इसका नाम बिहार के पहले मुख्यमंत्री के नाम पर रखा गया। यह स्थापना के बाद से ही गैर.औपचारिक साधनों से ष्सभी के लिए विज्ञान शिक्षाष् के विचार को बढ़ावा दे रहा है। यह गांधी मैदान के दक्षिण.पूर्व में एक शांत गली में स्थित है। इसके बगल में एक सुंदर उद्यान हैए जो विज्ञान के कुछ सिद्धांतों को प्रदर्शित करने के लिए बनाया गया है। इसके द्वार पर एक बड़ा और रंगीन प्रर्दशन पटल हैए जिसमें घूमती पवन चक्की का नमूना दिखाया गया है और डायनासोर के आवाज की प्रतिध्वनि ;इकोद्ध भी सुनने को मिलती है। इसके प्रवेश द्वार पर सूर्य घड़ी मौजूद है जिसमें सूर्य की स्थिति के आधार पर समय देखा जा सकता है। श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र तीन मंजिला भवन हैय जिसकी प्रत्येक मंजिल विज्ञान से संबंधित विशिष्ट विषयों के लिए समर्पित है। इसके भूतल में फन साइंस गैलरी हैए जहां वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रदर्शन करने वाले कई प्रकार के उपकरण हैं। मिसाल की तौर पर देखा जाए तो यहां पर एक एनर्जी बॉल हैए इन बॉल्स की मदद से एनर्जी को एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरित किया जाता हैए एक गतिमान गेंद की ऊर्जा से पहिए को घुमाया जाता हैए पहिए की ऊर्जा से घंटी बजने लगती है और घंटी की ऊर्जा से जाइलोफोन पर एक मधुर धुन बजाई जाती है। इसके अलावा यहां अन्य प्रदर्शनों में ऑर्गन पाइपए कर्विंग ट्रेन और इनफाइनाइट ट्रेनए मैजिक टैपए लेजी ट्यूबए जादुई गोला ;इलूसिव स्फियरद्धए मोमेंटम मल्टीप्लायर आदि शामिल हैं। इस मंजिल में एक कार्यशाला और एक सम्मेलन कक्ष भी है। यहां पहली मंजिल में दर्पण अनुभाग और महासागर जीवन खंड सहित कई खंड हैं। यहां इसके अलावा एक फ्लोटिंग बॉल हैए जो बरनौली के सिद्धांत को बताती है और अपकेंद्रीय बल ;सेन्ट्रिफ्यिगल फोर्सद्ध पर आधारित एक चक्र ;वॉर्टेक्सद्ध भी यहां प्रदर्शित किया गया है। इस मंजिल पर सभागार के साथ.साथए मानव विकास क्रम को प्रदर्शित करनी वाली एक प्रदर्शनी भी है। यहां की तीसरी मंजिल पर पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत को सफाई से प्रदर्शित किया गया है। जिसका थ्रीडी ;3क्द्ध शो हर दो घंटे के बाद प्रतिदिन आयोजित किया जाता है।

श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र

खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी

भव्य अशोक राजपथ के बगल में गंगा नदी के किनारे खुदा बक्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी स्थित है। वर्ष 1891 में इस राष्ट्रीय पुस्तकालय को जनता के लिए खोल दिया गया। इस पुस्तकालय की विशेषता यह है कि इसे केवल एक आदमी ने संग्रहित किया था। इसे मोहम्मद बक्श द्वारा शुरू किया गया था और बाद में उनके बेटे खुदा बख्श द्वारा इसका विकास किया गया। मोहम्मद बख्श ने अपने बेटे को 1ए400 पांडुलिपियों का संग्रह दियाए जो उनके बेटे के लिए एक जुनून बन गया। इसलिए इस संग्रह को और बढ़ाने के लिए खुदा बख्श ने एक व्यक्ति को नियुक्त किया और अरब देशों में पांडुलिपियों को संग्रहित करने के लिए भेजा। वर्ष 1888 में उन्होंने 4ए000 पांडुलिपियों के लिए दो मंजिला इमारत का निर्माण करवाया और इसे आम जनता के लिए खोल दिया। वर्तमान में शोध सामग्री की तलाश में दुनिया भर के विद्वान इस पुस्तकालय में आते हैं। यहां उर्दू साहित्य के विशाल संग्रह के अलावाए दुर्लभ अरबी और फारसी पांडुलिपियांए राजपूती कलाकृतियांए मुगल चित्रकारी और 25 मिमी चौड़ी पवित्र कुरान की पांडुलिपियां जैसा अनूठा संग्रह है। इसके अतिरिक्त यहां स्पेनए कॉर्डोबा के मूरिश विश्वविद्यालय से पुस्तकों और साहित्य का मिश्रण भी देखने को मिलता है। यहां मुगलकाल से संबंधित पुस्तकें भी हैए जिनमें हस्तनिर्मित चित्रकारी की गई है। इस चित्रकारी से उस समय के जीवन और संस्कृति की झलक मिल जाती है। यहां ताड़ के पत्तों पर सुंदर हस्तलिपि में लिखी गई पांडुलिपियां भी हैं। इसके कई संस्करणों को दुनिया में कहीं और नहीं पाया गया है। इस पुस्तकालय में आज 21ए000 प्राचीन पांडुलिपियां और ढाई लाख से अधिक पुस्तकें हैं। वर्ष 1969 में खुदा बख्श की ओरिएंटल लाइब्रेरी को संसद के अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया। अब यह पूरी तरह से भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है और इसका प्रबंधन एक परिषद द्वारा किया जा रहा है। बिहार का राज्यपाल इस परिषद का पदेन अध्यक्ष होता है। इस पुस्तकालय में एक प्रिंटिंग प्रेस भी है जिससे यहां की एक त्रैमासिक पत्रिका छापी जाती है। यहां प्राचीन पांडुलिपियों को संरक्षित करने में मदद करने के लिए एक संरक्षण प्रयोगशाला भी है।

खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी

इंदिरा गांधी तारामंडल

इंदिरा गांधी तारामंडलए जिसे तारामंडल और पटना तारामंडल भी कहा जाता हैए देश के सबसे बड़े तारामंडल में से एक है। यहां पूरे दिन खगोल विज्ञान पर फिल्म शो के साथ.साथ खगोल विज्ञान और आकाशगंगाओं से संबंधित कई प्रदर्शनी लगाई जाती है। इस तारामंडल में एक अत्याधुनिक सभागारए बैठक हॉलए कार्यशाला क्षेत्र और प्रदर्शनी कमरा है। यहां गुंबद के आकार का प्रोजेक्शन स्क्रीन हैय जिस पर फिल्मों की स्क्रीनिंग की जाती है। इसका उपयोग दर्शकों को आकाशए सितारे और ग्रहों के बारे में फिल्में दिखाने के लिए होता हैए जो दर्शकों को मनमोहक अनुभव प्रदान करती हैं। यहां ग्रहए पृथ्वी और अन्य खगोलीय पिंडों के निर्माण और विकास के बारे में वैज्ञानिक लघु फिल्में दिखाई जाती हैं। इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली ध्वनि प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है। यह नियमित फिल्म शो प्रतिदिन चार बार आयोजित किया जाता है. दोपहर 12ण्30 बजेए दोपहर 2 बजेए 3ण्30 बजे और शाम 5 बजे। यह शो सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि अपनी शैक्षिक मूल्यों के लिए भी जाना जाता है। स्काई थियेटर में इन फिल्मों की प्रदर्शन किया जाता है। आम जनता के लिए खुला रहने वाले इस स्काई थियेटर में 276 लोग बैठ सकते हैं। इंदिरा गांधी तारामंडल इंदिरा गांधी विज्ञान परिसर के भीतर स्थित है। यहां नियमित रूप से सेमिनार और प्रदर्शनियों का आयोजन होता रहता हैए जो इस क्षेत्र के आकर्षण को और बढ़ा देता है। इस तारामंडल की नींव वर्ष 1989 रखी गई थी और इसका उद्घाटन वर्ष 1993 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा किया गया।

इंदिरा गांधी तारामंडल

केसरिया

केसरिया पटना से लगभग 114 किमी दूर स्थित है और पूर्वी चंपारण जिले में बौद्ध सर्किट पर स्थित बौद्ध विरासत का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह वैशाली से लगभग 40 किमी दूरी पर और उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से 150 किमी दूर है। यह दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध स्तूपों में से एक हैए जिसकी ऊंचाई 104 फिट और 1ए400 फिट की आधार परिधि है। केसरिया इसलिए पूजनीय माना जाता है क्योंकि यह वह स्थान हैए जहां भगवान बुद्ध ने महानिर्वाण से पहले रात गुजारी थी। ऐसा माना जाता है कि लिच्छवीए जो महात्मा बुद्ध के महानिर्वाण के बाद वैशाली लौट आए थेए उन्होंने भगवान बुद्ध के अंतिम.दिनों के स्मरण के लिए इस स्तूप का निर्माण करवाया था। अनुमान लगाया जाता है कि इसका निर्माण 200 ईण् से 750 ईण् के बीच हुआ था।इसका उत्खनन वर्ष 1998 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया गया। इसके पहले यह सिर्फ एक बड़ा टीला था। एएसआई ने इसकी ऊंचाई 150 फिट मापी थीए जो साल भर में घटकर 123 फिट हो गई। वर्ष 1934 के भूकंप के बाद इसकी ऊंचाई और कम हो गई। यह स्तूप छह मंजिल का है। इस स्तूप से भगवान बुद्ध की विभिन्य मुद्राओं में कई मूर्तियां मिली हैंय जिसमें भगवान बुद्ध की प्रसिद्ध भूमि स्पर्श मुद्रा भी शामिल है। ये मूर्तियां मिट्टी और पथ्थर से बनाई गई हैं। यहां कई सिक्केए तीर की नोकए टेराकोटा और तांबे की वस्तुएंए मिट्टी के दीपक और सजावटी ईंटों की खोज की गई है।

केसरिया

मनेर

पटना से लगभग 30 किमी दूर प्राचीन ज्ञान स्थली मनेर एक छोटा कस्बा है। अन्य इमारतों के अलावा यहां दो महत्वपूर्ण इस्लामिक मकबरे भी हैं। पहली मकबरा मखदूम याहिया या शेख याहिया मनेरी की कब्र हैए जिसे बाड़ी दरगाह के नाम से जाना जाता है और दूसरा शाह दौलत या मखदूम दौलत की कब्र है जिसे छोटा दरगाह कहा जाता है। तत्कालीन बिहार के सूबेदार इब्राहिम खानए संत मखदूम दौलत के शिष्य थेए इसलिए वर्ष 1608 में अपने आध्यात्मिक गुरू की मृत्यु के बादएउन्होंने वर्ष 1616 में इस मकबरे का निर्माण करवाया था। एक शानदार गुम्बदए छत पर लिखी कुरान की आयतेंए वर्ष 1619 में इब्राहिम खान द्वारा ने बनवाई गई एक मस्जिद और जहांगीर युग की वास्तुकला की विशेषता इस मकबरे में देखी जा सकती है। इसकी दीवारों पर की गई नक्काशी असाधारण रूप से जटिल और खूबसूरत है। हालांकि इसे पूर्वी भारत में निर्मित मुगल काल का सर्वश्रेष्ठ स्मारक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस स्मारक में उपयोग होने वाले लाल और पीले पत्थर उत्तर प्रदेश के चुनार जिले से लाए गए थे। याहिया मनेरी का यह मकबरा एक मस्जिद में स्थित है और 400 फिट लंबी सुरंग से सोन नदी के पुराने तल से जुड़ा हुआ है। ये मकबरे यहां के बहुत ही लोकप्रिय तीर्थस्थल हैं। यहां भक्त अपनी भक्ति के प्रतीक के रूप में चादर चढ़ाने आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस नदी का पानी इतना मीठा है कि इसे घी के लड्डू भी बनाए जा सकते है। मनेर में बौद्ध मंदिर और जैन मंदिर भी हैं।

मनेर

अगम कुआं

पटना में सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक पुरातात्विक अवशेषों में से एक अगम कुआं गुलज़ारबाग रेलवे स्टेशन के करीब स्थित है। इसके नाम का अर्थ है कि अथाह; जिसकी गहराई न मापी जा सके है। ऐसा माना जाता है कि मौर्य सम्राट अशोक का इस कुएं से गहरा संबंध था। कहा जाता है सम्राट अशोक के शासनकाल में इस कुएं का प्रयोग नरक कक्षों और लोगों को यातना देने के लिए किया जाता था। अपराधियों को इस कुएं की जलती लपटों में फेंक दिया जाता था। किंवदंतियां कहती है कि यहां सम्राट अशोक ने अपने 99 भाइयों को कुएं में फेंककर मार डाला था। सम्राट अशोक का उद्देश्य मौर्य साम्राज्य के सिंहासन का स्वामी बनना था।

ऐसा भी कहा जाता है कुएं के नीचे गंगा नदी का पानी है। एक बार एक संत को इस कुएं में एक छड़ी मिली थी, जो समुद्र में खो चुकी थी। इससे यह अनुमान लगाया गया कि कुआं पाताल से जुड़ा हुआ है। इस कुएं के गहरे पानी में आठ मेहराबदार खिड़कियां जिनसे इस कुएं के गहरे पानी की एक झलक मिलती है। बादशाह अकबर के शासन काल में कुएं के चारों ओर छत बनवाई गई थी। इस कुएं से संबंधित कई अन्य रोचक कहानियां भी हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि जैन भिक्षु सुदर्शन को राजा चंद ने इस कुएं में फेंकवा दिया था, इसके बावजूद वह एक कमल के फूल पर तैरते हुई सतह पर आ गए। इसकी गहराई 105 फिट मानी जाती थी लेकिन 1990 के दशक में एक सफाई परियोजना के दौरान इसकी गहराई 65 फिट पाई गई। कहा जाता है कि यह कुआं कभी सूखता नहीं और इसके पानी का स्तर 1 से 5 फिट के बीच घटता-बढ़ता रहता है।

अगम कुआं

कुम्हरार

पटना के बाहरी इलाके में स्थितए कुम्हरार वह स्थल हैय जहां प्राचीन शहर पाटलिपुत्र के पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं। यहां पाया गया सबसे अनूठा अवशेष एक बलुआ पत्थर से बना 80.स्तंभों वाला हॉल हैए ऐसा माना जाता है कि यह लगभग 300 ईसा पूर्व ;मौर्य कालद्ध का है। माना जाता है कि यहीं पर तृतीय बौद्ध संगीति हुई थी पाटलिपुत्र पर अजातशत्रु ;491दृ459 ईसा पूर्वद्धए चंद्रगुप्त ;321दृ297 ईसा पूर्वद्ध और अशोक ;274दृ237 ईसा पूर्वद्ध जैसे महान राजाओं का शासन था। उत्खनन से पता चला है कि यह शानदार शहर 600 ईसा पूर्व और 600 ईस्वी के बीच फलता.फूलता रहा है। लगभग 1ए000 वर्षों तक पाटलिपुत्र शिशुनागए नंदए मौर्यए शुंग और गुप्त जैसे कई महान भारतीय राजवंशों की राजधानी रही है। यह शिक्षाए कलाए संस्कृतिए वाणिज्य और धर्म के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक था। पाटलिपुत्र का पहला उल्लेख इंडिका में मिलता हैए जो मेगास्थनीज द्वारा 300 ईसा पूर्व में लिखी गई थी। मेगास्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनान का राजदूत था। उसने इस शहर को इंडिका में पालिबोथ्रा नाम से उल्लेख किया है। मेगास्थनीज का मानना है किए यह शहर एक समानांतर चतुर्भुज की तरह थाए जो गंगा के साथ लगभग 14 किमी पूर्व.पश्चिम में फैला हुआ था। इस शहर की परिधि लगभग 36 किमी थी। लकड़ी की विशाल दीवारों की चहारदीवारी और गहरी खाईं से यह शहर सुरक्षित था। यह खाईं इस शहर के सीवर का भी काम करती थी। लकड़ी की ये विशाल दीवारें पटना के लोहानीपुरए बहादुरपुरए संदलपुरए बुलंदीबाग और कुम्हरार सहित कई स्थलों के उत्खनन से मिली हैं। आज का कुम्हरार एक पार्क हैए और उत्खनन में निकली चीजों का संग्रहालय है। यह पटना रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किमी दूर स्थित है।

कुम्हरार

पादरी की हवेली

श्पादरी की हवेलीश् बिहार का सबसे पुराना चर्च है। यह पटना का महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। इसे वर्जिन मैरी विज़टैशन और मांशन ऑफ पादरी के नाम से भी जाना जाता है। सभी धर्मों के लोग नियमित रूप से इस चर्च में प्रार्थना के लिए आते हैं। क्रिसमस के दौरानए श्पादरी की हवेलीश् में उत्सव का माहौल होता है और यहां लोगों की भीड़ प्रार्थना करने के लिए लगी रहती है। बिहार आगमन के बाद रोमन कैथोलिकों ने श्पादरी की हवेलीश् का निर्माण वर्ष 1713 में करवाया था। इसका वर्तमान स्वरूप वर्ष 1772 में निखरकर सामने आयाय जब इसका इसी वर्ष पुर्ननिर्माण किया गया। इसे ट्रीटो नामक एक वेनिस वास्तुकार ने बनाया थाए जो विशेष रूप से इस उद्देश्य के लिए कलकत्ता ;अब कोलकाताद्ध से आया था। इसे सेंट मैरी चर्च भी कहा जाता हैए इसकी आधारशिला की लंबाई 70 फिटए चौड़ाई 40 फिट और ऊंचाई 50 फिट है। यह चर्च ब्रिटिश व्यापारियों और बंगाल के नवाब मीर कासिम के बीच हुए युद्ध और वर्ष 1857 के सिपाही विद्रोह का गवाह है। इस संस्था के इतिहास का सबसे आकर्षक पहलू यह है कि वर्ष 1948 में मदर टेरेसा ने यहां नर्स के रूप में औपचारिक प्रशिक्षण लिया था। वह जिस कमरे में रुकी थीए उसमें उनकी एक खाटए एक मेज और बहुत सी चीजें रखी गई हैं। यहां एक नोटिस बोर्ड पर लिखा है कि ष्मदर टेरेसा जिन्होंने पादरी की हवेली में प्रशिक्षण लेने के बाद अपने प्यार के मिशन को शुरू किया थाए वर्ष 1948 में इसी कमरे में रहती थी।ष् चर्च की घंटी इस संरचना की वास्तुकला का विस्मयकारी हिस्सा हैए जो दूर से ही दिख जाती है। यह वास्तुकला आश्चर्य पैदा करती है और इसमें बहुत गहन लेख और शिलालेख हैं।

पादरी की हवेली

बुद्ध स्मृति पार्क

बुद्ध स्मृति पार्क बिहार सरकार द्वारा भगवान बुद्ध के 2554 वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में बनवाया गया था। यह 22 एकड़ के उपजाऊ क्षेत्र में फैला एक शहरी उद्यान है। पार्क का मुख्य आकर्षण दलाईलामा द्वारा लगाए गए दो बोधि वृक्ष हैं, जिसके बगल में भगवान बुद्ध की मूर्ति विराजमान है।

इसे बुद्ध स्मारक पार्क भी कहा जाता है। यह पटना के फ्रेजर रोड पर स्थित है। इसके सामने महावीर मंदिर है। भगवान बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं को दर्शाने के लिए, इस बहुउद्देश्यीय पार्क में पाटलिपुत्र करुणा स्तूप और ध्यान केंद्र बनाया गया है। यहां एक पुस्तकालय भी है, जिसमें बौद्ध धर्म की कई पुस्तकें है। यहां संग्रहालय के साथ-साथ एक खूबसूरत पार्क भी है।

बुद्ध स्मृति पार्क

पटना के संग्रहालय

पटना शहर की समृद्ध विरासत कई संग्रहालयों में अच्छी तरह से प्रलेखित है। इसकी शुरूआत हम बिहार संग्रहालय से करते हैए जिसकी विशाल इमारत स्टील और ग्रेनाइट से बनी है। इसे जापानी डिजाइन फर्म और भारतीय कंपनियों के सहयोग से बनाया गया था। यह 13ण्5 एकड़ के भूखंड में स्थित है। इसमें 9ए500 वर्ग मीटर में ओरिएंटेशन गैलरीए बच्चों की गैलरीए इतिहास गैलरी और अन्य गैलरियां है। यहां प्रवासी बिहारियों पर भी एक गैलरी है। यहां एक दिलचस्प दर्शनीय भंडारण गैलरी हैए जिसमें मृण्मूर्तियांए सिक्के की कलाकृतियों और अन्य चीजें भी प्रदर्शित की गयीं हैं।

विशाल पटना संग्रहालयए बिहार संग्रहालय के निर्माण से पहले शहर का एक मात्र संग्रहालय हुआ करता था। हरे.भरे बगीचे में स्थितए यह संग्रहालय इस शहर के इतिहास का एक दर्पण हैए जहां इस शहर के इतिहास को समझा जा सकता है। इसे ब्रिटिश काल में बनवाया गया था। इस संग्रहालय में मौर्य और गुप्तकालीन पत्थर की मूर्तियोंए कुछ खूबसूरत कांस्य की बौद्ध मूर्तियां और थॉमस और विलियम डेनियल की पूर्ववर्ती 19 वीं शताब्दी की चित्रकारी का शानदार संग्रह है।

पटना के संग्रहालय

गांधी मैदान

शहर के केंद्र में 62 एकड़ में फैला गांधी मैदानए पटना के सबसे लोकप्रिय मैदानों में से एक है। जब भी महात्मा गांधी इस शहर में आते थेए यहीं अपनी प्रार्थना सभाएं किया करते थे। मैदान के किनारे पर खूबसूरत पौधों को एक कतार में लगाया गया है। आज यह मैदान बाजारए कार्यालयों और होटलों से घिरा हुआ है। यहां वर्ष भर कई प्रदर्शनियां और मेले आयोजित किए जाते हैंए जिसमें से सबसे प्रमुख पटना पुस्तक मेला है।

यह पुस्तक मेला एक पखवाड़े तक चलता है। इस दौरान यहां पुस्तक प्रेमियों की भारी भीड़ लगी रहती है। इस मैदान के दक्षिणी छोर पर स्थित गांधीजी की एक प्रतिमा हैए जिसके आधार पर इस मैदान का नाम गांधी मैदान रखा गया। यहां गणतंत्र दिवस परेड के साथ.साथ स्वतंत्रता दिवस समारोह भी आयोजित किया जाता है। आज भी इस स्थल पर बड़ी.बड़ी राजनीतिक रैलियां आयोजित कि जाती हैं। यह एग्जीबिशन रोडए फ्रेज़र रोड और अशोक राजपथ सहित पटना शहर की कई प्रमुख सड़कों की आवाजाही का माध्यम है। यह मैदान वर्ष 1824 से 1833 तक गोल्फ कोर्स हुआ करती थीए जिसे ब्रिटिश काल में पटना लॉन कहा जाता था। घुड़ दौड़ एक अन्य लोकप्रिय खेल था जिसे यहां शुरू किया गया था।

गांधी मैदान

गोलघर

मधुमक्खी के छत्ते के समान बनी यह शानदार इमारतए पटना के बीचो बीच स्थित गांधी मैदान के निकट है। गोल आकार में बनी यह इमारत अपने नाम श्गोलघरश् का एकदम सटीक पर्याय है। आश्चर्यजनक ढंग से इस भव्य इमारत को भीतर से सहारा देने के लिए किसी भी स्तम्भ को नहीं बनाया गया है। यह इमारत अपने आधार में 3ण्6 मीटर चौड़ी है। गोलघर की ऊंचाई 29 मीटर है। यह एक हैरान कर देने वाली विचित्र वस्तुकला है जो देखने लायक है।

 

गोलघर