लकड़ी में जड़ाऊ का काम

बिहार में लकड़ी के शिल्प कला का समृद्ध इतिहास रहा है जिसमें लकड़ी के खिलौने और फर्नीचर का निर्माण शामिल है। लकड़ी के कलाकृतियों को उनकी कलात्मक सुंदरता और टिकाऊपन के लिए जाना जाता है। लकड़ी की नक्काशी और जड़ाई का काम दीवार की पट्टिका, टेबल टॉप और पेन जैसी वस्तुओं पर किया जाता है। इसमें लकड़ी पर धातु, हाथी दांत, हरिण सींग और विभिन्न लकड़ी के चिप्स जैसे विभिन्न सामग्रियों की जड़ाई की जाती हैं। नालंदा और बिहार के अन्य हिस्सों में लकड़ी पर जड़ाई की गई वस्तुएँ बेचने वाली छोटी छोटी दुकानें आसानी से मिल जायेंगी। यह पारंपरिक शिल्पकला मौर्य सम्राट, अशोक (322- 187 ईसा पूर्व) के दिनों में भी प्रचलित था।

लकड़ी में जड़ाऊ का काम

पाषाण शिल्प

यहां मिलने वाली वस्तुओं में सबसे लोकप्रिय वस्तुओं में एक है-पत्थर पर बनी भगवान बुद्ध के स्मृति चिन्ह। नालंदा आने वाले पर्यटक अपने साथ इन्हें अवश्य ही ले जाना चाहेंगे। बिहार का पारंपरिक शिल्प कला, बौद्ध परंपरा को प्रदर्शित करता है और अधिकांश पाषाण शिल्प भगवान बुद्ध और उनके उपदेशों से संबंधित हैं। पत्थरों में सुंदर मूर्तियों को तराशने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। ऐसा कहा जाता है कि मौर्य काल के दौरान शिल्प कला अपने चरम सीमा पर थी, और यह राजवंश आज भी अपने शिल्प कौशल के लिए जाना जाता है। इस कला के विकास के मुख्य कारणों में एक है-इस क्षेत्र में विभिन्न रंगों के चमकीले पत्थरों की प्रचुर उपलब्धि। कारीगर न केवल धार्मिक आकृतियां बनाते हैं, बल्कि पत्थरों का उपयोग प्लेट और कटोरे जैसी घरेलू वस्तुओं को बनाने के लिए भी किया जाता है।

पाषाण शिल्प

सिक्की का काम

एक विशेष प्रकार की घास, सिक्की,से सुंदर सजावटी वस्तुएं और खिलौने बनाने की कला सिक्की कहलाती है। यह आमतौर पर महिलाओं द्वारा बनाई जाती है जो नदी के किनारे के खरपतवार (जंगली घास) का उपयोग कर विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करती हैं। हाथी, पक्षी, सांप और कछुए जैसी विभिन्न आकृतियां बनाने के लिए घासों की सिलाई कर इन वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। एक बार घास को एक विशेष आकार में सिलने के बाद, महिलाएं खिलौनों की दृश्यीय अपील बढ़ाने के लिए इन्हें चमकदार रंगों से रंगती हैं। बिहार में मधुबनी, दरभंगा और सीतामढ़ी जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इस कला को जीवित रखा गया है।

सिक्की का काम