प्रकृति की अद्भुत वनस्पतियों और जीवों को देखने के लिए इन वन्यजीव स्थानों पर जाएं।

रंगनाथिटु पक्षी अभयारण्य

पक्षी-प्रेमियों के लिए स्वर्ग माना जाने वाला रंगनाथिटु पक्षी अभयारण्य प्रकृति को निकटता से देखने का अवसर देता है। विदेशी और स्थानिक पक्षियों से लेकर मगरमच्छों तक, अभयारण्य वन्यजीव के प्रेमियों के लिए एक सुखद अनुभव है। अगर किस्मत अच्छी हो तो यहां वो पक्षी भी यहां आ सकते हैं जो यहां अपने घर बनाने के लिए साइबेरिया से आते हैं। यहाँ आप जिन पक्षियों को देख सकते हैं, उनमें से कुछ हैं, डार्टर, मोर, तालाब का बगुला, जंगली बत्तख, बड़े पनकौवा, बगुला, ग्रेट स्टोन प्लवर, किंगफिशर, गाय बगुला, छोटी सील्ही, भारतीय शैल अबाबील, ग्रेट स्टोन प्लवर, रिवर टर्न, स्ट्रेक-थ्रोटेड स्वॉलो और अन्य। यहाँ पाए जाने वाले सरीसृप और स्तनधारियों में फ्लाइंग फॉक्स, पाम सिवेट, कॉमन ओटर, बोनट मैकाक और मार्श मगरमच्छ शामिल हैं। अभयारण्य को अच्छे से जानने का सबसे अच्छा तरीका नाव के द्वारा सुबह के शुरुआती घंटों में घुमना है। शहर के बाहरी इलाके में स्थित अभयारण्य, 40 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें छह छोटे द्वीप शामिल हैं। बांस के पेड़ सुरम्य वातावरण बनाते हैं, जो इस क्षेत्र के पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग के जैसा है। यह प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डॉ. सलीम अली के प्रयासों का परिणाम है, जिन्होंने मैसूर के तत्कालीन राजा को पक्षी अभयारण्य बनाने के लिए राजी किया था।

रंगनाथिटु पक्षी अभयारण्य

डबरे हाथी शिविर

डुबारे में कावेरी नदी द्वारा बनाया गया प्राकृतिक द्वीप है, यह शिविर हाथी संरक्षिका है, वर्तमान में इसमें लगभग 150 जानवर हैं। यह शिविर स्तनधारियों के बारे में जानने के लिए मजेदार और दिलचस्प जगह है, जो आगंतुकों को जानवरों को गुड़, नारियल, केला, गन्ना और रागी खिलाने का अवसर देता है। पर्यटक जानवरों को रगड़-रगड़ कर नहलाते हुए भी देख सकते हैं, जिसके बाद उनके माथे और दाँतों पर तेल लगाया जाता है। इसके अलावा, आप हाथी की सवारी, कावेरी नदी में हरिगोल की सवारी, मछली पकड़ने, रिवर राफ्टिंग, बर्ड-वाचिंग और ट्रेकिंग भी कर सकते हैं। हरिगोल की सवारी पर जाते समय, यदि आप किस्मत वाले हैं, तो आप मगरमच्छों को धूप सेंकते हुए देख सकते हैं। शिविर में हाथियों की देखभाल करने वाले भी प्रसिद्ध मैसूर दशहरा का हिस्सा हैं।

शिविर वन विभाग और हाथियों के इतिहास, पारिस्थितिकी एवं जीव विज्ञान के विशेषज्ञ प्रकृतिवादियों द्वारा शुरू की गई एक परियोजना है, जिनको जानवरों के बारे में पर्यटकों को शिक्षित करने तथा जानवरों को संरक्षित करने और उनके साथ दया का व्यवहार कितना महत्वपूर्ण है, के बारे में बताने के काम पर रखा गया है। कई होमस्टे और रिसॉर्ट्स रिजर्व के पास बनाये गए हैं, ताकि यहाँ अधिक समय तक रह सकें और जंगल में जीप से जा सकें। शिविर में आने का सबसे अच्छा समय सितंबर और मार्च के बीच है।

डबरे हाथी शिविर

राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान

नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान के रूप में भी जाने जाने वाला यह राष्ट्रीय उद्यान निकटवर्ती बांदीपुर टाइगर रिजर्व के साथ-साथ प्रमुख बाघ अभ्यारण्यों में से एक है और यह नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व का हिस्सा है। संतुलित शिकारी तथा शिकार अनुपात के साथ, यह राष्ट्रीय उद्यान बाघों, तेंदुओं, चीतल, सांबर, गौर और एशियाई हाथियों का निवास स्थल है। नागरहोल का अर्थ है कन्नड़ में साँप जैसी धारा, जिसका नाम जंगल से गुजरने वाली सर्पीन नदी के नाम पर पड़ा है।

571 वर्ग किमी में फैला यह पार्क पक्षियों की 250 प्रजातियों जैसे बगुला, सारस, सफ़ेद बगुला, बत्तख, चील, बाज, शिकरा, तीतर, मोर, लैपविंग, वैगेट, सैंडपाइपर, वुडपेकर, सनबर्ड, वॉर्बलर, बब्बल, उल्लू और अन्य पक्षियों का निवास स्थल है। यहाँ कुछ सरीसृप भी पाए जाते हैं, जैसे कि दलदली मगरमच्छ, तारा कछुआ, चूहा, साँप, रसेल वाइपर और भारतीय अजगर। जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने के लिए अपनी गाड़ी को जंगल के गाइड के साथ संरक्षित क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में ले जाया जा सकता है।

राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान

कावेरी वन्यजीव अभयारण्य वन्यजीव

वन्यजीवों का अनुभव करने हेतु रमणीय स्थल, कावेरी वन्यजीव अभयारण्य में बाघ, तेंदुए, जंगली कुत्ते, सुस्त भालू, गौर, सांभर, चोल, एशियाई हाथी और चार सींग वाले मृग हैं। अभयारण्य की उत्तरी और पूर्वी सीमाओं के साथ कावेरी नदी से घिरे हुए अभयारण्य में शुष्क पर्णपाती जंगल शामिल हैं जिसमें प्रचुर मात्रा में झाड़ियाँ पाई जाती है। अभयारण्य घड़ियाल जैसी विशाल गिलहरी की तरह लुप्तप्राय प्रजातियों को आश्रय प्रदान करता है, इसके अलावा दलदली मगरमच्छ, अजगर, कोबरा, रसेल के वाइपर, ब्रांडेड क्रेट और कछुए भी यहाँ पाये जाते हैं। महसीर मछलियाँ भी यहाँ अधिक संख्या में पाई जाती है, साथ ही पक्षियों की कुछ प्रजातियाँ जैसे सिरकेर कोयल, सफ़ेद-भूरे रंग की बुलबुल, हरी बिल्लो और पिग्मी कठफोड़वा भी पाई जाती हैं। 523 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य में जीप सफारी के माध्यम से घुमा जा सकता है।

कावेरी वन्यजीव अभयारण्य वन्यजीव

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान वन्यजीव

लगभग 874.20 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान बाघों, जंगली कुत्तों, जंगली सूअर, सियार, चीतों, मालाबार गिलहरी, सुस्त भालू, काली धारी वाले खरगोश, साही, लाल सिर वाले गिद्ध, कठफोड़वा, भूरे उल्लू  पतिंगा, किंगफिशर, छिपकली, भारतीय पहाड़ी अजगर, उड़ने वाली छिपकली, वाइपर, चूहा सांप और कोबरे का निवास स्थल है। उत्तर में निकटवर्ती नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, तमिलनाडु में मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, और केरल में वायनाड वन्यजीव अभयारण्य के साथ, यह देश के प्रमुख बाघ अभ्यारण्यों में से एक है, साथ ही सबसे बड़ा जीवमंडल भी है। इन जंगलों को सामूहिक रूप से नीलगिरी जीवमंडल रिजर्व के रूप में जाना जाता है, और शिकारियों तथा वनों की कटाई से पूरी तरह संरक्षित हैं। पार्क में जंगली मुर्गी और हरे कबूतर जैसे पक्षी भी पाए जाते हैं। केवल जीव ही नहीं, पार्क में कई प्रकार के इमारती लकड़ी के पेड़ जैसे सागौन, शीशम, चंदन, झुरमुटीदार बांस, भारतीय कीनो पेड़ के साथ-साथ फूल और फलदार पेड़ जैसे कदम, भारतीय करौदा, साटनवुड, गोल्डन शॉवर ट्री, ब्लैक क्लच और फ्लेम हैं।

जंगल के वास्तविक अनुभव के लिए पर्यटकों को रिज़र्व की परिधि में बने जंगलों के लॉज में कुछ दिन बिताने की सलाह दी जाती है। ये लॉज आरामदायक कमरों से सुसज्जित हैं और इनमें अन्य सुविधाएं भी हैं जो आपके ठहरने को आनंददायक बना देंगे। उनमें से कुछ जंगल में जीप से भी घुमाते हैं, जिससे मेहमान बांदीपुर के इन जीवों को करीब से देख सकते हैं और अगर वे भाग्यशाली हैं, तो उन्हें राजसी और आश्चर्यजनक बाघ की झलक भी देखने को मिलती है। वन्यजीवों के शौकीनों को यहाँ जरूरी आना चाहिए।

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान वन्यजीव