जगतसुख

मनाली से लगभग51 किमी की दूरी पर, और 3,978 मीटर की ऊंचाई पर अद्भुत रोहतांग दर्रा है, जो लाहौल-स्पीति,पंगी घाटी और लद्दाख क्षेत्र का मुख्य प्रवेश द्वार है। हिमाचल प्रदेश राज्य के सबसेसुंदर स्थानों में से एक, यह दर्रा वर्ष के अधिकांश समय बर्फ से ढका रहता है, और यहकेवल जून से अक्टूबर महीने तक आवागमन के योग्य रहता है। चिनाब और ब्यास नदियों के घाटियोंके बीच के जलक्षेत्र पर स्थित यह दर्रा, एक सुरम्य ड्राइव के लिए अत्यंत अनुकूल है।ऐसा कहा जाता है कि एक समय यह दर्रा पीर पंजाल पर्वतीय शृंखला के दोनों ओर रहने वालेलोगों के लिए, एक प्राचीन व्यापार मार्ग के रूप में किया जाता था।
गर्मियों केदौरान यात्रियों को, बर्फ से ढंकी आसपास के ढलानों पर स्लेज राइड का आनंद लेते देखाजा सकता है। लेकिन इस दर्रे तक पहुंचने के लिए विशेष परमिट की आवश्यकता होती है, जोकेवल एक दिन के लिए ही वैध रहता है, और इसे पर्यटन विकास परिषद से प्राप्त किया जासकता है। रोमांचक गतिविधियों के इच्छुक लोग रोहतांग की यात्रा मई के महीने में करतेहैं, जब वे स्नो स्कूटर राइड, स्कीइंग और माउंटेन बाइकिंग जैसी रोमांचक गतिविधियोंमें भाग ले सकते हैं।

जगतसुख

नाको मठ

लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, इस मठ की स्थापना 11 वीं शताब्दी में एक प्रसिद्ध प्राचीन अनुवादक लोचन रिंचेन ज़ंगपो ने की थी। यह मठ मनाली से लगभग 6 घंटे की दूरी पर नाको गांव में है। मठ को लोटसवा झकंग के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है अनुवादक का परिसर। नाको झील के किनारे स्थित इस शांत मठ का निर्माण, स्पीति घाटी में प्रसिद्ध ताबो मठ के पैटर्न पर किया गया है, और यह चार हॉल या चैपल्स में विभाजित है। इस मठ का द्वार, जटिल नक्काशियों से उत्कीर्ण है।वज्रयान बौद्ध धर्म से प्रेरित यह मठ, दूर-दूर के लोगों को आमंत्रित करता है। इसकी दीवारें सुंदर चित्रकारियों से सजी हैं। नाको मठ में मिट्टी और धातु से बनी कई मूर्तियों के साथ-साथ स्तूपों और अनुवादित धर्मग्रंथों (कांग्युर) का संग्रह भी है, जिसमें भगवान बुद्ध की प्रत्यक्ष शिक्षाएं अंकित हैं।शाहसुर मठ (आध्यात्मिक)शाहसूर, जिसका अर्थ है नीला देवदार, हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले का एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ है। यह 600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। किंवदंती यह है कि इस मठ का निर्माण 17 वीं शताब्दी के दौरान लामा देव ग्यात्सो ने कराया था जो भूटान के तत्कालीन राजा नवांग नामग्याल के मिशनरी थे। कहा जाता है कि लामा अपने अंतिम दिनों तक यहीं रहे। इस तीन मंजिला गोम्पा (मठ) की दीवारों को 5 मीटर लंबी थंगका (एक धार्मिक पेंटिंग या स्क्रॉल) और नामग्याल की मूर्ति के साथ-साथ चमकीले चित्रकारियों से सजाया गया है जो बौद्ध धर्म के 84 सिद्धों को चित्रित करते हैं। हालां कि मठ में सालो भर से दूर-दूर से पर्यटक आते हैं, पर जून और जुलाई के महीने जब यह मठ अपना वार्षिक उत्सव मनाता है उस वक्त सबसे अधिक पर्यटक यहां आते हैं। इस त्योहार का मुख्य आकर्षण, पारंपरिक चाम (चाम) या मुखौटा नृत्य है, जो यहां के भिक्षुओं द्वारा किया जाता है।

नाको मठ

हडिम्बा मंदिर

ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का एक स्थान, हडिम्बा या धूंगरी मंदिर, महाकाव्य महाभारत की एक नायक भीम की पत्नी, देवी हडिम्बा को समर्पित है। यह मनाली में सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है जो अपने आध्यात्मिक और वास्तुकला, दोनों कारणों के चलते पर्यटकों को आकर्षित करता है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण कुल्लू के राजा महाराजा बहादुर सिंह ने सन् 1553 में करवाया था। यह एक लकड़ी के दरवाजे और चतुर्भुजाकार पैगोडा के आकार की छत के साथ बनी एक अनोखी संरचना है जो पौराणिक आकृतियों और प्रतीकों, देवी-देवताओं और जानवरों के नक्काशियों से सुसज्जित हैं, जो भगवान कृष्ण के जीवन की घटनाओं के अनेक प्रकरणों को दर्शाते हैं। आंतरिक गर्भगृह में, हालांकि एक भी मूर्ति नहीं है।घने देवदार के जंगलों के बीच बना यह मंदिर पर्यटकों को एक अत्यंत मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है, और आप इस मंदिर परिसर में घूम सकते हैं और आस-पास की पहाड़ी पगडंडियों (ट्रेक) पर विचरण कर सकते हैं। मंदिर के लगभग 200 मीटर दक्षिण में एक पवित्र वृक्ष है, जो माना जाता है कि यह भीम के पुत्र घटोत्कच का प्रतिनिधित्व करता है। इसके ऐतिहासिक और वास्तुकला के महत्वों को देखते हुए, इस मंदिर को 18 अप्रैल, सन् 1967 को एक राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में संरक्षित करने के लिये घोषणा की गई।इस मंदिर को 'रोजा' (1992) और 'ये जवानी है दीवानी' (2013) सहित कई बॉलीवुड फिल्मों में प्रमुखता से दिखाया गया है। पर्यटकों को यहां के सफेद रोएंदार अंगोरा खरगोश और याक के साथ तस्वीरें खिंचवाने का आनंद मिलता है।नग्गर (विरासत)नग्गर एक प्राचीन छोटा सा शहर है, जो लगभग 1,851 मीटर की ऊंचाई पर है। यह ब्यास नदी के तट पर है, और इसे राजा विशुद्धपाल द्वारा बसाया गया था। यह शहर राज्य के मुख्यालय के रूप में सन् 1460 तक रहा, उसके बाद कुल्लू के शासक जगत सिंह ने अपनी राजधानी को सुल्तानपुर (कुल्लू) में स्थानांतरित कर दिया।इस जगह पर एक अच्छी जलवायु का आनंद मिलता है। जब कि ग्रीष्मकाल काफी सुखद रहता है, पर सर्दियों में काफी ठंडी पड़ती है। इस सुरम्य शहर के दर्शनीय स्थलों में से एक है नग्गर किला, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे कुल्लू के शासकों ने लगभग सन् 1500 में बनवाया था, पर जिसे सन् 1846 में अंग्रेजों द्वारा एक न्यायालय में, और अंततः सन् 1976 में इसे एक होटल में बदल दिया गया। इस शहर की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को दर्शाते प्रदर्शनों को अंतर्राष्ट्रीय रोएरिख मेमोरियल ट्रस्ट और उरुस्वाती हिमालयन लोक कला संग्रहालय में पाया जा सकता है। इस संग्रहालय की स्थापना इस क्षेत्र की लोक कला और शिल्प के संरक्षण के एकमात्र उद्देश्य से की गई है।नग्गर, 26 किमी दूरी पर स्थित कुल्लू, और 21 किमी दूरी पर स्थित मनाली से आसानी से पहुंचा जा सकता है। निकटतम हवाई अड्डा, भुंतर में है, जो लगभग 36 किमी दूरी पर है।

हडिम्बा मंदिर

शाहसुर मठ

शाहसूर, जिसका अर्थ है नीला देवदार, हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले का एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ है। यह 600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। किंवदंती यह है कि इस मठ का निर्माण 17 वीं शताब्दी के दौरान लामा देव ग्यात्सो ने कराया था जो भूटान के तत्कालीन राजा नवांग नामग्याल के मिशनरी थे। कहा जाता है कि लामा अपने अंतिम दिनों तक यहीं रहे। इस तीन मंजिला गोम्पा (मठ) की दीवारों को 5 मीटर लंबी थंगका (एक धार्मिक पेंटिंग या स्क्रॉल) और नामग्याल की मूर्ति के साथ-साथ चमकीले चित्रकारियों से सजाया गया है जो बौद्ध धर्म के 84 सिद्धों को चित्रित करते हैं। हालां कि मठ में सालो भर से दूर-दूर से पर्यटक आते हैं, पर जून और जुलाई के महीने जब यह मठ अपना वार्षिक उत्सव मनाता है उस वक्त सबसे अधिक पर्यटक यहां आते हैं। इस त्योहार का मुख्य आकर्षण, पारंपरिक चाम (चाम) या मुखौटा नृत्य है, जो यहां के भिक्षुओं द्वारा किया जाता है।

शाहसुर मठ

वशिष्ठ

वशिष्ठ गांव मनाली के पहाड़ी शहर से लगभग 4 किमी दूर स्थित है, जो हिन्दुओं के सबसे सम्मानित संतों में से एक, ऋषि वशिष्ठ के नाम पर है। यह छोटा सा गांव अपने गर्म गंधक के झरनों के लिए जाना जाता है, जिस जल में उपचार की शक्ति हैं। शहर का मुख्य आकर्षण वशिष्ठ मंदिर है जो इस झरने के पास है। कहा यह जाता है कि यह मंदिर, जो ऋषि वशिष्ठ को समर्पित है, 4,000 वर्ष से अधिक पुराना है। इसके समीप एक और मंदिर है, जो भगवान राम को समर्पित है।इन आकर्षणों के अलावा इस गांव से, ब्यास नदी और पुरानी मनाली के दृश्य सर्वश्रेष्ठ दिखाई देते हैं। गांव की अधिकांश दुकानें ऊनी कपड़े बेचती हैं। यहां के घर छप्परदार छत वाली पारंपरिक शैली में बनायी रहती हैं और लकड़ी पर जटिल नक्काशी की गई होती है। गांव के अंदर घूम कर कोई भी नजदीक से उनकी स्थानीय संस्कृति को निहार सकता है।महान हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान (द ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क, भ्रमण)यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का द ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क, हिमालय के सबसे अधिक संरक्षित क्षेत्रों में से एक है। यहां वनस्पतियों की लगभग 350 प्रजातियों और जीवों की 800 प्रजातियों का घर है, जिनमें से कुछ तो लुप्तप्राय हैं। पार्क में दुनिया के लुप्तप्राय चार स्तनधारियों (हिम तेंदुआ, सीरो, हिमालयी तहर और कस्तूरी मृग) और तीन पक्षियों की प्रजातियों (पश्चिमी ट्रोगोपैन, कोक्लास, चीयर फिज़ेंट्स) हैं। पार्क के हरे आवरण का एक बड़ा हिस्सा ओक वृक्षों की तीन किस्मों, बान, मोहरू और खर्सु से बना है। यह पार्क नीरव अल्पाइन चरागाहों के मध्य में, कैम्पिंग और ट्रेकिंग के अनुभव पाने का एक आदर्श अवसर प्रदान करता है। पार्क की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय, गर्मियों और पतझड़ ऋतु के दौरान है। इसे सन् 1999 में एक राष्ट्रीय उद्यान के रूप में मान्यता दी गई थी। यह पार्क 1,171 वर्ग किमी में फैला है और इसकी सीमाएं कई अन्य प्राकृतिक अरण्यों जैसे पिन वैली नेशनल पार्क, रूपी भाभा वन्यजीव अभयारण्य और पार्वती घाटी के कंवर वन्यजीव अभयारण्य से मिलती हैं। यहां हिमाचल प्रदेश के भुंतर, मनाली और स्पीति से पहुंचा जा सकता है क्योंकि यह कई उप-हिमालयी क्षेत्रों को कवर करता है। पार्क वन्यजीवों के प्रेमियों और साहसिक उत्साही लोगो, दोनों के लिए आकर्षण का एक केंद्र है क्योंकि यह पार्क के विभिन्न उप-क्षेत्रों में बड़ी संख्या में ट्रेक का आयोजन होता है, जिसमे आसान से मुश्किल ट्रेक तक होते हैं। सन् 2004 के बाद इसके विस्तार के अंदर और कई गांवों को शामिल कर लिया गया है जिसके चलते पर्यटकों को, स्थानीय लोगों का पर्यावरण के साथ सहजीवी संबंध को देखने का मौका भी मिलता है।

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