तिरुप्पुरकुंद्रम

तिरुप्पुरकुंद्रम शहर तमिलनाडु का एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र है और भगवान मुरुगन या भगवान सुब्रह्मण्य को समर्पित छह विशेष धर्मस्थलों में से एक माना जाता है। एक प्रचलित किंवदंती के अनुसार इसी शहर तिरुप्पुरकुंद्रम के एक गुफा मंदिर में भगवान इंद्र की बेटी देवयानी के साथ भगवान सुब्रह्मण्य का विवाह संपन्न हुआ था । उस गुफा मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में पांडियन द्वारा किया गया था। इस मंदिर के समूचे गर्भगृह को एक ही चट्टान से उकेर कर बनाया गया है, और इसकी दीवारों और स्तंभों को आकर्षक नक्काशी से सजाया गया है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा भगवन मुरुगा के चौथे तीर्थ के रूप में की जाती है, और विभिन्न शास्त्रीय तमिल ग्रंथों में इसका उल्लेख दक्षिणी हिमालय के रूप में किया गया जहां देवी-देवता एकत्र होते हैं। इतना ही नहीं, इसे एक ऐसा पवित्र स्थान भी माना जाता है जहां सूर्य देवता और चंद्रमा देवता निवासरत हैं। चूंकि यह माना जाता है कि इसी पहाड़ी पर भगवन मुरुगन ने देवसेना से शादी की थी, इसलिए तमिल समुदाय द्वारा विवाह आयोजित करने के लिए मदुरै से 8 किमी की दूरी पर स्थित यह तिरुप्पुरकुंद्रम मंदिर सबसे शुभ माना जाता है। 

तिरुप्पुरकुंद्रम

श्रीविल्लिपुत्तुर अंडाल मंदिर

यह प्राचीन मंदिर तमिलनाडु के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। भगवान विष्णु के 108 मंदिरों में से एक इस मंदिर में उनकी पूजा-अर्चना वातपरासैय के रूप में की जाती है। श्रीविल्लिपुत्तुर अंडाल मंदिर इसलिए भी प्रसिद्ध है कि वैष्णव परंपरा में दो सबसे महत्वपूर्ण संतों पेरियाझवार और अंडाल का जन्मस्थान यहीं स्थित है। इस मंदिर की सबसे लाजवाब खासियत इसका 11 स्तरीय राजगोपुरम अर्थात भव्य सुसज्जित द्वार है। उल्लेखनीय है कि संपूर्ण तमिलनाडु के मंदिरों के राजगोपुरमों में सबसे बड़ा यही है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान की एक मूर्ति विश्राम की स्थिति में स्थापित है, और इसके साथ ही उनकी पत्नियों श्री देवी और भूमा देवी को उनके चरणों में उपस्थित होते हुए प्रदर्शित किया गया है। मंदिर के पहले भाग को वातपत्र सयानार मंदिर कहा जाता है, वहीं इसके दूसरे भाग का प्रचलित नाम अंडाल तीर्थ है। श्रीविल्लिपुत्तुर अंडाल मंदिर के भव्य मंडप अर्थात हॉल लकड़ी की खूबसूरत नक्काशी से सुशोभित हैं जिनके माध्यम से पौराणिक आख्यानों के दृश्यों को दर्शाया गया है। आपके लिए जानना दिलचस्प होगा कि यह मंदिर केवल भक्तिभाव के लिए ही नहीं, अपने प्राचीन रामायण भित्तिचित्रों, आधुनिक दीवार चित्रों के साथ-साथ पांड्य राजाओं के दौर के कई शिलालेखों के लिए ऐतिहासिक व कलात्मक रूप से भी जाना जाता है। इसी मंदिर परिसर में वानमलाई जीयर मठ और वेदांत देसीकर तथा मन्नतल्ला संत के मठ भी स्थित हैं, जिनका भ्रमण करना आपके यात्रा अनुभव को एक अलग ही शांति और विनीत भाव से भर देगा।

श्रीविल्लिपुत्तुर अंडाल मंदिर

  तेप्पकुलम

प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर में दर्शन कर के जब आप निकलेंगे, तो बिलकुल नज़दीक ही स्थित ‘तेप्पकुलम’ नामक सुन्दर श्र्द्धास्थल का भ्रमण करना बिलकुल भी न भूलें। दिलचस्प बात है कि ‘तेप्पकुलम’ शब्द का अर्थ ही धार्मिक प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाने वाला तालाब होता है, और इस मंदिर के इतनी निकट स्थित सरोवर भक्तों के लिए स्वयं में भी एक यात्रा स्थल जैसा ही महत्त्व रखता है। भगवान गणेश के विघ्नेश्वर नामक स्वरूप को समर्पित इस मंदिर के परिसर में वह विशाल सरोवर अवस्थित है, जो समूचे तमिलनाडु राज्य के सबसे बड़े तालाब होने के लिए सुविख्यात है। इसके चारों तरफ घाट बने हुए हैं, और उन में से प्रत्येक घाट पर ग्रेनाइट नाम के कड़े चट्टानी पत्थर से बनी हुई 12 लंबी सीढ़ियाँ मौजूद हैं। आप पाएँगे कि इस तालाब का सबसे सुंदर आकर्षण इसमें स्थित मैया मंडपम नाम का एक मंडप है, जिसमें भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित है। 

मदुरै के शासक राजाथिरुमलाई नायक की जयंती पर हर साल थाई के महीने में अर्थात जनवरी-फरवरी के दौरान यहाँ के सबसे रंगीन मंदिर त्योहारों में से एक आयोजित किया जाता है, जिसे लोग ‘फ्लोट फेस्टिवल’ के नाम से जानते हैं। 

  तेप्पकुलम

अज़गर कोविल

यदि आपकी रुचि मनोरम वास्तुकला और नक्काशीदार मूर्तिकला से सुसज्जित मंदिरों को देखने में है, तो यहाँ के बेहद मशहूर अजहर कोइल मंदिर में अवश्य जाना चाहिए, जो इस क्षेत्र के सबसे आकर्षक मंदिरों में से एक है तथा अलगर पहाड़ियों की तलहटी में व्याप्त हरे-भरे वातावरण के मध्य स्थित है। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर अपना एक अलग ही धार्मिक महत्व रखता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल के दौरान, इस मंदिर में दो पांडव भाइयों, युधिष्ठिर और अर्जुन ने आकर पूजा-अर्चना की थी। 

इसे मंदिर से जुड़ी एक और लोकप्रिय कहानी संत रामाजुन के एक शिष्य की है जिन्होंने इस मंदिर परिसर में आकर अपनी खोई हुई दृष्टि को फिर से प्राप्त कर लिया था। भगवान विष्णु अथवा तिरुमल को इस इलाक़े में उनके स्थानीय नाम अलगर के नाम से भी जाना जाता है, और यहाँ की अलगर पहाड़ियों का नाम भी उन्हीं  के नाम पर रखा गया है। जब आप मंदिर के आसपास के खंडहरों का अवलोकन करेंगे, तो स्वयं महसूस करेंगे कि कभी इस मंदिर के चारों ओर एक प्राचीन शहर मौजूद था। 

अज़गर कोविल

श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर

देश के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक गिना जाने वाला श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर मदुरै का सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक तीर्थसम स्थान है। मन को मोह लेने वाली द्रविड़ वास्तुकला का बेजोड़ उत्कृष्ट उदाहरण माना यह मंदिर एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। साथ ही बहुत क़ायदे के रखरखाव से प्रबंधित किए गए बागानों और प्राचीन फव्वारों से आच्छादित यह मंदिर बरबस ही आपका हृदय आकर्षित कर लेता है। दरअसल इस पूरे मंदिर परिसर में दो श्रद्धास्थल स्थित हैं। और इन दो मंदिरों को ख़ास बनाते हैं इनके 10 से अधिक द्वार (जिन्हें यहाँ गोपुरम कहा जाता है), इनके विस्तार में व्याप्त कई मंडप और साथ ही एक ताल। पूरा परिसर अंदर और बाहर दोनों तरफ़ सुंदर नक्काशी से सुशोभित है, जिसे अनदेखा कर पाना आपके लिए मुमकिन बिलकुल नहीं होगा। 

एक अजूबा जो आप यहाँ देखेंगे, वह है इस मंदिर का एक विशिष्ट मंडप जिसे "1,000 खंभों का हॉल" के नाम से जाना जाता है, हालाँकि सच यह है कि उन 1000 खंभों में से अब केवल 985 ही मौजूद हैं। इस हॉल की सबसे मज़ेदार बात यह कही जाती है कि जिस भी दिशा से आप इसके खंभों को देखते हैं, वे सब हमेशा एक सीधी रेखा में खड़े हुए से महसूस होते हैं। यहाँ भ्रमण करते समय जब आपके बाहरी गलियारे से गुजरेंगे तो एक और अजूबे से परिचित होंगे, क्योंकि इसके खंभे संगीत के सुरों से सजे बताए जाते हैं। जब आप इन्हें थपथपाएंगे, तो यह खंभों से संगीत के अलग-अलग सुरों का मधुर सृजन होता सा प्रतीत होता है। इस मंदिर का सुंदरेश्वर के नाम से प्रख्यात प्रभाग भगवान शिव को समर्पित है, जबकि दूसरा प्रभाग उनकी पत्नी पार्वती जी जिन्हें यहाँ ‘मीनाक्षी’ के नाम से भी जाना जाता है, को समर्पित है।

श्री मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर