शहर के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक कालीघाट मंदिर, देवी काली का मंदिर है, दूर-दूर से बड़ी संख्या में भक्त इसे देखने आते हैं। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है (वे भक्ति मंदिर जहां देवी सती के शरीर के अलग-अलग हिस्से गिरे थे), जहां देवी का पैर का अंगूठा गिरा था। शक्तिपीठ उन मंदिरों को कहा जाता है, जहां देवी सती के शरीर के अलग-अलग हिस्से गिरे थे।
गर्भगृह में देवी की एक अनूठी मूर्ति है, जिसकी तीन आंखेें, चार हाथ और एक लंबी जीभ दिखाई गई है। इस संरचना में लगे टाइल्स पर मोर और फूलों का चित्र बना हुआ है, जो इस मंदिर को एक औपनिवेशिक आकर्षण प्रदान करता है। पर्यटक परिसर के अंदर स्थित कुंडूपुकर नामक एक पवित्र तालाब भी देख सकते हैं। किंवदंती है कि इसमें स्नान करने से महिलाओं को गर्भधारण में आसानी होती है।
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण गुप्त साम्राज्य के शासक (380-415 सीई) चंद्रगुप्त द्वितीय के समय में हुआ था। इसका मूल ढांचा एक छोटी सी झोंपड़ी थी, जबकि वर्तमान मंदिर का निर्माण कोलकाता के एक जमींदार सबरन रॉय चौधरी ने किया है।
किवदंती है कि जब भगवान शिव देवी सती के शव को कंधे पर रखकर रूद्र तांडव नृत्य कर रहे थे, तो उनका शव क्षत विक्षत हो गया और उसके टुकड़े विभिन्न स्थानों पर गिरे। इनमें से प्रत्येक स्थान एक शक्तिपीठ बना, इन 51 शक्तिपीठों का अलग-अलग धार्मिक महत्व है। कहा जाता है कि एक भक्त ने भागीरथी नदी के तल से प्रकाश की एक किरण देखी। उन्हें वहां पत्थर से बना एक पैर और साथ ही पास में नकुलेश्वर भैरव का एक संभू लिंग मिला। भक्ति से अभिभूत होकर, वह पास के जंगल में जाकर देवी काली से प्रार्थना करने लगा। एक अन्य कहानी के अनुसार, एक दसनामी साधु, जिसका नाम चौरंगा गिरि था, उसने यहां आकर देवी काली से प्रार्थना की। यह कहा जाता है कि कोलकाता का चौरंगी क्षेत्र उनके नाम पर है।

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