जैसलमेर का किला

जीते जागते थार रेगिस्तान की सर्वोत्तम रचना एक शानदार संरचना है जो पीले बलुआ पत्थरों से बनी है और जो जैसलमेर का किला कहलाती है। त्रिकुटा ;तीन चोटियों वालाद्ध पर्वत की चोटी पर स्थित यह भव्य किला सीधा रेगिस्तान से उठता हुआ नज़र आता है और इसका चमचमाता हुआ पथरीला अग्रभाग ऐसा प्रभाव डालता हैए जैसे यह भव्य थार का विस्तार हो। इस स्थापत्य कला के चमत्कार का बेहतरीन नज़ारा सूर्यास्त के समय किया जा सकता है जब ढलते हुए सूरज की रौशनी में किला जलता हुआ सा लगता हैए इसी कारण इसने युनेस्को की विश्व धरोहर की साइट में स्थान बनाया है।

यह किला बड़ी मेहनत से तराशी गई एक संरचना के लिए जाना जाता हैए जिसे राज महल कहते हैं और जो भूतपूर्व राज घराने का निवास स्थान है और जिसमें सुंदर जैन और लक्ष्मीनाथ मंदिर स्थित हैं। इस किले ने ऑस्कर विजेता फिल्म निर्माता सत्यजीत रे के दिल में भी आकर्षण पैदा किया जिन्होंने इसे अपनी एक फिल्म श्सोनार किलाश् या सोने का किला में स्थान दिया। यह प्रभावशाली संरचना 1156 ईस्वी में राजपूत शासक द्वारा बनवाई गईए और जिसे जैसलमेर के आगामी शासकों द्वारा शक्तिशाली बनाया गया। यह किला भाटियोंए दिल्ली के मुग़लों और जोधपुर के राठौरों के बीच हुई कई लड़ाइयों के लिए मशहूर है और इसके चार विशाल दरवाजे हैं। 

जैसलमेर का किला

कुलधरा

जैसलमेर शहर की सीमा पर परित्यक्त गाँव कुलधरा के खंडहर हैं जिन्होंने सदियों से पर्यटकों के मस्तिष्क को मोहित कर रखा है। सन 1800 के आस पास यह गाँव समृद्ध कस्बा हुआ करता थाए लेकिन कहा जाता है कि एक विशाल त्रासदी के बाद कस्बे के निवासी इसे रातों रात छोड़ गए। किंवदंती के अनुसार किसी ने गाँव वालों को वहाँ से जाते नहीं देखाए और न ही कोई इस बड़े पैमाने पर पलायन का कारण ही जानता है। तब से कोई भी यहाँ आबाद नहीं हो पाया।

इस बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं कि कैसे एक क्षेत्र के लगभग हज़ार निवासी ग़ायब हो गएए और यह इसे इतिहास का सबसे दिलचस्प और रोमांचक विषय बनाता है। इस उजाड़ए परित्यक्त स्थान के खंडहरों से होकर गुजरना आप को इतिहास की समय यात्रा पर ले जाता है। लगभग 200 साल पुराने खंडहरों की खुदाई में जल संरक्षण की कुछ दिलचस्प तकनीकें प्राप्त हुई हैंए जो ऐसे रेगिस्तान में जहां पानी दुर्लभ वस्तु हैए एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। गाँव के परित्यक्त मकानों को अक्सर फिल्म के सेट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। पर्यटक ऊंटों की सवारी द्वारा इस गाँव की सैर कर सकते हैं जो पर्यटन के मौसम में हर जगह आसानी से उपलब्ध हो जाती है। 

कुलधरा

नथमल की हवेली

यह हवेली इस्लामी और राजपूताना स्थापत्य कलाओं के सम्मिश्रण का बेहतरीन नमूना है। इसका निर्माण19वीं सदी में दो वास्तुविद भाइयों के द्वारा कराया गयाए जिन्होंने इसका निर्माण विपरीत छोरों से आरंभ किया। इस महल के दाहिने और बाएँ अग्रभाग एक दूसरे के समान हैंए लेकिन एकरूप नहीं हैं। यह निर्देशित असमानता इस हवेली के वास्तुकृत सौंदर्य में चार चाँद लगाती है। मिनिएचर पद्धति चित्रकलाएँ और पीले पत्थरों पर उकेरी गई महाबली गजदंतों की आकृतियों से इस महल के अंदरूनी हिस्से को सजाया गया है।

इसके द्वार पर सजी आदम कद मूर्तियाँ इस ऐतिहासिक धरोहर के द्वारपाल जैसे लगते हैं। यह आसानी से समझा जा सकता है कि प्राचीन जैसलमेर में यह हवेली सभी स्थानीय गतिविधियों का केंद्र रही होगीए जब कि आज यह कई आधुनिक मकानों और संकरी गलियों के पीछे छुप गई हैए यह सारी गलियाँ इस हवेली तक जाती हैं। हालाँकि हवेली काफी हद तक बसी हुई हैए आप इसकी पहली मंज़िल तक की सैर करने का मौका पा सकते हैं जिसमें चित्रों को सोने के वरक़ का इस्तेमाल करते हुए खूबसूरती से सजाया गया है। नथमल की हवेली को दीवान मोहाता नथमलए जो जैसलमेर के प्रधानमंत्री थेए के निवास के लिए बनाया गया था। इसका निर्माण महारावल बेरी साल की देख रेख में हुआ था। 

नथमल की हवेली

पटवों की हवेली

जैसलमेर के मुख्य शहर की संकरी गलियों में स्थित खूबसूरत पटवों की हवेली अपनी खूबसूरत चित्रकलाओंए जटिल नक्काशी और स्थापत्य के भव्य तरीके के कारण मशहूर है। यह पूरी संरचना केवल एक हवेली नहीं बल्कि पाँच छोटी सुंदर हवेलियों का एक समूह है। इनमें से पहली हवेली का निर्माण सन 1805 में गुमान चंद पटवा द्वारा कराया गया था। इस भव्य महल की भीतरी दीवारों पर कुछ चित्र और शीशे का कलात्मक काम किया गया है।

उन पर्यटकों को जो इस क्षेत्र के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास में दिलचस्पी रखते हैंए सेवाएँ देने के लिए महल के एक हिस्से को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया हैए जिसमें 19वीं शताब्दी की शुरुआत की कई कलाकृतियों को रखा गया है। इस हवेली के कोने कोने में व्यक्तिगत चित्र और हर मेहराब के विषयवस्तु में स्थानीय राजस्थानी शिल्पकारों की मेहनत और सुरुचिपूर्ण हुनर का जायजा लिया जा सकता है। हालांकि पूरी हवेली सुनहरे पत्थरों की बनी हैए पटवों की हवेली का मुख्य द्वार कत्थई रंग का है। 

पटवों की हवेली

अकाल वूड फोस्सिल पार्क

जैसलमेर का अकाल वूड फोस्सिल पार्कए जो खोजकर्ताओं के लिए ईनाम जैसा हैए आप को समय यात्रा में प्रागैतिहासिक युग में ले जाएगा। यह एक 21 हेक्टेयर का संरक्षित क्षेत्र हैए जिसे भारत के राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक के तौर पर वर्गीकृत किया गया है और यह जैसलमेर से लगभग 17 किमी दूर स्थित है। यह क्षेत्र 18 करोड़ साल पहले एक वन हुआ करता था। एक विशेष कालखंड में पूरा इलाका उस युग के समुद्र में जलमग्न हो गया और पेड़ों के तने के जीवाश्म यहाँ दर्शन के लिए रखे गए हैं।

वन जीवाश्म पार्क में उस युग के कई लट्ठे रखे गए हैं जो एक टीन की छत के नीचे हिफाजत से रखे हुए हैं। लगभग 25 सुन्न पेड़ए सदियों पुराने जीवाश्म इस पार्क में रखे गए हैंए जो गुज़री सदियों की कहानी कहते हैं। बिलकुल प्रवेश द्वार पर आप एक प्राचीन रक्त.दारु के पेड़ के तने का जीवाश्म देख सकते हैंए जो दर्शकों को इस पार्क के स्तब्ध कर देने वाले संरक्षित इतिहास का एक अंदाज़ा देने के लिए है। यह पार्क रेगिस्तान के बीचों.बीच स्थित हैए जो किसी युग में एक हरा भरा वन हुआ करता था और जो बाद में जलमग्न हो गया था। यह सब देख कर कोई भी इस ग्रह के घटनापूर्ण इतिहास पर हैरत करेगा। 

अकाल वूड फोस्सिल पार्क