पीले बालू के पर्वत की पृष्ठभूमि में बना गेटोर स्मारक एक ऐसी जगह है जहां जयपुर के पूर्व राजाओं को दफ़नाया जाता था। गेटोर आमेर के किले की ओर जाने वाले मार्ग के बगल के रास्ते पर स्थित है। सफेद संगमरमर की ये छतरियां उत्कृष्ट राजस्थानी शैलियों में निर्मित हैं। हर एक छतरी पर की गई कारीगरी, यहां दफ़नाए गए राजा की हैसियत दर्शाती है। इन छतरियों में सबसे शानदार छतरी, जिसके 20 स्तंभों पर मूर्तियां उकेरी गई हैं, वह महाराजा जयसिंह द्वितीय (1688-1743) से संबंधित है। कइयों का मानना है कि इन छतरियों पर की गई नक्काशी हर एक राजा की रुचि के अनुरूप थी तथा उस दौर की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती प्रतीत होती है।

ऐसा माना जाता है कि ‘गेटोर’ शब्द हिंदी के मुहावरे ‘गये का ठौर’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है दिवंगत आत्माओं की आरामगाह। जयपुर से गेटोर की दूरी 15 किलोमीटर है। 

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