सफेद रंग में की एक शानदार संरचना, जय विलास पैलेस एवं संग्रहालय यूरोपीन शैली में बना एक देखने लायक महल है जो शहर के मध्य में स्थित है। हर कोण से समृद्ध दिखने वाले इस महल में ग्वालियर के शासकों के निजी संग्रह की अनोखी वस्तुएं सहेजकर रखी गई हैं। 

ब्रिटिश लेफ़्टिनेंट-कर्नल सर माइकल फिलोस ने सन 1874 में महाराजा जयाजी राव सिंधिया के नेतृत्व में एक करोड़ रुपए की लागत से इस महल का निर्माण किया था। इस महल की वास्तुकला अनेक यूरोपीय शैलियों से प्रभावित है। इस महल की पहली मंज़िल टस्कन शैली, दूसरी मंज़िल इतालवी-डोरिक एवं तीसरी मंज़िल कोरिंथियन शैली से प्रभावित है। इसका दरबार हॉल 12,40,771 वर्गफुट के बेहद व्यापक क्षेत्रफल में बना हुआ है। यहां रखी हुईं सभी चीजें देखने में बहुत आकर्षक लगती हैं। दरबार हॉल में रखी सोने के पत्तर एवं स्वर्ण से बनीं सभी वस्तुएं चमचमा रही हैं। इसमें दो विशाल फानूस लगे हैं तथा एशिया का सबसे बड़ा कलीन भी रखा गया है। ऐसा कहा जाता है कि दरबार हाल की छत पर इन दो फानूस को लगाने के लिए आठ हाथियों की मदद ली गई थी, जिनका भार 3.5 टन है।

इसका एक अन्य भाग जो महल को गौरवान्वित करता है कि वह इसका बैंक्विट हॉल है। इसमें विशुद्ध चांदी से बनी रेल गाड़ी का मॉडल भी है, जो बड़ी-सी खाने की मेज़ पर दौड़ती थी। जिसमें खाने के पश्चात पीने वाली ब्रांडी एवं सिगार रखे होते थे। इस महल में एक ऐसा भी कक्ष है, जिसमें शुद्ध क्रिस्टल का फर्नीचर रखा हुआ है। इस कमरे में पहुंचने के लिए सीढ़ियां भी क्रिस्टल की बनी हुई हैं। 

महल के 35 कमरों में संग्रहालय बना हुआ है, जिसमें शाही परिवार के संग्रह से ली गईं विभिन्न वस्तुएं रखी गई हैं। वहीं यहां परिवहन संभाग भी है, जिसमें चांदी की बग्घी, चांदी का रथ, पालकियां, पुरानी आलीशान कारें विद्यमान हैं।इस संग्रहालय में भारतीय एवं यूरोपीयन कलाकारों द्वारा बनाई गई दुर्लभ चित्रकारी भी देखने को मिलेंगी। नेपोलियन एवं टीपू सुल्तान की लिथो छपाई, इस परिवार के कुछ दुर्लभ संग्रह हैं जिन्हें संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है। 

अन्य आकर्षण