स्वस्वर का शाब्दिक अर्थ है अंतरात्मा की आवाज, जो अपने आप में एक विशिष्ट समुद्र तटीय आश्रय है। कर्नाटक में, गोवा की दक्षिणी सीमा से ठीक ऊपर बसा यह स्थान गोकर्ण के मध्य भाग से सिर्फ आधे मील की दूरी पर है। इस आश्रय स्थली का निर्माण प्राकृतिक तत्वों को धरती के रंगों में और निकटवर्ती ओम समुद्र तट की लहराती जलराशि को प्रतिबिंबित करने के लिए किया गया है। यह एक आश्रम और एक पारंपरिक स्पा (जल स्रोत) की सर्वोत्तम व्यवस्था का बेजोड़ मिश्रण है। एकडों में फैले धान के लहलाते खेत और नारियल के वृक्षों के उपवन अनेकों योग और ध्यान केंद्रों के लिए एक शांत-स्वच्छ पृष्ठभूमि का निर्माण करते हैं, जो इस परिदृश्य में चार चाँद लगा देते हैं। यहाँ, इस आश्रय-स्थली में पर्यावरण-हितैषी गतिविधियों को अपनाने का भरसक यत्न किया जाता है। रसोई में पके अधिकाँश भोजन स्थानीय स्रोतों से बनाये जाते हैं, जिनमें से कई तो आश्रय के अपने खेतों में उपजा लिए जाते हैं। व्यंजनों के लिए स्थानीय जायके का इस्तेमाल किया जाता है और पूरी चेष्टा इस बात की रहती है कि खाद्य वसा-मुक्त और पौष्टिक हो। इस आश्रय-स्थली में एक और महत्त्वपूर्ण प्रचलन अपनाया गया है और वह है इस्तेमाल किए गए जल का पुनर्चक्रण और फिर उसी जल का उपयोग किया जाना। इस आश्रय-स्थली का एक रोचक पहलू वर्षा जल-संग्रह पद्धति है, जिसे इस तरह से संचालित किया जाता है कि यह जल के मामले में इसे आत्म-निर्भर बनाता है। यहाँ तक कि पेयजल भी उसी झरने से परिष्कृत करके हासिल किया जाता है जिसमें वर्षा जल का संग्रह और तत्पश्चात दोहन किया जाता है। आप स्वस्वर में कायाकल्प कर देने वाले ठहराव का आनंद उठा सकते हैं, जहाँ आप अपनी आंतरिक शक्ति और शांति को फिर से हासिल कर सकते हैं और यहाँ ठहरते हुए आपको इस बात का अत्यंत सुकून मिलेगा कि आप यहाँ रुक कर स्थानीय पारिस्थितिकी-प्रणाली का कोई अहित नहीं कर रहे बल्कि उसे लाभ ही पहुँचा रहे हैं।

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