15वीं सदी में बना मंगला गौरी मंदिर देवी सती या शक्ति को समर्पित है। इस क्षेत्र में व्यापक रूप से पूजे जाने वाली देवी मंगला गौरी को परोपकार की देवी माना जाता है। मंगला गौरी पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर को उन 18 महाशक्तिपीठों में गिना जाता है जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। वर्षा-ऋतु में हर मंगलवार को यहां एक विशेष पूजा आयोजित की जाती है। इस दिन स्त्रियां व्रत रखती हैं ताकि उनके परिवार समृद्ध हों और उनके पति को सफलता व प्रसिद्धि प्राप्त हो। इस पूजा में देवी मंगला गौरी को 16 प्रकार की चूड़ियां, सात किस्म के फल और पांच तरह की मिठाई समर्पित की जाती है। सबसे पहले देवी की मूर्ति या तस्वीर को दूध, दही और पानी से स्नान करवा कर लाल कपड़े में लपेटा जाता है। फिर सिंदूर, मेंहदी और काजल से देवी का श्रृंगार करके लकड़ी के पटरे पर स्थापित किया जाता है। फल, मिठाइयां, आभूषण आदि मूर्ति या तस्वीर के सामने रख कर प्रार्थना की जाती है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने जब देवी सती के मृत शरीर को सुदर्शन चक्र से विच्छेद किया था तो देवी के स्तन यहां आ गिरे थे। इसीलिए यहां पर देवी के स्तनों को पोषाहार का स्वरुप मान कर पूजा जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव, दुर्गा, देवी दक्षिण-काली, महिषासुर मर्दिनी और देवी सती के विभिन्न स्वरूपों के दर्शन किए जा सकते हैं। इस मंदिर का वर्णन पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, श्री देवी भगवत पुराण और मार्कंडेय पुराण में भी मिलता है। इस परिसर में मां काली, गणपति, शिव और हनुमान के मंदिर भी हैं। इस छोटी-सी पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू करते ही पांडव भाइयों में से एक, भीम का मंदिर भी दर्शनीय है। यहां पर एक घुटने का चिन्ह् है और स्थानीय मान्यता है कि यहां पर भीम ने श्राद्ध-कर्म किया था। इस जगह को भीमवेदी गया के नाम से जाना जाता है।

अन्य आकर्षण