कुपुप झील

क्या आप एक ऐसी झील देखना चाहेंगे, जो साल के पांच महीने बर्फ से जमी रहती है? एक ऐसी झील, जिसके पास बना गोल्फ कोर्स का नाम गिनिज बुक आफ रिकार्ड्स में दर्ज है। बेशक यह झील भारत में है और अगर आप गंगटोक आ रहे हैं, तो यहां जाना मत भूलियेगा। करीब 13066 फीट की ऊंचाई पर स्थित कुपुर झील को इसकी विशेष ऊंचाई की वजह से एलीफेंट लेक भी कहा जाता है। क्योंकि दूर से देखने पर यह झील एक हाथी के जैसी ही दिखाई पड़ती है। गंगटोक के बेहद प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक यह झील सिल्क रूट के रास्ते में पड़ती है। भारत और चीन की सीमाओं पर स्थित जेलेप ला दर्रा जाते समय दिखाई देने वाली इस झील का दांया हिस्सा, हाथी की सूंड के जैसा लगता है, जबकि बांया हिस्सा हाथी पूंछ से मिलता-जुलता है। स्थानीय लोग इस झील को बिट्टन झो के नाम से भी पुकारते हैं। 

एक बेहद खूबसूरत घाटी में बनी यह झील किसी परिलोक की कथाओं सी लगती है। यह झील जनवरी से मई तक पूरी तरह जम जाती है और अक्तूबर से दिसंबर के दौरान इस पर बर्फ की हल्की हल्की सी परत चढ़ी रहती है। लेकिन वसंत के महीनों में यह पूरी घाटी और झील के किनारे रंग बिरंगे फूलों से भर जाते है, जो मनभावन दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यहीं पास में बहुत सीमित घरों वाला कुपुप गांव भी है, जो अपनी सादगी की वजह से सैलानियों को खासा पसंद आता है। यहां विश्व का सबसे ऊंचा 18 होल्स गोल्फ कोर्स भी है, जो करीब 13025 फीट की ऊंचाई पर है। याक गोल्फ कोर्स के नाम से मशहूर यह गोल्फ कोर्स भारतीय गोल्फ यूनियन से सन 1985 से सम्बद्ध है तथा गिनिज बुक आफ वर्ल्ड रिकाड्स में भी इसका नाम दर्ज है। कुपुप लेक देखने आने वाले सैलानियों को यह गोल्फ कोर्स भी जरूर देखने आना चाहिये। 

कुपुप झील

डियर पार्क

जैसा कि इस उद्यान के नाम से प्रतीत होता है, गंगटोक में स्थित इस डियर पार्क को हिरणों का गढ़ जाए तो गलत नहीं होगा। इस पार्क की स्थापना सन 1950 में की गयी थी और तब से लेकर आज तक यहां सिक्किम तथा आस-पास के राज्यों से हिरण लाये जाते रहते हैं। यह अभयारण्य नये सचिवालय के वन्य क्षेत्र में बना है और यहां सैलानियों की आवाजाही के खासतौर पर ऐसे रास्ते बनाए गये हैं, जहां से वह जंगल प्राकृतिक माहौल में विचरण करते हिरणों को बड़े आराम से देख सकते हैं। वैसे हिरणों के अलावा यहां रेड पांडा और हिमालयी भालू जैसे अन्य वन्य जीवों को भी संरक्षण दिया जाता है। यहां इस पार्क में महात्मा बुद्ध की भी एक प्रतिमा स्थापित है, जहां वह अपने अनुयायियों को सत्य की शिक्षा देते हुए दिखाई देते हैं। इस प्रतिमा के समक्ष फूलों से सजे एक छोटे से मंच पर घी का दीपक हमेशा प्रज्वलित रहता है। 

भगवान बुद्ध की यह प्रतिमा उनके पहले प्रवचन के समय की याद दिलाती है, जो उन्होंने उत्तर प्रदेश के सारनाथ में स्थित मृग उद्यान में दिया था और उनके कस्तूरी मृग के अवतार के बारे में भी बताती है। इस पार्क का शांत और सुकूनमयी वातावरण सैलानियों को प्रकृति और करीब ले जाता है। वैसे इस जगह को रुस्तमजी पार्क के नाम से भी जाना जाता है। रुस्तमजी, सिक्किम के चोग्याल परिवार के दीवान हुआ करते थे, साथ ही बेहद प्रसिद्ध पुस्तक एन्चांटेड फ्रंटियर्स के लेखक भी हैं। 

डियर पार्क

भंजकरी जलप्रपात

करीब 2 एकड़ के विशाल खूबसूरत उद्यान से घिरा भंजकरी वाटरफाल, कुदरत की एक मनोहारी चित्रकारी सा प्रतीत होता है। जब 40 फुट की ऊंचाई से दूध सा सफेद पानी गर्जना के साथ, धरती पर विशाल पत्थरों से टकराता है, तो मानो लगता है कि किसी चक्रवर्ती सम्राट का विजयघोष हो रहा है। रंका मोनेस्ट्री के पास पड़ने वाला यह जलप्रपात अब एक एनर्जी पार्क में तब्दील हो गया है, जहां गैर पारंपरिक तरीकों से ऊर्जा उत्पादन किया जाता है। यहां हर ओर छोटे-छोटे ठिकाने बने हुए हैं, जहां खड़े होकर पर्यटक इस जगह की खूबसूरती का आनंद लूट सकते हैं, साथ ही सिक्किम शैली में छोटे-छोटे पुल भी बनाए गये हैं, जिनकी मदद से सैलानी एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकते हैं। वैसे आप चाहें तो यहां की मानव निर्मित झील में बोटिंग का आनंद भी ले सकते हैं। इस झील में एक ड्रैगन का स्टैचू बच्चों को खासा आकर्षित करता है। इसलिए अगर बड़ों के साथ बच्चे थोड़ा बोर हो रहे हैं, तो उन्हें यहां बेझिझक लाया जा सकता है। यदि आप घूमते-धूमते थक जाएं तो यहां एक छोटा सा कैफेटेरिया में आपको हल्का-फुल्का नाश्ता तो बड़े आराम से मिल जाएगा, साथ ही यहां आप अपनी थोड़ी थकान भी उतार सकते हैं। जो लोग शमन संस्कृति में जिज्ञासा रखते हैं और उसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं, उनके लिए यहां एक सूचना केन्द्र है तथा एक दुकान भी है, जहां से आप संबंधित वस्तुओं की खरीदारी याद के रूप में घर ले जा सकते हैं। 

सिक्किम में बसे नेपाली समुदाय के लोग मानते हैं कि भंजकरी पारंपरिक ओझा होते हैं और पहले भंजकरी के पास बुरी आत्माओं को भगाने की शक्ति हुआ करती थी। शायद यही वजह है कि इस जगह भ्रमण करना अपने आप में एक यादगार अनुभव सा हो जाता है। 

भंजकरी जलप्रपात

सेवन सिस्टर्स वाटरफाल

एक के बाद एक झरनों की ऐसी श्रृंखला शायद ही कहीं और देखने को मिले। हालांकि इस अनूठे झरने का राज इसके नाम में ही छिपा है। सेवन सिस्टर्स वाटरफाल, एक बड़ी सी चट्टान से बहते हुए सात झरनों का बेहद सुंदर नजारा है, जो उत्तर-पूर्व के सबसे ज्यादा खूबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक है। इन झरनों को तीन अलग-अलग स्तरों से और बहुत दूर से निहारा जा सकता है। इन सात झरनों में से चार झरनों को नीचे से देखा जा सकता है, जबकि बाकियों  के लिए पहाड़ी पर चढ़ाई करनी पड़ती है। यहां से आगे जाने के लिए एक छोटा सा पुल भी बनाया गया है, जिससे गुजरते समय झरने से आती ठंडी-ठंडी बौछारों का अपना ही आनंद है। जून और जुलाई के महीनों में यहां खूब बरसात होती है, जिससे झरनों में पानी का बहाव काफी तेज हो जाता है। बड़ी चट्टान के सहारे पतली-पतली धाराओं में जब यह पानी बहता हुआ दिखता है, तो बड़ा सुहावना दृश्य बन पड़ता। इसलिए इस खूबसूरत नजारे का पूरा लुत्फ उठाने के लिए यहां मानसून के दौरान ही आना चाहिये। झरनों का कल कल बहता पानी जब नीचे पड़ी चूना पत्थर की चट्टानों से टकराता है तो किसी तूफान के गरजने जैसी आवाज होती है और ये आवाज लगातार आती रहती है। यहां के इस मनभावन माहौल की वजह से बड़ी संख्या में सैलानी पिकनिक मनाने आते हैं और फोटोग्राफी का शौक रखने वालों के लिए तो यह स्थान किसी खूबसूरत सपने जैसा है। 

यह खूबसूरत वाटरफाल गंगटोक से 32 किमी दूर लाचुंग जाते हुए उŸारी सिक्किम हाईवे पर पड़ता है। इन झरनों को पर्यटकों के बीच और अधिक लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से पर्यटन एवं नागर विमानन विभाग द्वारा यहां एक छोटा सा कैफेटेरिया भी बनाया गया है. जहां लोग नाय-नाश्ता करने के साथ-साथ थोड़ा सुस्ता भी सकते हैं। 

सेवन सिस्टर्स वाटरफाल

ताशि व्यू प्वाइंट

गंगटोक का मौसम जब एकदम साफ हो, हल्की हल्की हवा चल रही हो और थोड़ी सी धूप खिली हो, तो सैलानियों का रेला ताशि व्यू प्वाइंट की ओर जाता दिखाई देता है। जहां से कंचनगंघा पर्वत और सिनिओलचू पर्वत का बेहद शानदार दृश्य नजारा आता है। ताशि व्यू प्वाइंट से उत्तरी सिक्किम में बसे छोटे-छोटे गांव एक खूबसूरत सी रंग-बिरंगी झांकी की तरह प्रतीत होते हैं। गंगटोक से करीब 8 किमी की दूरी पर स्थित ताशि व्यू प्वाइंट का निर्माण सिक्किम के दिवंगत राजा ने बनवाया था। इस जगह से पहाड़ों के बीच से सूर्योदय का नजारा ऐसा लगता है मानो किसी ने बर्फ से ढकी पहाड़ियों को सिंदूरी रंग में रंग दिया हो और सूर्य की यही किरणें जब शाम को मध्यम पड़ने लगती हैं तो बर्फ से ढकी यही पहाड़ियां सिंदूरी से तब्दील होकर सुरमई रंग में लिपट जाती हैं। हालांकि यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा तो हसीन लगता ही है लेकिन दिनभर में सूरत की बादलों संग लुकाछिपी भी जगह स्थान को एक अलग चार्म देती है। सैलानियों के यहां बैठकर इस पूरे माहौल का लुत्फ उठाने के लिए राज्य सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा एक छोटा सा कैफेटेरिया भी बनाया गया है, साथ ही लोगों के बैठने का भी इंतजाम किया गया है। अब पर्यटक यहां की गुनगुनी धूप का मजा लेते हुए इन पहाड़ी हसीन वादियों में खो से जाते हैं। 

यहां के शांत माहौल में गरमा गरम चाय की प्याली की चुस्कियां, कुछ और देर ठहर जाने का अनुरोध सा करती प्रतीत होती हैं। ताशी व्यू प्वाइंट तक आने के लिए किसी प्रकार का शुल्क आदि नहीं लिया जाता, लेकिन यहां से दूर-दूर के नजारों को करीब देखने के लिए सैलानी दूरबीन किराये पर ले सकते हैं। 

ताशि व्यू प्वाइंट