तिब्बत से बाहर तिब्बती शिल्प और साहित्य का अनूठा संग्रह इस संस्थान में देखने को मिलता है। नामग्याल तिब्बत अध्ययन संस्थान, भारत में पहला और दुनिया में तीसरा ऐसा संस्थान है, जो तिब्बती सभ्यता-संस्कृति, कला, उपदेशों, रीती-रिवाजों आदि का प्रचार-प्रसार करता है। संस्थान की नींव सन 1957 में 14वें दलाई लामा द्वारा रखी गयी थी और सन 1958 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित ने संस्थान का उद्घायन किया था। तिब्बती संस्कृति से जुड़ी किताबों का एक विशाल संग्रह यहां के पुस्तकालय में देखा जा सकता है, जिनमें हिमालयी तिब्बती रीती-रिवाजों से संबंधित अनेकों पुस्तकें भी यहां देखने को मिलती हैं। दक्षिणी गंगटोक से पांच किमी की दूरी पर डोरली में स्थित एनआईटी में बौद्ध धर्म से जुड़ी करीब 200 से अधिक मूर्तियां और कलाकृतियां प्रदर्शित की गयी हैं। यह संस्थान महायान बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के समझने, उन पर शोध करने तथा तिब्बती संस्कृति से जानने शोध करने हेतु स्थापित किया गया है। यहां पर्यटकों को पारंपरिक तिब्बती वास्तु-कला आकर्षित करती है, साथ ही यहां लेपचा या लेप्चा (जनजाति) से जुड़ी तमाम जानकारी, शिलालेख, वस्तुएं तथा मूर्तियां और कुछ बेहद दुर्लभ थंका (चित्र यवनिका, ऐसा कपड़ा जिस पर बौद्ध धर्म से जुड़े चित्र और आकृतियां बनी होती हैं, जो प्रार्थना आदि के समय इस्तेमाल किया जाता है।) भी देखे जा सकते हैं। यहां भूतल पर स्थित संग्रहालय में अष्टसाहस्त्रिका प्रज्ञापारमिता जैसी विशिष्ट पांडुलिपि जो कि तिब्बती स्वर्ण लिपि में लिखी गयी है, के अलावा 11वीं शताब्दी में रत्नाकर शांति द्वारा ताड़ के पŸां पर लिखी गयी सृतामा प्रज्ञापारमिता पांडुलिपियां भी देखी जा सकती हैं। वैसे तो यह पांडुलिपियां इस संग्रहालय की सबसे कीमती और दुर्लभ वस्तुएं हैं, लेकिन यहां इससे भी ज्यादा कीमती है सम्राट अशोक के धर्म-प्रचारक, मध्यमा और कश्यपगोत्र के अवशेष जो यहां एक डिब्बे में संरक्षित हैं। तेजी से प्रसिद्ध होते इस संस्थान में अन्य देशों के सहयोग से बहुत से अधिछात्रवृति (फैलोशिप प्रोग्राम), संगोष्ठियों तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों आदि का आयोजन किया जाता रहता है। इन सभी आयोजनों तो सफल बनाने में संस्थान के निदेशक ताशी डेन्सपा की अग्रणी भूमिका रहती है। इसके अतिरिक्त संस्थान द्वारा विदेशी विद्वानों के सहयोग से बहुत से तिब्बती धर्म-संस्कृति पर पत्रिकाएं, विशेष लेख और शोधपत्र प्रकाशित किये जाते हैं। संस्थान के करीब ही बना हुआ है डेंजोंग चोग्याल यानी सिक्कम के राजा का स्मारक, जिनका नाम मिवांग चोग्याल शेम्पो पाल्देन थोन्दुप नामग्याल था।

अन्य आकर्षण