शा फले

यह तिब्बती व्यंजन तली हुई ब्रेड और मीट से बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए ब्रेड को कीमे और गोभी से भरा जाता है तथा इनको गुंजिया का आकार दे दिया जाता है। लेकिन गुंजिया एक शाकाहारी मिठाई है, जबकि शा फले बाहर से बेहद कुरकुरा होता है, जिसे तोड़ते ही उसके अंदर से स्वादिष्ट मीट निकलता है। इसे बनाने के लिए जिस ब्रेड का इस्तेमाल किया जाता है, वह मोमोज से भी नर्म होती है और उसे काफी खमीर उठाकर बनाया जाया है। वैसे इस पारंपरिक व्यंजन में मीट की जगह चीज और टोफु भी भरा जाता है, जिससे शाकाहारी लोग भी इसका जायका ले सकते हैं। 

शा फले

फगशापा

यह सुअर के मांस से बनने वाला व्यंजन है। फगशापा बनाने के लिए मूली, अदरक, लहसुन, सूखी लाल मिर्च और कुकर में पहले से पकाए हुए सुअर के मांस को मिलाकर अच्छी तरह से पकाया जाता है। यह व्यंजन स्वाद में खट्टा होता है, लेकिन इसमें मिर्च-मसाले ज्यादा नहीं होते। वैसे भी इसे बनाते समय तेल और मिर्च वगैराह का इस्तेमाल बहुत कम मात्रा में किया जाता है और गर्मियों में इसे विशेष रूप से खाया जाता है। नेपाल से आये इस व्यंजन को तिब्बती लोग चावल के साथ खाना ज्यादा पसंद करते हैं। पर्यटकों को इस व्यंजन के बारे में ज्यादा पता नहीं होता। इसलिए अगर आप गंगटोक जा रहे हैं, तो इस डिश को जरूर चखें। 

 फगशापा

गुन्द्रुक और सिन्की सूप

एक वेगन डिश के रूप में प्रचलित गुन्द्रुक बनाया जाता है खमीरीकृत पत्तेदार  सब्जियों जैसे- पत्तागोभी और मूली से। कभी-कभी इसे बनाते समय सरसो के पत्ते भी डाले जाते हैं। पारंपरिक रूप से इस व्यंजन को मिट्टी के बर्तन में ही बनाया जाता है। लेकिन इतने वर्षों में इसे बनाने के तरीके और सामग्री में काफी बदलाव आया है। सिन्की भी गुन्द्रुक की तरह एक पारंपरिक व्यंजन है, जिसे मूली और कंदमूल के साथ बनाया जाता है। इसमें कटी हुए कंदमूल और बांस को मिट्टी तथा पेड़-पौधों से ढक कर करीब एक माह के लिए छोड़ दिया जाता है और फिर उसे निकालकर सूरज की रोशनी में सुखाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया से सिंकी में आर्गेनिक एसिड की मात्रा काफी बढ़ जाती है तथा पीएच कम हो जाता है, जिससे यह लंबे समय तक जाता रहती है। 

गुन्द्रुक और सिन्की को मिलाकर एक खास किस्म का सूप बनाया जाता है, जो स्वाद में खट्टा होता है। अपनी इसी खटास की वजह से इसे खाने से पहले पिया जाता है, ताकि भूख खुलकर लगे। यह दोनों ही व्यंजन नेपाल से आये हैं और इन्हें बनाने में एक जैसी ही सामग्री का इस्तेमाल होता है।  

गुन्द्रुक और सिन्की सूप

थुक्पा

यह कहना गलत न होगा कि उत्तर  भारत में जो अहमियत समोसे और कचौरी की है, वैसा ही दर्जा यहां सिक्किम में थुक्पा को दिया जाता है। शोरबे जैसा यह व्यंजन पूर्वी तिब्बत की देन है, जिसे तिब्बती नूडल्स को सब्जियों या चिकन स्टू में क्लियर सूप के साथ बनाया जाता है। वैसे तो यहां थुक्पा की बहुत सारी किस्में चखने को मिलती हैं, लेकिन ग्याथुक, पठग, ड्रठग और बख्तू को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। बख्तू में गेंहू के आटे से बनी मैकरौनी, जिसे काऊरी कहते हैं, डाली जाती है। और थेंकुक को फ्लैट नूडल्स के साथ बनाया जाता है। गंगटोक में आपको लगभर हर दुकान पर वेजिटेबल थुपका जरूर मिलेगा। यहां थुपका बनाने के लिए सबसे ज्यादा मीट, गाजर, बेलपेपर, पालक, गोभी और सेलेरी का इस्तेमाल किया जाता है। मोनपा समुदाय के लोग थुपका विशेष रूप से पसंद करते हैं और वह पुटंग थुपका नामक एक अन्य थुपका भी बनाते हैं, जिसमें कुट्टू के आटे से बने नूडल्स को मीट या तली हुई मछली, लाल मिर्च, लहसुन और धनिया डालकर बनाया जाता है तथा ऊपर से मसाले और हरे पत्तेदार सब्जियां डाली डाती हैं। गंगटोक में मिलने वाले व्यंजनों में हरी प्याज का इस्तेमाल खासतौर से किया जाता है। यहां सर्दी के मौसम में थुपका विशेषरूप से रोजाना के आहार में शामिल किया जाता है। क्योंकि इसमें डाले जाने वाले मसाले शरीर को लंबे समय तक गर्म रखते हैं और ठंड से बचाव करते हैं। थुक्पा, गंगटोक का सबसे चर्चित स्ट्रीट फूड भी है और आपको हर थोड़ी दूरी पर गरमा गरम और पौष्टिक नूडल्स सूप वाला थुक्पा बेचते हुए बहुत से दुकानदार मिलेंगे। 

थुक्पा