गंगटोक के बाहरी छोर पर एक पहाड़ की चोटी पर स्थित इनहेंची मोनेस्ट्री (मठ) 200 वर्ष से भी अधिक पुरानी बताई जाती है। इनहेंची शब्द का शब्दिक अर्थ- अकेला मंदिर, होता है। और पूरी तरह हरे-भरे पेड़ों से घिरा यह बौद्ध मठ, प्रकृतिक सौंदर्य का बेहद खूसूरत दृश्य लगता है। इस मोनेस्ट्री की वर्तमान इमारत का निर्माण सन 1909 से 1910 के बीच करवाया गया था। सन 1919 में सिक्किम पर शासन कर रहे नामग्याल शासक सिडकि्ओंग तुल्कु नामग्याल ने करवाया था। वर्तमान में यहां करीब 90 बौद्ध भिक्षु रहते हैं। जो पर्यटक यहां आकर ध्यान लगाकर आत्मिक शांति पाना चाहते हैं, उनके लिए यह बेहद पवित्र स्थल है।

दरअसल, इस मोनेस्ट्री का पुराना ढांचा तो और भी प्रचीन है, जिसकी स्थापना द्रुपटोब कारपो लामा ने की थी। कारपो लामा के बारे में मान्यता है कि वह एक तांत्रिक थे, जिनके पास आसमान में उड़ने की शक्ति थी। लोगों का विश्वास है कि मैनम पर्वत से वापस लौटते समय उन्होंने यहां पर रुक कर ध्यान लगाने और इस मोनेस्ट्री को इसका स्वरूप प्रदान करने हेतु एक छोटे से आश्रम की स्थापना की थी। यहां भगवान बुद्ध, लोक्तेस्वर और गुरु पùसंभव की पूजा की जाती है। 

तिब्बती कैलेंडर के अनुसार 12वें लूनर माह (चंद्र माह, जनवरी) की 18वें और 19वें दिनों में इस मोनेस्ट्री में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा एक नृत्य का आयोजन किया जाता है, जिसे छाम कहते हैं। यह एक बेहद जोशीला नृत्य होता है, जिसे धार्मिक अवसरों पर बौद्ध भिक्षु मुखौटे लगाकर करते हैं। यहां एक अन्य प्रसिद्ध उत्सव पंग ल्हबसोल है, जिसके दौरान भूटिया और लेप्चा समुदाय के लोग साथ मिलकर काजीरंगा पर्वत को साक्षी मानते हुए आपसी भाईचारे की कसमें खाते हैं। इस स्थान पर बौद्ध धर्म की प्रमुख पांच शाखाओं में से एक न्यिन्गमा के तहत वज्रयान बौद्ध-धर्म का पालन किया जाता है।  

अन्य आकर्षण