चाट

दिल्ली के लोगों में चाट इतना लोकप्रिय है कि राजधानी के हर कोने में आपको एक चाट वाला मिलेंगा। चाट में सबसे ज्यादा मशहूर गोलगप्पा हैए जो एक छोटा आंटे का फूला गोलगप्पा होता है जिसमें आलू और इमली के पानी भर कर खाया जाता है। कुल्ले.की.चाट का जायका जरूर लेंए जो फलों और सब्जियों को बीच से खोखला करके बनाया जाता है और उसे उबले हुए छोलेए और अनार के दाने से भर दिए जाते हैं। इसके उपर नींबू का रस और चाट मसाला डाल दिया जाता है। आप को आलू चाट भी चखनी चाहिएए इसमें आलू के टुकड़े को तल कर चटपटे घोल मे डाल दिया जाता है। आलू टिक्की भी एक बेहतरीन विकल्प है जिसमें आप इसे इमली की चटनी या पुदीने की चटनी के साथ चटकारे लेते हुए खा सकते हैं।ऐसा कहा जाता है कि मुगल सम्राट शाहजहां की रसोई में चाट बनाया गया था। ऐसा माना जाता था कि उस समय यमुना का पानी बहुत दूषित हो गया थाए उसके प्रभाव को कम करने के लिए खा़नसामों ने अधिक तेल और मसाले वाला खाना बनाना शुरू कर दिया था। इसी वजह से चाट अस्तित्व में आया।

चाट

निहारी

यह एक ऐसा व्यंजन हैए जिसमें मांस और मज्जा को धीमी आंच पर पकाया जाता है। निहारी को खाना कुछ ऐसा है मानोए मुंह में मांस के स्वाद का एक जबर्दस्त धमाका हुआ हो। मिर्च और मसालेदार स्ट्यू में पके इस नरम मांस कोए तन्दूर में बनाई जाती है और इसे पतली खमीरी रोटी के साथ खाया जाता है। पुरानी दिल्ली में नल्ली निहारी एक पारंपरिक नाश्ता है जिसे लोग बढ़े चाव से खाते हैं।ऐसा कहा जाता है कि निहारी की रेसिपी 17 वीं या 18 वीं सदी की है। यह संभवतः पुरानी दिल्ली में विकसित हुई थी और इसे बनाने की विधि की प्रेरणा अवधी खा़नसामे से ली गई थी।निहारी में एक इंडो फ़ारसी प्रभाव देखने को मिलता हैए जो मुगलों द्वारा भारत लाया गया था। हालांकि निहारी शब्द अरबी के निहार से आया हैए जिसका अर्थ श्सुबहश् होता है। ऐसा कहा जाता है कि मुगल काल के दौरान नवाबों द्वारा उनकी प्रार्थना करने के बाद निहारी को नाश्ते में खाया जाता था। बाद में सेना के जवानों और मुगल सैनिकों को भी ऊर्जा बढ़ाने के लिए इस मांसाहारी व्यंजन को दिया जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि इसे पूरी रात बड़े.बड़े बर्तनों में पकाया जाता था और सुबह मजदूरों और सैनिकों को मुफ्त में परोसा जाता था।इस सुबह के नाश्ते का एक अनूठा पहलू यह है कि कल की बची हुई निहारी ;टारद्ध को अगले दिन तैयार किए जाने वाले पकवान में मिला दिया जाता हैए जिससे उस पकवान का अलग जायका निखर कर आता है। यह प्रथा कई सदियों से चलन में है।

निहारी

छोले भटूरे

छोले भटूरे दिल्ली में सबसे लोकप्रिय स्नैक्स में से एक हैए जिसकी उत्पत्ती पंजाब में हुई थी। इसे सफेद छोले से बनाया जाता हैए जिसे रात भर भिगोया जाता है और फिर मसालों में उसे पकाया जाता हैए इसे भटूरे के साथ खाया जाता है। यह लोकप्रिय नाश्ता हैए जो अचारए प्याज या हरी चटनी या लस्सी के लंबे गिलास के साथ परोसा जाता है।

छोले भटूरे

बिरयानी

बासमती चावल से बनी बिरयानी दिल्ली के हर कोने में मिलती हैए जिसकी विविधताएं स्थानीय या किसी विषेश स्थान से संबंद्धित रहती हैं। इसे धीमी आंच में एक हांडी में भारतीय मसालों के साथ पकाया जाता हैए और इसमें केसर और मांस के टुकड़े मिलाये जाते हैं। स्वादिष्ट बिरयानी बनाने की विधि थोड़ी जटिल हैए इसे बनाने के लिए कौन सी चीज़ कब और कितनी डालनी है इस तकनीक का पता होना चाहिए। पारंपरिक पद्धति में दम पुख्त में बिरयानी पकाया जाता हैए जो एक धीमी आंच के चूल्हा है। एक हाड़ी में सभी सामग्री डाल कर इसे कोयले की आंच पर धीरे.धीरे पकाया जाता है। हांडी को आटे की लेप से बन्द कर दिया जाता हैए इस वजह से भाप से मांस पक कर मुलायम हो जाता है और चावल पानी में रिस जाता है। बिरयानी में 15 से भी अधिक प्रकार के मसालों का उपयोग होता हैं। इसकी कई विविधताएं हैंए हालांकि चिकन इसकी मुख्य सामग्री है पर इसमें केकड़ेए झींगे और मछली का भी उपयोग किया जा सकता है। इस पकवान में अच्छी सुगंध देने के लिए गुलाब जलए केवड़ा जल और खाद्य इतर को भी मिलाया जाता है।ऐसा कहा जाता है कि बिरयानी बनानी की विधि का नुस्खा तुर्क और मंगोल विजेता तैमूर अपने साथ ले कर भारत आए थे। ऐसा माना जाता है कि तैमूर की सेना को खाने के लिए चावलए मांस और मसालों का मिश्रण दिया जाता थाए जो एक बड़ी हांडी में पकाया जाता था।इसकी एक और कहानी है कि बिरयानी अरब व्यापारियों द्वारा मालाबार तट पर लाई गई थी। तमिल साहित्य में एक ऐतिहासिक अभिलेख में श्ऊँ सोरूश् नामक चावल के एक पकवान का वर्णन मिलता हैए जो 2 ईस्वी में व्यापारियों द्वारा लाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि यह पकवान चावल से बना होता थाए जिसमें घीए मांसए धनियाए काली मिर्चए हल्दी और तेजपत्ता मिला होता था।

बिरयानी

कबाब

कबाब भारत में अफगानों द्वारा लाया गया था और इसकी शुरूआत तुर्की की रसोई में हुई थी। इसकी लोकप्रियता मुगल काल के दौरान हुई थी और आज के समय में देश भर में तरह.तरह के कबाब खाने को मिलते हैं। यह बारीक कटे हुए मांस और भारतीय महक वाले मसालों से बनाया जाता है। दिल्ली में रूई की तरह मुलायम कबाब को देख कर आपके मुंह में पानी भर आएगा। यहां तरह.तरह के लजीज कबाब खाने को मिलते हैंए जैसे काकोरी कबाबए और यह कबाब मटन पर पुदीने के लेप लगा कर पकाया जाता है। शम्मी कबाबए मटन या चिकन का बना हुआ होता हैं और यह मुलायम कबाबए मुंह में डालते ही धुल जाता है। रेशमी कबाबए बरीक कटे हुए चिकन से बनता है और इसे कोयले की आंच पर पकाया जाता है। सुतली कबाब को एक आकार में मांस को काट कर उस पर मसालों का पेस्ट लगाया जाता है और फिर इसे सीक में डाल कर पकाया जाता है।कबाब तैयार करने की प्रक्रिया बेहद दिलचस्प है। इसे सीक के अंदर डाल कर तंदूर में पकाया जाता है। इसके पकने के बाद इस पर नींबू निचोड़ दिया जाता हैए फिर इसे रूमाली रोटी और प्याज के साथ खाया जाता है।

कबाब

तंदूरी चिकन

दिल्ली की खाद्य संस्कृति और तंदूरी चिकन में काफी समानता है। यह चिकन को भून कर बनता हैए जिसमें चिकन को दही और मसालों में मिला कर तंदूर में पकाया जाता हैए तंदूर एक मिट्टी का बेलनाकार ओवन है। इसे सबसे ज्यादा लोग तंदूरी रोटी के साथ खाना पंसद करते हैंए और यह ज्यादा कीमती भी नही होता है।

तंदूरी चिकन

मिठाई और डेज़र्ट्स

जब मिठाई की बात आती है तो दिल्ली किसी खाने के ख़ज़ाने से कम नहीं है। अगर आप अपने खाने की शुरूआत किसी लजीज मीठें पकवान से करना चाहते हैं तो शुरू रबड़ी फलूदा से करेंए यह गाढ़े दूध से बनी मलाईदार व्यंजन है जिसे सेंवई की नूडल्स के साथ परोसा जाता है। कुल्फी एक जमने वाली डिश हैए और अगर आपका मन कभी थोड़ा मीठा खाने का होए या खाने के बाद मीठा खाना हो तो उस सूची में कुल्फी सबसे ऊपर होगी। इसके विभिन्न विकल्प हैंए जैसे ठंडा और जूसी अनारए सुगंधित केसरए पिस्ताए गुलाबए केलाए और आम आदि। यदि किसी को अपने शाम के स्नैक को लज्जतदार बनाना है तो उसके लिए जलेबी एक बेहतरीन विकल्प है। इसमें जलेबी के घोल को टेड़े. मेड़े आकार में तलने के बादए चाशनी में डुबो दिया जाता है। जलेबी को रबड़ी फलूदा के साथ भी खाया जा सकता है। दिल्ली का अन्य मीठा व्यंजन है दौलत की चाटए जो गाढ़े दूध की उफनती छाली से बनता है। यह हल्का और फुला हुआ होता है और इसे पिस्ते की कतरनों से सजाया जाता है।त्योहारों के अवसरों पर लगभग हर भारतीय परिवार में बनने वाला मीठा पकवान खीर हैए जिसका स्वाद दिल्ली में जरूर लें। इसे बनाने के लिए चावलए चीनी और दूध को उबाला जाता है और इसे ठंडा और गर्म दोनो तरीकों से खाया जा सकता है। और इसके ऊपर मेवे के कतरन डालना न भूलें।शुद्ध देसी घी से बनी मिठाइयांए जैसे सोहन हलवेए पिस्ता समोसा और बदाम बर्फी का भी आप यहां लुत्फ उठा सकते हैं।

मिठाई और डेज़र्ट्स

परांठा

परांठों को सपाट सतह वाले तवे पर पकाया जाता है। सबसे बेहतरीन परांठे चांदनी चौक इलाके में परांठे वाली गली में मिलते हैं। सन् 1870 के दशक से परांठों की दुकानें यहां हैए जब वे पहली बार यहां आये। आप यहां के स्वादिष्ट परांठे खाकर अपना नाम उन नामी बड़े लोगों में जोड़ सकते हैंए जो एयहां इसका स्वाद लेने आयेए जैसे जवाहरलाल नेहरूए इंदिरा गांधीए अटल बिहारी वाजपेयीए इत्यादि। यहां के पराठेए आलूए मटरए या फूलगोभी से भरे होते हैंए इसके साथ ही नये प्रकार के विभिन्न पराठेए दालए मेथीए मूलीए पापड़ए या गाजर से भी भरे मिलेंगे। यहां पनीरए पुदीनाए नींबूए मिर्चए सूखे मेवेए काजूए किशमिशए बादामए रबड़ीए खुरचनए केलाए करेलाए भिंडी और टमाटर से भरे परांठे भी मिलते हैं पर वो थोड़े महंगे होते हैं। इसे पुदीने की चटनीए इमली या केले की चटनीए आलू की सब्जी या अंचार के साथ परोसा जाता है।

परांठा

बटर चिकन

सन् 1950 के दशक में मांसाहारियों के अधिकांश व्यंजनों का मूलए दरिया गंज का मोती महल हुआ करता था। ऐसा कहा जाता है कि यह जगह पहले से ही तंदूरी चिकन प्रेमियों के बीच लोकप्रिय था। यहां के रेस्तत्रां के रसोइये बचे हुए चिकन की तरी के पुनः उपयोग करने की आदत थीए और इसके लिये वे इसमें मक्खन और टमाटर मिला दिया करते थे। और इस तरह बने सॉस में तंदूरी चिकन के टुकड़ों के साथ पका दिया जाता था और इस प्रकार स्वादिष्ट बटर चिकन अस्तित्व में आयाए जिसके स्वाद ने पूरे विश्व के लोगो के मुंह से लार टपका दी। यह मलाईदार लाल टमाटर की ग्रेवी थोड़ी गाढ़ी होती है और स्वाद में यह थोड़ा मीठा होता है। यह पकवान मुंह में डालते ही पिघल जाता हैए क्योंकि इसकी तरी चिकन टुकड़ों में अच्छी तरह से रिस जाती हैए जिसकी वजह से चिकन के टुकड़े तर और नरम हो जाते है। इसे नान या रोटी के साथ खाने में सबसे ज्यादा मजा आता है।

बटर चिकन