यह देवी दुर्गा के पंथ से जुड़े 51 शक्तिपीठों (जहां देवी सती के शरीर के अलग-अलग अंग गिरे थे) में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ देवी सती की आँखें गिरी थीं और इसीलिए इस मंदिर को नैना (शाब्दिक अर्थ आँखें) देवी कहा जाता है। इस परिसर के भीतर एक पीपल का पेड़ भी है जिसे मंदिर के समान पवित्र माना जाता है। यह माना जाता है कि वास्तविक प्राचीन मंदिर 15 वीं शताब्दी में कुषाण साम्राज्य के शासन में बनाया गया था । चंडीगढ़ से 100 किमी दूर स्थित, यह मंदिर हर साल हजारों भक्तों को आकर्षित करता है तथा शिवालिक रेंज में 11,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नौ दिनों के त्योहार नवरात्रि के दौरान और मानसून के मौसम में बड़ी संख्या में तीर्थयात्री इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर से गोबिंद सागर झील का एक अद्भुत दृश्य दिखता है जो अविस्मरणीय आकर्षण है। यह दृश्य मंदिर की पृष्ठभूमि में शांति और प्राकृतिक उदात्तता की भावना संचारित करता है तथा इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता भी इसे अवश्य ही दर्शनीय बनाती है।

अन्य आकर्षण