पुरातन आकर्षण से भरपूर चंबा का सुरम्य शहर, हिमाचल प्रदेश में भीषण नदी रावी की कगार घाटी में बसे एक प्राकृतिक स्वर्ग जैसा है। प्राचीन झीलें, सुंदर झरने, बर्फ से ढके धौलाधार पर्वत और हरे-भरे जंगल, चंबा को एक शांत स्थान बनाते हैं। किंवदंतियों और मिथकों से गुंजायमान कई प्राचीन मंदिरों के भरा यह शहर एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र है और पूरे क्षेत्र से भक्तों को आकर्षित करता है। इसके कई पैदल रास्ते और जलप्रपात साहसिक व रोमांचप्रेमी लोगों को ट्रेकिंग, लंबी पैदल यात्रा, रिवर राफ्टिंग और कैंपिंग में शामिल होने के अवसर प्रस्तुत करते हैं। चंबा का समृद्ध इतिहास इसकी विभिन्न पारंपरिक कलाओं और शिल्प जैसे रूमाल, पहाड़ी चित्रों, धातुशिल्प और शॉल में परिलक्षित होता है। 

6 वीं शताब्दी में स्थापित चंबा को भगवान शिव और कैलाश पर्वत की भूमि के रूप में जाना जाता है। शिवालिक पहाड़ियों के बीच बसे चंबा के बारे में कहा जाता है कि राजा साहिल वर्मन ने 10 वीं शताब्दी के पहले भाग में राणाओं और ठाकुरों से रानी घाटी पर विजय प्राप्त कर चंबा रियासत की स्थापना की थी। वह अपनी राजधानी को भरमौर से चंबा ले गए। कश्मीरी कवि कल्हण के राजतरंगिणी के अनुसार, जिन्हें अक्सर देश का पहला इतिहासकार माना जाता है, इस शहर का मूल नाम चंपा था। साहिल वर्मन की बेटी चंपावती, चंबा में एक देवी के रूप में पूजी जाती हैं, और राजा ने उनके लिए एक मंदिर का निर्माण किया था। इसके बाद यह मंदिर चंबा के शासकों का पारिवारिक मंदिर बन गया। स्थानीय रूप से चामेशनी के नाम से लोकप्रिय चंपावती को इस क्षेत्र में सुशोभित सुगन्धित चंपक वृक्षों की रक्षक भी कहा जाता है। इस शहर में दो लोकप्रिय मेले लगते हैं, मिंजर मेला और सुही माता मेला जो कई दिनों तक चलते हैं। मिंजर मेला श्रावण मास या अगस्त के दूसरे रविवार को आयोजित किया जाता है और इसमें लोग त्रिगर्त (जो अब कांगड़ा के रूप में जाना जाता है) के शासक पर चंबा के राजा की जीत का जश्न मनाते हैं, जबकि सुहि मेला मार्च या अप्रैल के महीनों में मनाया जाता है।