कालीबंगन यहाँ का एक पुरातात्विक महत्व रखने वाला शहर है जो आपको 5,000 साल पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता की संस्कृति और नगर-नियोजन कौशल की विलक्षणता से परिचित करवाता है। यह शहर हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पा काल संबंधी पुरातात्विक उत्खनन के लिए काफी मशहूर है, और अगर आप पुरातत्व के प्रति उत्साही और इतिहास प्रेमियों में से एक हैं तो यक़ीन मानिए आपको यहाँ बहुत आनंद आएगा। इस जगह के पहचाने जाने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अथवा एएसआई के एक अधिकारी थे डॉ अमलानंद घोष, वही थे जिन्होंने सबसे पहले कालीबंगन पुरातात्विक स्थल की पहचान हड़प्पा के रूप में की, और उसके बाद तो खुदाई का सिलसिला चल निकला। इस स्थान का भ्रमण करना वास्तव में एक रोमांचक अनुभव है क्योंकि आप यहाँ हड़प्पा और पूर्व हड़प्पा बस्तियों के अवशेषों को अपने सामने बिल्कुल सजीव सा पाते हैं, और उस वक़्त में चले जाने जैसा महसूस करते हैं। यहाँ खुदाई में प्राप्त वस्तुओं में हड़प्पा की मुहरों, लिपियों, चूड़ियों, सिक्कों, खिलौनों, टेराकोटा से बनी चीज़ों, एक किले और सड़कों सहित कई अन्य संरचनाएं शामिल हैं। हालाँकि यहाँ की गई सबसे चौंकाने वाली खोज तब हुई, जब यह पता लगा कि यह इलाका तो वास्तव में अब तक ज्ञात दुनिया का सबसे पुराना कृषि क्षेत्र रहा था। इस अद्भुत खोज के बाद यहाँ पर कालीबंगन पुरातत्व संग्रहालय 1983 में स्थापित किया गया, और हड़प्पा-पूर्व तथा हड़प्पा काल की सामग्रियों व कलाकृतियों को देखने के लिए इससे बेहतर जगह आपको ढूँढने से भी शायद ही मिले। पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार बताया जाता है कि 2600 ईसा पूर्व में इस स्थल पर एक ज़ोरदार भूकंप आया था, जिसने हड़प्पा-पूर्व सभ्यता का सर्वनाश कर दिया, और यहाँ की जीती-जागती संस्कृति को हमेशा के लिए ज़मीन के नीचे दफ़न कर दिया। कालीबंगन से बीकानेर की दूरी सिर्फ़ 210 किमी, और यह स्थान हनुमानगढ़ और सूरतगढ़ शहरों के बीच में स्थित है। 

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