मीनाकारी वाले आभूषण

इस क्षेत्र में कुशल कलाकार अद्भुत मीनाकारी शिल्प का उपयोग आभूषण के बक्से, मूर्तियाँ, डाइनिंग सेट, ट्रे, कटोरे, चाबियों के छल्ले आदि जैसे सजावटी उत्पादों को बनाने के लिए करते हैं। जो कारीगर मीनाकारी का काम करते हैं उन्हें मीनाकार कहा जाता है और उनके शिल्प को सदियों से पुश्तैनी रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाया जा रहा है।  

मीनाकारी रंगीन कांच के पाउडर से बने अलग-अलग टुकड़ों को जोड़कर की जाती है। इस कला विधा में कांच के अलावा विभिन्न अर्ध-कीमती और कीमती पत्थरों के रंगीन चूर्ण का उपयोग भी किया जाता है। इस कच्चे माल का उपयोग बाद में पक्षियों, फूलों और पत्तियों के नाटकीय रूपांकनों से विभिन्न प्रकार की धातुओं को सुशोभित या चित्रित करने के लिए किया जाता है। मीनाकारी शिल्प मूल रूप से फारस का है और राजस्थान में सबसे पहले आमेर के शासक राजा मान सिंह प्रथम (1550-1614) द्वारा लाया गया था । शुरुआत में इस शिल्प का उपयोग पारंपरिक पोल्की आभूषणों के पृष्ठ भाग पर डिजाइन बनाने के लिए किया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे यह लोकप्रिय होता गया, इसमें नए-नए रूप और आकृतियों का समावेश होता चला गया जिसके सुन्दर बिम्ब यहाँ के आभूषणों में भी दिखाई देने लगे। 

मीनाकारी वाले आभूषण

कालीन बुनाई

राजस्थान के कालीन अपने उत्तम गुणवत्ता वाले ऊनी रेशों के लिए प्रसिद्ध हैं जिन्हें हाथ से बुना जाता है। हुआ कुछ यूँ कि अफगानिस्तान के बुनकरों ने 17वीं सदी में कालीन बुनाई की कला को लोकप्रिय बनाया, और उसके प्रभाव से यहाँ के कालीन अपने चटख रंगों और ज्यामितीय आकृतियों में ढली सुन्दरता के बल पर दुनिया भर की दुकानों में अपने आकर्षण की चमक और धमक दोनों बिखेरते चले गए। राजस्थान के पारंपरिक कालीन सूती और रेशमी दोनों कपड़ों में उपलब्ध हैं; और इन पर उकेरी गई आकृतियों में  मेहराब, चौखाना, दुशाला और शिकारा के प्रारूप प्रमुखता से देखे जा सकते हैं। और यहाँ के भारतीय-फारसी तथा भारतीय-किरमानी शैलियों में डिज़ाइन किए गए कालीन तो आपका दिल जीत लेंगे। राजस्थान भारत में ऊन का प्रमुख उत्पादक है, जो बीकानेर के ग्रामीण क्षेत्रों में कालीन को एक लोकप्रिय शिल्प बनाता है। यहाँ बने आधुनिक कालीन फ़ारसी रूपांकनों और आकृतियों पर आधारित होते हैं जिनके विषय आमतौर पर शिकार करने के दृश्य या प्रेमालाप के चित्रण से जुड़े होते हैं जिनकी प्रेरणा अक्सर फ़ारसी शायरी हुआ करती है। आपके लिए जानना दिलचस्प होगा कि राजस्थान में सबसे लोकप्रिय प्रकार का कालीन है सामान्य सी दिखने वाली दरी है, जो आमतौर पर चमकीले रंगों में ज्यामितीय और पुष्प की आकृतियों से सुशोभित होती है। 

कालीन बुनाई

मोजरी

राजस्थान के लोगों के पारंपरिक जूतों को मोजरी कहा जाता है, और मज़ेदार बात है कि यह जूते पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा पहने जाते हैं। आपको हर राजस्थानी शहर में विशेष दुकानें मिल जाएँगी जहाँ मोजरी जूतियाँ बेची जाती हैं। फिर भी, इन सब में बीकानेरी मोजरी को विशेष रूप से उत्तम माना जाता है और इसे ख़ास तौर पर ऊंटों से प्राप्त चमड़े से बनाया जाता है। ऊँट के चमड़े की मोजरी या जूतियाँ चटख रंगों में उपलब्ध होती हैं, कमाल की दिखती हैं और कलात्मक कढ़ाई से सजाई गई होती हैं। सिर्फ़ इतना ही नहीं, यह आश्चर्यजनक रूप से मजबूत भी होती हैं और लंबे समय तक चलती भी हैं। अगर आपको बीकानेर में मोजरी जूतियाँ ख़रीदने का मन हो, तो आपके लिए चहलपहल भरे किंग एडवर्ड मेमोरियल या केईएम रोड बाजार से बेहतर जगह कोई नहीं है। खूबसूरती से बनाई गई मोजरी जूतियाँ बेचने वाली दुकानों की एक विस्तृत श्रृंखला यहाँ पंक्तिबद्ध रूप से मौजूद हैं। 

मोजरी