प्राग महल पैलेस

आइना महल की शाही भव्यता में बढ़ोतरी करते हुए, प्राग महल, उसके बगल में ही स्थित है। तालवी संगमरमर व बलुआ पत्थर से निर्मित, महल में बड़े-बड़े हॉल हैं और 45 मीटर ऊंची घंटियां टांगने के लिए बनी एक मीनार, जो यात्रियों को सबसे ज्यादा लुभाती है। घंटाघर, जिसे भारत में अपनी तरह का दूसरा विशालतम घंटाघर माना जाता है, एक अन्य आकर्षण है। इसके ऊपर से शहर को देखा जा सकता है। बीते समय की शाही भव्यता को दर्शाने वाले महल के भव्य दरबार हॉल में विभिन्न प्रकार की प्राचीन मूर्तियां और झूमर हैं। प्राग महल में एक संग्रहालय भी है जो शाही परिवार के अवशेष और व्यक्तिगत संग्रह को प्रदर्शित करता है।

इस महल को 1860 के दशक में जडेजा वंश के राजा प्रागमलजी ने बनवाया था। यह एक प्रसिद्ध वास्तुकार और एक ब्रिटिश सेना अधिकारी, कर्नल हेनरी सेंट विल्किंस द्वारा डिजाइन किया गया था, और वास्तुकला की एक विशिष्ट इतालवी-गोथिक शैली को दर्शाता है। इसके प्रांगण में एक छोटा सा हिंदू मंदिर है।

प्राग महल पैलेस

होदका ग्राम

होदका गांव तेजी से विकास करते ग्रामीण पर्यटन स्थलों में से एक है जो आगंतुकों को अपनी समृद्ध कला और शिल्प और समृद्ध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की वजह से आकर्षित करता है। भुज से लगभग 63 किमी की दूरी पर स्थित, इस गांव में मेघवाल समुदाय रहता है,  जो सुदूर उत्तर के पारंपरिक शिल्प और कढ़ाई कारीगर हैं। पर्यटकों को होदका के विलेज रिज़ॉर्ट में समुदायों के साथ रहने का मौका मिलता है जिसे शाम-ए-सरहद कहा जाता है या सीमा पर सूर्यास्त।

'होदका' नाम गुजराती शब्द 'होदी' से आया है, जिसका अर्थ है नावें। ऐसा माना जाता है कि सिंध से हेलीपोत्रा ​​वंश द्वारा स्थापित किया गया था। वे चारागाहों की तलाश करने वाले मुख्यतया पशुपालक थे।यह गांव पक्षियों को देखने के लिए अच्छे अवसर प्रदान करता है।  होदका गांव से छारी ढांड के आर्द्रभूमि तक भ्रमण किया जा सकता है,  जहां विभिन्न प्रकार के स्थानीय और प्रवासी पक्षियों को देखा जा  सकता है। छारी ढांड लगभग 10 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है और लगभग 50,000 जलपक्षी और 55 दुर्लभ पशु प्रजातियों का घर है। पर्यटकों को यहां कुछ लुप्तप्राय प्रजातियां भी देखने को मिल सकती हैं, जैसे डेलमेटियन पेलिकन, ओरिएंटल डार्टर, ब्लैक नेक्ड स्टॉर्क और इंडियन स्कीमर। इसके अलावा, इस क्षेत्र में शिकारी पक्षियों की 32 प्रजातियां हैं और बड़ी संख्या में सारस हैं।

होदका ग्राम

राव लखपतजी छत्री स्मारक

अति सुंदर नक्काशी के साथ लाल बलुआ पत्थर से निर्मित, छतरी के आकार के गुंबदों के साथ ये छत्ररियां, कच्छ के शाही परिवार राव की हैं। 

नका निर्माण 18 वीं शताब्दी में जडेजा शासक राव लखपतजी ने करवाया था।सभी स्मारकों में, राव लखपतजी की छत्री सबसे बड़ी है, और इसमें उन स्थलों को दर्शाते हुए सती पत्थर भी हैं, जहां उनकी मृत्यु के बाद उनकी 15 पत्नियों ने अपने प्राण त्याग दिए थे। छत्री की दीवारों को देवताओं की मूर्तियों, स्थानीय वेशभूषा में युगल, जानवरों और शिकार के दृश्यों के साथ अंकित किया गया है।हमीरसार झील के दक्षिण में स्थित और रंजीत विलास पैलेस के करीब, इन स्मारकों पर बहुत ज्यादा इस्लामी प्रभाव दिखता है, जिसमें ज्यामितीय-आकार वाली जालियां, मुगल मेहराब और फ़िरोज़ा नीला रंग है जो इसकी छतों में लगा हुआ है।

राव लखपतजी छत्री स्मारक

मुंद्रा पोर्ट

कच्छ के दक्षिणी तट पर स्थित, भुज से लगभग 53 किमी दूर, मुंद्रा टाई-एंड-डाई कपड़े और ब्लॉक प्रिंट कपड़े का एक केंद्र है। मुंद्रा पोर्ट यहां का लोकप्रिय आकर्षण है क्योंकि पहले यह शहर मसालों और नमक के व्यापार का केंद्र हुआ करता था। मुंद्रा में महादेव मंदिर भी है, जो इस क्षेत्र के प्रतिष्ठित नाविकों के स्मारक के रूप में प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि इनमें से कुछ नाविकों ने ज़ांज़ीबार के सुल्तान को सलाह दी और भारत के प्रसिद्ध खोजकर्ता वास्को डी गामा का भी मार्गदर्शन किया। पर्यटक दरिया पीर के मंदिर में भी जा सकते हैं, जो कच्छी मछुआरों के संरक्षक संत हैं। यह माना जाता है कि संत 1660 में बुखारा से मुंद्रा आए थे, और स्थानीय लोगों से बहुत प्यार करते थे, जो अभी भी आशीर्वाद लेने के लिए उनके मंदिर में आते हैं। मुगल गेट, जो आज भी कायम है, का निर्माण भी उनके सम्मान में किया गया था।

मुंद्रा पोर्ट

कच्छ संग्रहालय

1877 में महाराव खेंगरजी द्वारा स्थापित, कच्छ संग्रहालय गुजरात में अपनी तरह का सबसे पुराना संग्रहालय है, जिसे राजा को विवाह में मिले उपहारों को प्रदर्शित करने के लिए बनाया गया था। वास्तुकला की विशिष्ट गोथिक शैली में निर्मित, यह गुजरात के शाही इतिहास के बारे में जानने के लिए एक शानदार जगह है।

संग्रहालय में 11 गैलरी हैं, जो इस प्रकार हैं- पिक्चर गैलरी, मानव विज्ञान अनुभाग, पुरातात्विक अनुभाग, वस्त्र अनुभाग, हथियार अनुभाग, संगीत वाद्ययंत्र अनुभाग, जहाज अनुभाग और कपड़ों व रूई से तैयार  पशु अनुभाग। इसके अलावा, आदिवासी समुदाय के लिए समर्पित खंड हैं जो प्राचीन कलाकृतियों, लोक कलाओं, शिल्प और आदिवासी लोगों के बारे में जानकारी प्रदर्शित करते हैं, जो कच्छ के इतिहास और संस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा हैं। इसमें क्षत्रप शिलालेखों का सबसे बड़ा संग्रह भी है, जो माना जाता है कि पहली शताब्दी ईस्वी सन् का है। संग्रहालय में कच्छी लिपि पाठ के टुकड़े भी रखे हैं, जो अब विलुप्त हो गया है, साथ ही सिक्कों का एक संग्रह भी है, जिसमें 'कोरी' भी शामिल है, जो कच्छ की स्थानीय मुद्रा थी। संग्रहालय में कढ़ाई, चित्रकला, हथियार, संगीत वाद्ययंत्र, मूर्तिकला और कीमती धातु कार्य से संबंधित चीजें भी प्रदर्शित हैं। जैसे ही आप दो मंजिला इमारत में प्रवेश करते हैं, आपको 18 वीं शताब्दी के 'ऐरावत' (एक पौराणिक सफेद हाथी जो हिंदू देवता इंद्र का वाहन है) की प्रतिमा के दर्शन होते हैं। 

कच्छ संग्रहालय

आना महल

आना महल 18 वीं शताब्दी में जडेजा राजपूत वंश के राव लखपतजी के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। जिसे हॉल ऑफ मिरर्स भी कहा जाता है। यह महल एक आलीशान, चटकीली इमारत है जहां दर्पण और कांच के टुकड़े ही हर जगह दिखाई देते हैं। झिलमिलाते और चमकते हुए, महल वास्तुकला के मिश्रित भारतीय-यूरोपीय शैली को दिखाते हैं। कहा जाता है कि इसके निर्माता रामसिंह मलम ने इसे यूरोप में 17 साल तक एक कारीगर के रूप में प्रशिक्षण लेने के बाद बनाया था। मलम ने व्यक्तिगत रूप से सुंदर फव्वारे, दर्पण, कांच का काम, सोने और हाथी दांत के साथ दरवाजे और हिंदू पंचांग के अनुसार एक पेंडुलम घड़ी बनाई।

महल एक दो मंजिला इमारत है जिसमें एक दरबार हॉल है और शाही परिवार के सदस्यों के लिए कक्ष है। आइना महल, जो दरबारगढ़ पैलेस का एक हिस्सा है, में एक संग्रहालय भी है। उसमें चित्र, तस्वीरें, शाही संपत्ति की चीजें और कच्छ की कढ़ाई के कुछ बेहतरीन नमूने भी रखे हुए हैं।

आना महल

मांडवी

कच्छ और गुजरात के प्रमुख बंदरगाहों में से एक, मांडवी व्यापार और समुद्री यात्रा के रहस्यों का खजाना है। भुज से लगभग 58 किमी दूर स्थित, यह 1574 में कच्छ के राजा द्वारा एक बंदरगाह शहर के रूप में स्थापित किया गया था। यहां, नदी रुक्मावती के किनारे बने, जहाजों का निर्माण होने वाले यार्डों में आज तक हाथ से बनाए जा रहे लकड़ी के जहाजों को देखने के लिए जाया जा सकता है। जहाज बनाने की इसकी 400 साल पुरानी परंपरा अनोखी है। जहाजों को धौस कहा जाता है और पूरी तरह से हाथ से बनाया जाता है।

दिलचस्पी की एक और जगह है टॉवर ऑफ वागेर्स देखने जाना, जहां अमीर जहाज के मालिक कभी अपने बेड़ों के लौटने का इंतजार किया करते थे। विजय विलास पैलेस ऐसी जगह है, जहां जाना कोई छोड़ नहीं सकता है। 1929 में राव विजयराजजी ने इसे बनवाया था। इसकी अनूठी प्राचीन वस्तुएं और वहां प्रदर्शित चीजें काफी अद्भुत हैं। दरअसल, लगान और हम दिल दे चुके सनम जैसी कई भारतीय फिल्मों की शूटिंग भी यहां हुई है। मांडवी शांत समुद्र तटों के लिए जाना जाता है। यहां राजहंस और अन्य प्रवासी पक्षियों को देखना भी किसी अलौकिक अनुभव से कम नहीं है। लोकप्रिय मांडवी बीच एक बिंदु पर स्थित है जहां रुक्मावती नदी अरब सागर में मिलती है। पर्यटक स्वादिष्ट डबल रोटियों या दबेली (एक तरह का स्नैक) का भी यहां मजा ले सकते हैं जो यहां काफी लोकप्रिय हैं।

मांडवी