यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त पट्टडकल स्मारक समूह मालाप्रभा नदी के किनारे स्थित हैं जो बाद में कृष्णा नदी में मिल जाती है। यह मंदिर परिसर प्रारंभिक चालुक्य राजाओं (543 ईसवी - 753 ईसवी) की विरासत हैं, जिन्होंने राज्याभिषेक और अन्य धार्मिक प्रयोजनों के लिए नौ हिंदू मंदिरों की एक श्रृंखला का निर्माण किया था। भगवान शिव को समर्पित इन सभी मंदिरों का मुख पूर्व की ओर है। यहाँ स्थापित भगवान शिव व अन्य सभी हिंदू देवी-देवताओं के रूपांकन और मूर्तियाँ सुंदर कलात्मकता द्वारा सुशोभित हैं। इन नौ शिव मंदिरों के साथ ही यहाँ 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित एक मंदिर भी स्थित है।

अधिकांश मंदिरों में एक गर्भगृह स्थित है जो एक दालान के माध्यम से स्तंभों पर टिके एक मंडपम या हॉल से जुड़ा हुआ है। देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ एक पीठ अथवा मंच पर स्थापित हैं। गर्भगृह के ऊपर शिखर पर एक कलश में आम के पत्तों के साथ नारियल स्थापित होता है।

इनमें से सर्वश्रेष्ठ विरुपाक्ष मंदिर है जो रानी लोकमहादेवी द्वारा सन 740 ईसवी में पल्लव राजाओं पर अपने पति राजा विक्रमादित्य द्वितीय की विजय के उपलक्ष्य में बनवाया गया था । इस मंदिर में एक गर्भगृह है जिसके चारों ओर एक चबूतरे से जुड़ा हुआ एक विशाल पथ बना हुआ है। भक्त यहाँ भगवान गणेश और देवी महिषासुरमर्दिनी के मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर के चारों ओर बनाई गई एक दीवार या प्राकार इसकी सीमा निर्धारित करती है। इस मंदिर की सबसे उल्लेखनीय विशेषता शुकनासा के आकार में निर्मित इसका भव्य द्रविड़ शिखर है।

अगला पड़ाव विरुपाक्ष मंदिर से सटा हुआ मल्लिकार्जुन मंदिर है। गोलार्धाकारी आमलक से सुसज्जित इस मंदिर को पहले त्रिलोकेश्वर मंदिर के रूप में जाना जाता था। इस मंदिर के दालान में किसी भी देवी-देवता के चित्र अथवा मूर्तियाँ नहीं हैं और इसकी दीवारें खंडहरों में बदल चुकी हैं। हालाँकि ध्यान देने योग्य है कि इस मंदिर के कोने काफी सुन्दरता से गढ़े गए हैं।

पर्यटक संगमेश्वर मंदिर में भी जा सकते हैं जिसे मूल रूप से विजयेश्वर मंदिर कहा जाता था। 720 ई.पू. में विजयादित्य द्वारा निर्मित इस मंदिर में एक गर्भगृह है जिसमें एक लिंगम स्थापित है। नंदी (बैल देवता) की एक मूर्ति भी यहाँ एक छोटे से चबूतरे पर स्थापित है। यह मंदिर वास्तुशिल्प कला के चमत्कार जैसा है क्योंकि इसे फूलों और जानवरों की आकृतियों से सुसज्जित एक बड़े मंच पर बनाया गया है। इसकी दीवारें भी सुंदरतापूर्वक निर्मित हैं और उन पर भगवान शिव और भगवान विष्णु के अवतारों की छवियों की कलात्मक रूपसज्जा देखी जा सकती है।

यहाँ का एक और आकर्षण कडासिद्धेश्वर मंदिर है जिसे 7वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बनाया गया था। इसका शिखर वास्तुकला की नागरा शैली के अनुरूप निर्मित है और देवी पार्वती के साथ नृत्य करते हुए भगवान शिव की छवि को प्रतिबिंबित करता है। जम्बूलिंगेश्वर मंदिर का भ्रमण भी किया जा सकता है जिसके गर्भगृह में एक लिंगम स्थापित है।

यहाँ का अगला भ्रमण स्थल गलगनाथ मंदिर है, जो 750 ईसवी में बनने वाले सबसे आखिरी मन्दिरों में से एक है। भलीभांति संरक्षित इस मंदिर में एक भव्य चबूतरा निर्मित है जो तीन कलात्मक आकृतियों से सुसज्जित सजावटों से युक्त है। इन में पंचतंत्र और पुराणों की कथाओं के चित्रण वास्तव में मंत्रमुग्ध कर देने वाले हैं।

इसके अलावा पर्यटक यहाँ के अपेक्षाकृत छोटे चंद्रशेखर मंदिर भी जा सकते हैं, जिसमें एक गर्भगृह के अलावा एक चबूतरे पर स्थापित एक लिंगम मौजूद है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार को द्वारपालों की आकृतियों से अलंकृत किया गया है।

इस स्थान का एक अन्य आकर्षण पापनाथ मंदिर है जो एक विस्तृत नक्काशीदार शुकनासा और वास्तुकला की उत्तरी शैली में निर्मित विमान के लिए प्रसिद्ध है। इसे नागर शैली में निर्मित यहाँ का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। यहाँ यात्रा करने योग्य अन्य मंदिर हैं काशीविश्वेश्वर मंदिर जोकि इस परिसर में स्थित अंतिम मंदिर है, जैन मंदिर और एक अखंड स्तंभ। पट्टडकल बेलगाम से लगभग 165 किमी दूर स्थित है।

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