जालना

जालना एक ऐसा लोकप्रिय आध्यात्मिक स्थल है जो अलग-अलग धर्मों के लोगों को यहां पर मौजूद मंदिरों की यात्रा के लिए आमंत्रित करता है। इसे संत रामदास स्वामी का जन्मस्थान कहा जाता है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम के जन्म के समय ही जन्मे थे। नव नवमी के दौरान, यहां एक उत्सव आयोजित किया जाता है जो इस क्षेत्र के सभी ओर से पर्यटकों को आकर्षित करता है। पर्यटक शहर से लगभग 25 किमी दूर स्थित श्री गणेश मंदिर में भी जा सकते हैं। इसे गणेश चतुर्थी के दिन होने वाले उत्सव के लिए जाना जाता है। यहां एक और दर्शनीय जगह है, आनंदी स्वामी मंदिर, जिसे एक मराठा योद्धा, महाड़जी शिंदे ने बनवाया था। यह लगभग 250 साल पुराना माना जाता है और आषाढ़ी एकादशी पर यहां एक भव्य वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। शहर से लगभग 20 किमी दूर मत्स्योदरी देवी का मंदिर है जो एक पहाड़ी पर स्थित है जो एक मछली जैसी दिखती है। यह न केवल अपने आध्यात्मिक महत्त्व के लिए बल्कि अपनी आकर्षक वास्तुकला के लिए भी एक दिलचस्प जगह है।

जालना

लोनार क्रेटर

लोनार दुनिया की पांच सबसे बड़ी क्रेटर (उल्का पिण्ड से निर्मित झील) झीलों में से एक है, और जो लगभग 2 किमी चौड़ी और 150 मीटर गहरी है। लगभग 50,000 साल पहले बना यह क्रेटर आकार में अंडाकार है और बसाल्ट चट्टान में दुनिया का एकमात्र प्राकृतिक टक्कर वाला क्रेटर है। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इसका निर्माण एक उल्कापिंड के गिरने से हुआ था, और जिसका वज़न इस तरह के प्रभाव को पैदा करने के लिए एक मिलियन टन से अधिक का रहा होगा। टकराने के समय का गिरा हुआ मलबा अभी भी क्रेटर की सीमा के आसपास मौजूद है। इसे 'इजेक्टा ब्लेन्केट' कहा जाता है और यह एक किलोमीटर से अधिक दूरी तक फैला हुआ है। क्रेटर के भीतर की झील का पानी खारी और क्षारीय दोनों है, लेकिन इसकी नाभी की ओर जाने पर पानी और अधिक क्षारीय हो जाता है। यह झील जंगलों से ढकी छोटी पहाड़ियों से घिरी है। पर्यटक इस क्षेत्र में मोर, चिंकारा और गज़ेल जैसे कई वन्यजीवों को देखने का आनंद ले सकते हैं। सर्दियों में झील, कई प्रवासी पक्षियों का घर बन जाती है। पानी का विशिष्ट और चमकीला रंग इसमें मौजूद काई और प्लवक (प्लैन्कटन) के कारण भी है। इसके अलावा, इसमें कुछ खनिज जैसे कि माइक्रोब्रेकिया और ग्लास स्फेरुल्स की मौजूदगी के कारण वैज्ञानिकों को, चंद्रमा के बनने, और इस क्रेटर बनने और इस क्षेत्र के भूविज्ञान के बीच समानताएं दिखती हैं! स्थानीय कहानियों में यह कहा जाता है कि यहां पर कम्पास काम नहीं करता है। किंवदंतियां इसके लिए कई अलग कारण बताती हैं लेकिन भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इसका कारण इस क्षेत्र की अनोखी भू-मिलावट है। झील के आसपास कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में राम गया मंदिर, कमलजा देवी मंदिर और पानी में आधा डूबा हुआ शंकर गणेश मंदिर भी हैं। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण मंदिर, लोनार शहर के केंद्र में स्थित दैत्य सूदन मंदिर है, जो राक्षस लोनसुर का संहार करने वाले भगवान विष्णु को समर्पित है।

लोनार क्रेटर

पीतलखोरा की गुफाएं

पीतलखोरा की गुफाएं, चंदोरा पहाड़ी पर पत्थरों को काट कर बनाई गई 14 बौद्ध गुफाओं का एक समूह है जो 2री शताब्दी ईसा पूर्व की हैं। ये बेसाल्ट पाषाण गुफाएं देश में पत्थरों को काटकर बनाई गईं वास्तुकला के शुरुआती उदाहरणों में से हैं, और यह इस क्षेत्र के सभी जगहों से पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। जबकि गुफाओं में से चार चैत्य यानी प्रार्थना कक्ष हैं, बाकी विहार यानी आवासीय कक्ष हैं। यहां की सभी गुफाएं हीनयान काल की हैं, पर साथ ही यह महायान काल (छठी शताब्दी) के चित्रों को दर्शाती हैं। गुफाओं के पास के एक सुन्दर झरने को पार कर आप एक सुन्दर परिसर में आते हैं, और इस परिसर में यक्ष आकृतियों, सैनिकों, हाथियों की मूर्तियों के साथ साथ गज लक्ष्मी की एक पुरानी मूर्ति भी है। इसके अलावा यहां बारिश के पानी को एकत्र करने के लिए एक प्राचीन और अनोखी प्रणाली भी देखने को मिलती है। तीसरी गुफा को मुख्य चैत्य माना जाता है, जिसमें मूल स्तंभों को अजंता शैली वाली चित्रकारियों से सजाया गया है। यहां भगवान बुद्ध के कई सुंदर चित्र हैं जिनमें उन्हें बैठे और खड़ी मुद्राओं मे दिखाया गया है।गुफा विहार का निर्माण पारंपरिक योजना के साथ किया गया है जिसमें केंद्र में एक बड़ा कक्ष और इसके तीन दीवारों के पीछे छोटे छोटे आवासीय कक्ष हैं। चौथी गुफा एक अनोखी नक्काशी की गई विहार है, जो स्तंभों और जाली की खिड़कियों से सजी है। इसका विशाल द्वार के दोनो ओर दो द्वारपाल (संतरी) हैं, जिनकी वेशभूषा पर शक शैली का प्रभाव दिखता है, विशेष रूप से सुंदर हैं। साथ की दीवार के पीछे, एक नहर के माध्यम से बहने वाला पानी, नक्काशीदार नाग की मूर्ति के पांच फनों से गिरता है। यहां एक और अनोखी श्रृंखला है जिसमें नौ हाथियों की एक पंक्ति के साथ एक प्राकृतिक आकार के घोड़े की मूर्ति भी है जिसके साथ एक पुरुष की आकृति है जिसे 'चौरी' धारक कहा जाता है। यहां पायी गई अधिकांश अन्य मूर्तियां नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी हैं।

 पीतलखोरा की गुफाएं

पैठण

कई खण्डों वाला ये शहर- पैठण कई महत्वपूर्ण राजवंशों, आंदोलनों और संस्कृतियों का गवाह रहा है। यह वैष्णववाद के निम्बार्क सम्प्रदाय परंपरा के संस्थापक श्री निम्बार्क का जन्मस्थान भी है। यह शहर संत एकनाथ महाराज का भी निवास स्थान था, जिनकी समाधि आज भी यहां है। पैठण यात्रा, जिसे नाथ षष्ठी भी कहा जाता है, के दौरान यहां भक्तों का मेला सा लग जाता है। पैठण को 'दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र' के लिए भी जाना जाता है। 20 वें जैन तीर्थंकर, भगवान मुनिसुव्रतनाथ की काले रंग की एक सुंदर मूर्ति, यहां के एक मंदिर में स्थापित है।पर्यटक यहां जयकवाड़ी बांध भी देख सकते हैं, जो रेत के साथ बनाया जाने वाला दुनिया का पहला बांध है। नाथ सागर जलाशय (रिज़रवाॅयर) पक्षी प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है, जो यहां कई प्रवासी पक्षियों को देख सकते हैं। पुरातत्व की दृष्टि से देखा जाए तो पैठण एक महत्वपूर्ण शहर है क्योंकि यहां के टीलों की सतह पर विभिन्न ऐतिहासिक काल की कई प्राचीन वस्तुएं मिलती हैं। इनमें सतवाहन काल से सिक्के, विभिन्न प्रकार के मोती, टेराकोटा की मूर्तियां और चूड़ियां शामिल हैं।पैठण, अपनी पैठणी साड़ियों के लिए भी जाना जाता है। हर साड़ी शुद्ध रेशम से बनी एक शाही रचना होती है जो पारंपरिक डिजाइनों में शुद्ध सोने और चांदी के धागों से सजी रहती हैं।

पैठण

औरंगाबाद की गुफाएं

हरी-भरी पहाड़ियों की गोद में फैली, औरंगाबाद की गुफाएं किसी भी इतिहासकार के लिए काफी दिलचस्प विषय हैं। शहर के उत्तर में स्थित, 12 बौद्ध गुफाओं का एक समूह हैं जो लगभग तीसरी शताब्दी तक पुरानी हैं। हरी-भरी पहाड़ियों के बीच छिपी हुई इन रहस्यमयी गुफाओं की खूबसूरती, यहां की वास्तुकला और मूर्तिकला में तांत्रिक प्रभावों में देखा जा सकता है। इनमें से अधिकतर गुफाएं, विहार यानी आवासीय कक्ष हैं। विशेषज्ञों के अनुसार तीसरी और सातवीं गुफाएं सबसे आकर्षक हैं और उन्हें देखना न भूलें। इसके अलावा, पहली और तीसरी गुफाएं बाद के महायान काल की हैं। भूतल योजना की बात करें तो इसकी स्तंभों का खाका और इसके विस्तृत विवरण, अजंता की 21वीं और 24वीं गुफाओं के समान हैं। पश्चिमी समूह में पहली से पांचवी गुफाएं तक हैं, जबकि पूर्वी समूह में छठी से दसवी गुफाएं तक हैं। चौथी गुफा एक चैत्य है, जो अपने तरह की एकमात्र गुफा है और जिन्हें सतवाहना काल के आखिरी दौर में काट कर बनाया गया था। पत्थरों को काटकर बनाई गई इन गुफाओं से, यहां के शहरी परिदृश्य और बीबी के मकबरे की शानदार झलक दिखती है।छठी गुफा में सजी-धजी महिलाओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। आज भी ये मूर्तियां अच्छी स्थिति में हैं और पर्यटकों को उस समय के सौंदर्यकला का आभास कराती हैं। गुफा में एक बुद्ध की और एक गणेश की मूर्ति भी है। सातवी गुफा में गहनों से सजी महिलाओं की मूर्तियां हैं और यहां की शैली उस समय के तांत्रिक बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है।वर्ष 1847 में जेम्स बर्ड, अपने ऐतिहासिक शोधों के द्वारा औरंगाबाद की गुफाओं का उल्लेख करने वाले पहले व्यक्ति थे। बाद में, जॉन विल्सन और जेम्स बर्गेस ने गुफाओं को महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारकों के रूप में इनका विवरण विस्तार के साथ दिया।

औरंगाबाद की गुफाएं

दौलताबाद किला

200 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित और 95 हेक्टेयर में फैला, दौलताबाद का किला डेक्कन की दृढ़ता और रणनीतिक विद्वता का प्रतीक है। इसके चारों ओर और इसके अंदर एक मजबूत रक्षा प्राचीर होने के कारण, इस किले को अभेद्य माना जाता था। महाकोट, यानी 54 गढ़ों वाली चार अलग-अलग दीवारें किले को घेरे रखती हैं जिसका घेरा लगभग 5 किमी का है। दीवारें लगभग 6 से 9 फुट मोटी और 18 से 27 फुट ऊंची हैं। परिसर में मौजूद गोला-बारूद और अनाज के भंडार इस ऐतिहासिक और मज़बूत संरचना की सैर को और भी रोमांचक बना देते हैं। इसकी एक और दिलचस्प विशेषता है हाथी हौद, एक विशाल पानी की टंकी जिसकी क्षमता लगभग 10,000 घन मीटर है। आज, ये विशाल टंकी सभी को आश्चर्यचकित कर देती है। यहां आप 30 फुट ऊंचे चांद मीनार को भी देख सकते है। यहां की तुगलक युग का शाही स्नान की अनोखी और अति सुन्दर संरचना भी देखने योग्य है। इसमें मालिश कराने के कमरे, गर्म पानी और भाप से स्नान के लिए भी कमरे हैं, जिनके लिए पानी को अच्छे से व्यवस्थित टंकियों, नहरों, नलिकाओं और वेंटिलेटर आदि से पहुंचाया जाता था।पर्यटकों को यहां किले के कई हिस्सों के अवशेष देखने को मिल सकते हैं, जैसे किले के बाहर की खाई, किलेबंदी की दीवारें, सीढ़ियों वाले कुएं, दरबार की इमारत, भारत माता को समर्पित एक अनूठा मंदिर, प्रजा के लिए एक सार्वजनिक दीवान/कक्ष, पानी के कुंड और पत्थरों को काट कर बनाया मार्ग। हाल ही में की गई खुदाई से शहर का एक निचला हिस्सा भी सामने आया जिनमें कई बड़े मार्ग और गलियां थी।औरंगाबाद से एलोरा के रास्ते पर स्थित इस किले का निर्माण एक यादव शासक, राजा भिल्मा 5, ने वर्ष 1187 में करवाया था। इस शहर को तब देवगिरि, यानी देवताओं के पहाड़ी निवास के रूप में जाना जाता था। इसके सामरिक महत्व के कारण, इस भव्य किले को जीतने की लालसा कई प्रभावशाली शासकों में पूरे इतिहास में रही। दिल्ली के शासक मुहम्मद तुगलक इस किले से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने शहर का नाम बदलकर दौलताबाद, यानी धन का शहर, रख दिया और अपने दरबार और राजधानी को यहीं लाने का फैसला किया। दिल्ली की पूरी आबादी को यहां लाया गया था। बाद में यह बहमानी शासकों के तहत हसन गंगू से लेकर अहमदनगर के निज़ाम शाहियों के अधिकार में रहा। इसके बाद भी, मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने इस किले पर कब्ज़ा करने से पहले इसकी चार महीने तक घेराबंदी की थी। बाद में मराठों ने इसे हथिया लिया था और फिर वर्ष 1724 ई. में हैदराबाद के निज़ामों ने इस पर कब्ज़ा कर लिया।

दौलताबाद किला

बीबी का मकबरा

यह मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की पत्नी दिलरस बानू बेगम (जिन्हें बीबी के नाम से जाना जाता है) को दफनाने की जगह है। उन्हें राबिया-उद-दुर्रानी या आधुनिक काल की राबिया की उपाधि दी गई थी। ये उपाधि राबिया बसरा की ओर इशारा करती है, जो एक इराकी ऊंचे कुल की अमीर महिला थी, जिसे अपनी उदारता और दयालु स्वभाव के लिए जाना जाता था।शहर से लगभग 3 किमी दूरी पर स्थित, इस मकबरे को वर्ष 1678 में औरंगज़ेब के बेटे आज़म शाह ने बनवाया था। उनकी मां की याद में बनाया गया यह स्मारक लोकप्रिय ताजमहल के डिजाइन से मिलता-जुलता है, और इसीलिए इसे 'डेक्कन का ताज' के नाम से जाना जाता है। यह मकबरा दक्कन के कुछ भव्य मुग़ल स्मारकों में से एक है, क्यों कि औरंगज़ेब इस क्षेत्र में काफ़ी लंबे समय तक सूबेदार के रूप में रहा था। यह मकबरा विशाल मुगल उद्यानों से भरा है जिनमें कई सुंदर तालाब, फव्वारे, पानी के नहर, चौड़े मार्ग और अनेक मंडप मौजूद हैं। बीबी के मकबरा के बगीचे 'चार-बाग' शैली में डिज़ाइन किया गया है, जिसे ज्यादातर मुगल उद्यानों में अपनाया गया है। इन उद्यानों में चार हिस्सों वाला एक प्लॉट होता है जिसमें चार अलग-अलग ज्यामितीय बागों वाला एक बड़ा घेरा होता है। इस स्मारक में लगभग 72 फिट ऊंची चार मीनारें हैं, और इनकी उठी हुई चौखटें सफेद संगमरमर की एक जालीदार खिड़कियों से घिरी है। इनका मकबरा भी संगमरमर की एक जालीदार आठ कोनों वाली खिड़कियों से घिरा है। यहां कमल, गुलाब और कई अन्य फूलों की नक्काशी वाली संगमरमर की तख्तें और दीवारें हैं जो मकबरे की सुंदरता को और बढ़ाती हैं।इस स्मारक के मुख्य शिल्पकार उस्ताद-अता-उल्लाह थे, जो एक फारसी व्यक्ति थे। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसका उल्लेख फ्रांसीसी लेखक, जीन बैप्टिस्ट टेवर्नियर के लेखों में किया गया है, जो इसके निर्माण के शुरुआती चरणों के बारे में बहुत सारी जानकारी देते हैं। अभिलेखों के अनुसार, इस भव्य स्मारक के निर्माण की लागत लगभग 665,283 रुपये थी।

बीबी का मकबरा

हिंदू गुफाएं

कलचुरी, चालुक्य और राष्ट्रकूट शासकों के शासन के दौरान पत्थरों को काटकर बनाये गये इन गुफाओं में कई उल्लेखनीय मूर्तियां हैं और इन पर प्लास्टर के निशान हैं, जिससे यह पता चलता है कि इन मूर्तियों को पेंटिंग की गई थीं। प्रमुख गुफाओं में 14, 15, 16, 21 और 29 नम्बर की गुफाएं हैं। गुफा 14 में हिंदू देवताओं से सजी मूर्तियों के पटल हैं। गुफा 16, जिसे कैलाश के नाम से जाना जाता है यहां की सबसे सुंदर गुफा है। एक बड़े अखंड पाषाण को काटकर तराशा गया है और यह एक बहु-मंजिला मंदिर परिसर जैसा दिखता है। शानदार प्रांगण में दो जीवनकद हाथियों की मूर्तियों के साथ-साथ दो विजय स्तंभ हैं। बगल की दीवारों को मूर्तिकला के पटलों से सजाया गया है।गुफा 21 या रामेश्वर गुफा, गंगा और यमुना की छवियों से सजी है। गुफा 29, स्थानीय रूप से सीता की नहानी के नाम से जानी जाती है, इसकी बनावट बहुत ही अनोखी है और यह एलीफेंटा की विशाल गुफा जैसी दिखती है। इसमें भी कई प्रभावशाली मूर्तियां हैं।

हिंदू गुफाएं