लगभग 43 एकड़ क्षेत्रफल में व्याप्त यह सुंदर किला 300 वर्ष पुराना है। बहुत समय पहले, विश्व-विख्यात कोहिनूर हीरा इसी किले के भीतर रखा जाता था। यह किला मूल रूप से मिट्टी के दुर्ग के रूप में बनाया गया था जो ‘भंगियां दा किला कहलाता था। इसका निर्माण कबीले के स्थानीय सरदार गुर्जर सिंह भंगी ने करवाया था। वह भंगी मिसल का सरदार था, जो उस समय इस इलाके पर राज करता था। इस किले पर उसका लगभग 49 वर्षों तक आधिपत्य रहा, उसके बाद गुर्जर सिंह के वंशज अवयस्क शासक गुरदीत सिंह गुर्जर का उसकी मां माई सुखन की मदद से अमृतसर पर शासन स्थापित हो गया था। दंतकथाओं के अनुसार, माई सुखन ने अरूर मल नामक कारोबारी से भंगी बस्ती के लिए धन मांगा किंतु उसने राशि देने से इनकार कर दिया। उसके बाद वह प्रतिद्वंद्वियों के शहर गया और उसने शेख कमालुद्दीन एवं महाराजा रणजीत सिंह के साथ मिलकर किले पर हमले का षड्यंत्र रचा। उन्होंने माई सुखन को प्रसिद्ध जमजमा तोप जो ‘भंगियां दी तोप’ कहलाती थी, के साथ समर्पण करने को कहा। माई सुखन द्वारा उनकी बात नकारने के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने आहलुवालिया द्वार से प्रवेश करके शहर पर हमला बोल दिया और किले को अपने कब्ज़े में ले लिया।

तभी से इस किले का ऐतिहासिक महत्व बढ़ गया है, जिसके कारण पंजाब सरकार ने इसे ऐतिहासिक स्मारक घोषित कर दिया। 

इनके अतिरिक्त, इस किले में बहुत सा निर्माणकार्य कराया गया है। सिखों के साम्राज्य के अगुआ महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में इसमें तोशाखाना व ख़ास महल के अतिरिक्त बुर्ज, ख़ंदक, कुएं तथा हवेलियां बनवाई गईं। इसके अलावा यहां पर अंग्रेज़ों के शासनकाल में कराए गए निर्माणकार्यों के अवशेष भी मिलते हैं। इनमें दरबार हॉल व एंग्लो-सिख बंगला भी है। यहां पर एक घंटी भी विद्यमान है, जो ब्रिटेन के शेफील्ड शहर में बनी हुई है।

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