कुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े जनसैलाबों में से एक है। यह मेला तीन पवित्र नदियों-गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर आयोजित किया जाता है। यह हर छह साल में एक बार आयोजित होता है। इस दौरान शहर में भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है। यह मेला 55 दिनों तक चलता है और 1,000 हेक्टेयर क्षेत्र में आयोजित किया जाता है। मेले की सबसे प्रमुख विशेषता है- त्रिवेणी संगम में स्नान। इस दौरान लाखों भक्त, भगवाधारी संत और साधु इस पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि इस समय संगम के जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। इस मेले की खासियत यह है कि देश के दूरस्थ कोनों से साधु और तपस्वी यहां डुबकी लगाने आते हैं। यहां नागा साधुओं को देखना वास्तव में एक शानदार अनुभव है। वे अपने नग्न शरीर पर राख मलकर और अपने बालों की जटाएं बांधकर एक उत्साहित सेना के समान शोरगुल करते हुए स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं।

किंवदंती है कि एक बार जब भगवान विष्णु अमृत से भरा एक पात्र (कुंभ) ले जा रहे थे; तभी राक्षसों के साथ हुए युद्ध के बाद उस पात्र में से चार बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं। ये चार बूंदें उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और प्रयागराज के पवित्र स्थानों पर गिरी थी। इस मेले का आयोजन हर तीन साल बाद बारी-बारी से इन चारों स्थानों में से किसी एक स्थान पर किया जाता है। प्रयागराज का कुंभ मेला अन्य स्थानों के कुंभ मेलों से बहुत भिन्न होता है। लंबे समय तक कल्पवास की परंपरा केवल यहीं पर है। ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड के निर्माण के लिए यहीं पर यज्ञ किया था।

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