चंद्रशेखर आज़ाद पार्क

'चंद्र शेखर आज़ाद पार्क', वर्ष 1870 में बनाया गया था। यह 133-एकड़ का हरा-भरा परिसर है। कहा जाता है कि एडिनबर्ग के ड्यूक 'प्रिंस अल्फ्रेड' की प्रयागराज की यात्रा की निशानी के तौर पर इसे बनाया गया था। इसलिए इसे 'अल्फ्रेड पार्क' भी कहा जाता है। अंग्रेजों के शासनकाल में इसे 'कंपनी बाग' के नाम से जाना गया। लेकिन बाद में इसका नाम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद के नाम पर 'चंद्रशेखर आजाद पार्क' रखा गया। उन्होंने वर्ष 1931 में यहां अंग्रेज अधिकारियों के खिलाफ लड़ाई-लड़ते खुद को गोली मार ली थी। कोल्ट रिवॉल्वर, जिससे इस क्रांतिकारी ने खुद को गोली मारी थी, पार्क परिसर के अंदर स्थित इलाहाबाद संग्रहालय में रखी गई है। आज़ाद की एक भव्य प्रतिमा इस हरित क्षेत्र के मुख्य आकर्षण में से एक है। यह पार्क परिसर में बच्चों के लिए मनोरंजक क्षेत्र, एक संगीतमय फौव्वारा, इलाहाबाद पब्लिक लाइब्रेरी (जिसे थॉर्नहिल मेयेन मेमोरियल भी कहा जाता है), प्रयाग संगीत समिति (संगीत के लिए समर्पित एक संस्थान) और मदन मोहन मालवीय स्टेडियम मौजूद है।

चंद्रशेखर आज़ाद पार्क

कौशाम्बी

वर्ष 1997 में कौशाम्बी को प्रयागराज से अलग करके एक नया जिला बनाया गया। लेकिन कौशाम्बी का इतिहास बहुत अधिक पुराना है। न केवल हिंदू महाकाव्यों में बल्कि रामायण और महाभारत में भी कौशाम्बी का उल्लेख मिलता है। कौशाम्बी बौद्ध शिक्षाओं का भी एक लोकप्रिय केंद्र था। वास्तव में, भगवान बुद्ध के समय में, कौशाम्बी भारत के छह महत्वपूर्ण और समृद्ध शहरों में से एक था। भगवान बुद्ध ने दो बार यहां आकर अपने अनुयायियों को प्रवचन दिए थे। हालांकि, ग्रंथ-पुराण इसकी एक अलग कहानी बताते हैं। उनके अनुसार, भरत साम्राज्य के एक शासक निकसू का राज्य बाढ़ में बह गया था, जिस कारण उन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर को कौशाम्बी स्थानांतरित कर दिया। खुदाई के दौरान मिला पुराना किला, अशोक स्तंभ, बड़ी संख्या में मूर्तियां, ढले हुए सिक्के, टेराकोटा की वस्तुएं, मूर्तियां और एक भव्य मठ आदि सब मिलकर कौशाम्बी को एक प्राचीन शहर साबित करते हैं।

कौशाम्बी

श्रृंगवेरपुर

एक सुंदर स्थान पर स्थित श्रृंगवेरपुर का अनोखा गांव, प्रयागराज शहर से लगभग 40 किमी दूर स्थित है। इसका उल्लेख हिंदू महाकाव्य रामायण में निषादराज के शाही राज्य की राजधानी या 'मछुआरों के राजा' के रूप में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस गांव का नाम श्रृंगी ऋषि के नाम पर पड़ा था। कहा जाता है कि यह वही स्थान है, जहां से भगवान राम, देवी सीता और भगवान लक्ष्मण ने रात्रि विश्राम के बाद, वनवास जाने के लिए गंगा नदी को पार किया था। स्थानीय मान्यता के अनुसार नाव वालों ने भगवान राम, लक्ष्मण और सीता को नदी पार कराने से मना कर दिया था। स्थिति को हल करने के लिए निषादराज खुद मौके पर पहुंचे और नदी पार कराने की एवज में भगवान राम के सामने एक शर्त रखी। निषादराज ने कहा कि यदि वह उनसे अपने अपने पैर धुलवा लेते हैं तो वह उन्हें नदी पार करवा देगा। भगवान राम ने यह शर्त स्वीकार कर ली। निषादराज ने उनके पैर धोए और उन्हें अपनी नाव में बैठाकर नदी पार करवा दिया। जिस स्थान पर राजा ने ऐसा करने के लिए कहा था, उसका नाम रामचूरा रखा गया और वहां एक चबूतरे का निर्माण किया गया। यह एक बेहद ही शांत स्थान है। चारों ओर हरियाली और एक विशाल नदी वाला 'श्रृंगवेरपुर' धीरे-धीरे पर्यटकों के बीच लोकप्रिय हो रहा है।

श्रृंगवेरपुर

अशोक स्तंभ

प्रयागराज किले (पूर्व नाम इलाहाबाद किला) के अंदर 10.5 मीटर ऊंचा अशोक स्तंभ उन तीन आकर्षणों में से एक है, जिन्हें पर्यटकों को देखने की अनुमति है। 232 ईसा पूर्व में निर्मित इस स्तंभ लेखों से यह पुष्टि होती है कि प्रयागराज शहर ने बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह भव्य स्तंभ पॉलिश किए बलुआ पत्थर से बनी है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह अशोक स्तम्भ प्राचीन कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश में) में गड़ा हुआ था; जिसे बाद में वहां से प्रयागराज लाया गया। अशोक के लेखों के अतिरिक्त इस स्तंभ पर गुप्त साम्राज्य के शासक समुद्रगुप्त और मुगल बादशाह जहांगीर के स्तंभ लेख भी हैं। गुप्त शासक की प्रशंसा में जो लेख स्तंभ पर उकेरे गए हैं, उन्हें राजदरबार के एक प्रसिद्ध कवि हरिसेण ने लिखा था। वर्तमान में किले का उपयोग भारतीय सेना द्वारा किया जा रहा है, हालांकि यह स्तंभ पर्यटकों के देखने के लिए सुलभ है लेकिन इसे देखने के लिए अनुमति लेना अनिवार्य है।

अशोक स्तंभ

प्रयागराज किला (इलाहाबाद किला)

मुगल बादशाह अकबर के समय में निर्मित और अचंभित कर देने वाली कई वास्तुशिल्पों में से एक 'इलाहाबाद किले' को मुगल साम्राज्य का सबसे विशाल किला माना जाता है। यह राजसी किला संगम पर यमुना नदी के किनारे आज भी बड़ी शान से खड़ा है। कहा जाता है कि इसका निर्माण 1583 ई. में किया गया था। इसमें तीन शानदार गलियारें है, जो ऊंची-ऊंची मीनारों से घिरे हुए हैं। कहा जाता है कि बादशाह ने 16 वीं शताब्दी में इस जगह का दौरा किया था और वे इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहां किले का निर्माण करवाया और उसका नाम इलाहाबास या देवस्थान रखा। शाहजहां के शासनकाल में इसका नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया गया। किला परिसर में जोधाबाई नामक एक महल (बादशाह की पत्नी जोधाबाई को समर्पित एक शाही निवास) स्थित है, जो हिंदू और इस्लामी वास्तुकला शैलियों का अद्भुत संगम है।

प्रयागराज किला (इलाहाबाद किला)

आनंद भवन

नेहरू परिवार के निवास स्थान के बारे में कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू ने अपने पुराने घर 'स्वराज भवन' का उपयोग कांग्रेस के कार्यालय के रूप में किये जाने के बाद अपने नए घर 'आनंद भवन' को खरीदा था।

ऐसा कहा जाता है कि दो मंजिला हवेली 'आनंद भवन' को नेहरू ने खुद डिजाइन किया था। यह भवन यूरोप और चीन से आयातित लकड़ी के फर्नीचर और अन्य विभिन्न कलाकृतियों से सजाई गई भव्यता की मूर्ति लगती है। यह घर आज एक संग्रहालय है, जिसमें मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की दुर्लभ तस्वीरों, किताबों और व्यक्तिगत सामानों की प्रदर्शनी हैं। इन्दिरा जी का विवाह भी यहीं हुआ था। वर्ष 1970 में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे भारत सरकार को दान कर दिया।

आनंद भवन