अजमेर की कव्वालियाँ और कव्वाल दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। कव्वाली एक लोकप्रिय नृत्य रूप है जो बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करती है और उन्हें इस शहर के उत्साह का अनुभव करवाती है। 'कव्वाली' शब्द अरबी शब्द 'क़वोल' से लिया गया है, जिसका अर्थ है ऐसा धार्मिक क्रियाकलाप जो विचारों की शुद्धि में मदद करता है। यह विधा 13 वीं शताब्दी में भारत में लोकप्रिय हुई और तब से अजमेर प्रसिद्ध विश्वप्रसिद्ध कव्वालों का गढ़ बना हुआ है। अल्लाह की शान में रचित कव्वालियों को अजमेर शरीफ दरगाह हॉल के अंदर कव्वालों द्वारा नियमित रूप से गाया जाता है, जिसे महफिल-ए-समा के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर कव्वाली का प्रदर्शन प्रतिदिन शाम 7 बजे से रात 11 बजे तक होता है और यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों के गायकों को अपनी कव्वाली के माध्यम से अल्लाह की इबादत करने के लिए एक मंच पर आने का एक अद्भुत अनुभव देता है। अजमेर की कव्वाली का आनंद लेने के लिए सबसे अच्छा समय वार्षिक उर्स उत्सव के दौरान होता है, जो हर साल सूफी फकीर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु की बरसी के अवसर पर उनकी दरगाह पर आयोजित होता है। इस दौरान दरगाह परिसर के भीतर कई कव्वाली समारोह आयोजित किए जाते हैं और उनमें शिरकत करना वास्तव में एक रूहानी एहसास है।

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