यह 600 वर्षों पुराने शहर के प्राचीनतम एवं विशाल द्वारों में से एक तीन दरवाज़ा का निर्माण सुल्तान अहमद शाह द्वारा 1415 ईस्वीं में किया गया था, जिसने अहमदाबाद शहर की स्थापना की थी। यह इस्लामी वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है, सुंदर नक्काशी वाला यह भद्रा किले का प्रवेशद्वार है। ऐसा माना जाता है कि मुग़ल शासक जहांगीर अपनी रानी नूरजहां के साथ इस शाही द्वार से होकर गुज़रता था। वह उस जुलूस को देखने आया करते थे, जो यहां से जामा मस्जिद तक जाता था। 
तीन दरवाज़ा बेहद उत्कृष्ट संरचना है और इसका शाब्दिक अर्थ तीन द्वार होता है। इन तीन दरवाज़ों में बीच का दरवाज़ा ऊंचा है। तीन दरवाज़ा संरचना के आकर्षण में अर्ध-वृक्राकार एवं जाली के काम वाली खिड़कियां हैं। बीच में बनी खिड़की पर जीवन रूपी वृक्ष तथा सर्पों से ढके ताड़ के पांच पेड़ बने हुए हैं।
किंवदंती के अनुसार, धन की देवी लक्ष्मी जब शहर छोड़कर जाने लगीं तब यहां के चौकीदार ख़्वाजा सिद्दिकी कोतवाल ने उनसे निवेदन किया कि जब तक सम्राट अहमद शाह को सूचित नहीं कर दिया जाता, तब तक वह शहर छोड़कर न जाएं। लक्ष्मी मान गईं कि जब तक वह लौटकर नहीं आता मैं यहां से नहीं जाऊंगी। कोतवाल कभी लौटकर नहीं आया, उसने अपना सिर कलम कर लिया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि देवी शहर छोड़कर कभी न जाएं और यहीं पर रहें। कोतवाल के इस त्याग के सम्मान में भद्रा किले के निकट उसका मकबरा बनाया गया। 600 वर्षों से भी अधिक समय से एक मुस्लिम परिवार तीन दरवाज़ा में से खुलने वाले एक द्वार के सामने अब भी एक दीया जलाता आ रहा है। यहां के निवासी फूल भी अर्पित करते हैं, जिनका मानना है कि देवी लक्ष्मी अब भी विद्यमान हैं। आगंतुक मराठा राज्यपाल चिमंजी रघुनाथ द्वारा प्रवेश द्वार पर लगाए गई महक्रवपूर्ण शाही अधिसूचना पढ़ सकते हैं, जिसमें पैतृक परिसंपक्रि में महिलाओं को समान अधिकार देने का समर्थन किया गया था। वास्तव में, रघुनाथ ने हिंदुओं व मुसलमानों दोनों का आ∫वान किया गया था कि वे महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करें। अहमदाबाद घूमने आए किसी भी व्यक्ति को विरासत की यह धरोहर अवश्य देखनी चाहिए। 

अन्य आकर्षण