मुग़ल शासक अकबर ने 1572 से 1585 ईस्वीं के बीच फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया था। इसके निर्माण हेतु लाल पत्थर का उपयोग किया गया था। ऐसा माना जाता है कि अकबर को पुत्र की चाह थी। इसके लिए वह सीकरी गए ताकि उन्हें सूफ़ी संत शेख सलीम चिश्ती का आशीर्वाद मिले। जल्दी ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई जिस कारण से उन्हें अपनी राजधानी यहीं बनाने की प्रेरणा मिली। उसने यहां पर सुंदर मस्जिद एवं अपनी तीन पसंदीदा रानियोंः मुसलमान, हिंदू एवं ईसाई के लिए तीन महल भी बनवाए। उसने इस शहर का नाम फतेहपुर सीकरी’ रखा जिसका मतलब ‘जीत का शहर’ होता है। अकबर ने अपने पुत्र का नाम भी संत के नाम पर सलीम रखा था जिनके आशीष से उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी। 

चट्टान की चोटी पर बनी फतेहपुर सीकरी का स्थानीय लोकगाथाओं में प्रमुखता से उल्लेख मिलता है। एक कथा के अनुसार, अकबर द्वारा इसे राजधानी बनाने से बहुत पहले मुग़ल शासक बाबर ने इस शहर का नाम ‘शुक्री’ रखा, जो स्थानीय निवासियों की अभिस्वीकृति के लिए था जिन्होंने राणा संग्राम सिंह के विरुद्ध खानवा के संघर्ष में जीत के लिए उसकी मदद की थी। उसके पौत्र, सम्राट अकबर ने कई वर्षों पश्चात गुजरात को अपने अधीन करने पर बुलंद दरवाज़ा बनवाया तथा इस शहर को यह नाम दिया।     

फतेहपुर सीकरी में बने अनेक स्मारक जो धार्मिक तथा धर्मनिरपेक्ष महत्व के हैं, उनसे संबंधित अनेक कहानियां एवं मध्ययुगीन किस्से प्रसिद्ध हैं। उदाहरण के लिए, एक स्मारक जो आंख-मिचौली कहलाता है, ऐसा माना जाता है कि यहां पर राजा अपनी रानियों के साथ आंख-मिचौली का खेल खेला करता था। इसके पास ही बलुआ पत्थर से बन एक बड़ा सा आंगन बना है, जिसका नाम एक अन्य खेल पचीसी पर रखा गया था। यह खेल जो चौसर की बिसात पर कौड़ियों द्वारा खेला जाता है। दंतकथा के अनुसार, मुग़ल सम्राट यह खेल महिलाओं के साथ खेला करता था जो खानों में खड़ी रहती थीं। जामा मस्जिद, जो भारत में बनीं सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है, जिसमें इरानी स्थापत्य तत्वों को आत्मसात किया गया था। इसका निर्माण मुग़ल शासक शाहजहां की पुत्री जहांआरा बेग़म द्वारा 1648 ईस्वी में कराया गया था। इसके साथ ही बुलंद दरवाज़ा बना हुआ है। फतेहपुर सीकरी में बने अन्य स्मारकों में दीवान-ए-ख़ास, जोधाबाई का महल, मरियम का महल, बीरबल का महल, तुर्की के सुल्तान का आवास तथा पंचमहल प्रमुख हैं। पंचमहल चार मंज़िला स्तंभ संरचना था, कहते हैं कि यहां से शासक एवं उसकी रानियां दरबार के प्रसिद्ध गायक तानसेन की प्रस्तुति देखा करते थे।   

सलीम चिश्ती का मकबरा, जो फतेहपुर सीकरी के किस्सों के केंद्र में स्थित है, लाल बलुआ पत्थर के बीच में सफेद संगमरमर से बना यह मकबरा मरु उद्यान की भांति लगता है जो सैकड़ों पर्यटकों को आकर्षित करता है। अब भी अनेक श्रद्धालुओं की श्रद्धा एवं आस्था उनमें बरकरार है जो ‘मन्नत’ मांगने दूर-दराज से यहां आते हैं। वे इस उम्मीद ये यहां पर हर एक इच्छा के लिए एक धागा बांधते हैं कि सूफ़ी संत उनको आशीष देंगे और उनकी मन्नत पूरी होगी। शेख सलीम चिश्ती की पुण्यतिथि ‘उर्स’ कहलाती है। इस अवसर पर यहां समारोह का आयोजन किया जाता है जिसमें हिस्सा लेने विश्व भर से श्रद्धालुगण यहां आते हैं। 

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