हरे-भरे धान के खेतों के मध्य, दक्षिण त्रिपुरा के बेलोनिया उपखंड में स्थित पिलक एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह अपने पुरातात्विक अवशेषों और कलाकृतियों के रूप में विख्यात मूर्तियों, नक्काशी के काम, पत्थर के स्तूपों व टेराकोटा की सजीली पट्टियों के लिए प्रसिद्ध है, जो पहाड़पुर और मैनमाटी से बरामद की गई ढलवाँ पट्टियों के सदृश हैं। यह सभी कलारूप 8 वीं और 9 वीं शताब्दी के इतिहास की याद दिलाते हैं। छवियों के चित्रण तथा मूर्तियों के शिल्प में पालन की जाने वाली शैलियों में बंगाल के पलास और गुप्त, अराकान और म्यांमार की मूर्तिकला और स्थापत्य शैली की छटा दिखाई देती है। पिलक त्रिपुरा के इतिहास का एक महत्वपूर्ण घटक है और हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों का सुंदर मिलन प्रदर्शित करता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की एक टीम ने साठ के दशक के अंत में यहाँ एक खुदाई के दौरान ईंट से बने स्तूपों का पता लगाया था और तब से यह स्थल उनकी देखरेख में है।

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