वसंत ऋतु के आते ही भारत का परिदृष्य बहुत ही मनभावन हो जाता है। सुंदर फूल पूरी तरह से खिल उठते हैं। ऐसा लगता है मानो  धरती पर हरा कालीन बिछ गया है। समस्त वातावरण में कायाकल्प अथवा स्फूर्ति जागृत करने वाली तरंगें उठने लगती हैं। कड़ाके की ठंडी के बाद गर्म जलवायु वाले इलाकों में चलने वाली ठंडी बयार आपको सुखद अहसास कराएगी। जैसा कि आप आने वाले सीजन के लिए अपनी यात्रा के कार्यक्रम बना रहे हैं, ऐसे में हम आपको ऐसी 10 बेहतरीन जगहों के बारे में बता रहे हैं, जो आपकी छुट्टियों को यादगार बनाने में कारगर साबित होंगी। 

फूलों की घाटी, उत्तरखंड
पृष्ठभूमि में षानदार जंस्कर पर्वत श्रृंखला के साथ तथा यूनेस्को द्वारा घोषित विष्व विरासत स्थल, यह फूलों की घाटी लगभग 11,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। देखने में यह घाटी किसी कलाकार द्वारा कैनवस पर बनाई गई सुंदर चित्रकारी की भांति लगती है। इस घाटी को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो वसंत में रंगों की मनमोहक छटा बिखरी पड़ी है। साथ ही बर्फीली पर्वत चोटियां और सफेद हिमनद मनोहारी दृष्य प्रस्तुत करते हैं। यह घाटी हिमालय पर्वतमाला, जंस्कर और पष्चिमी और पूर्वी हिमालय के परिवर्तन बिंदु के बीच में स्थित है। फूलों की घाटी पुष्पावती धारा द्वारा निर्मित है। यहां पर फर्न की लोकप्रिय प्रजातियों के अलावा, छोटा आईरिस, छोटा लार्कसपूर, छोटा बुरुंष, छोटा प्रिम्युला, हिमालयी नीला खसखस का फूल तो देखने को मिलते हैं। साथ ही यहां पर हज़ारों प्रकार की झाड़ियां, ऑर्किड और पौधे भी विभिन्न रंगों में पाए जाते हैं। अंग्रेज़ पर्वतारोही फ्रैंक स्माइथ ने सन् 1931 में इस खूबसूरत जगह की खोज उस समय की थी, जब वह माउंट कामेट अभियान पूरा करके लौट रहा था।

 इस अलौकिक जगह तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को एक लोकप्रिय ट्रैक से होकर गुज़रना पड़ता है। अद्भुत परिदृष्यों से परिपूर्ण इस मार्ग पर उन्हें दुर्लभ और अनोखी हिमालयी वनस्पतियों को देखने का मौका मिलता है। लंबी यात्रा करने वाले उत्साही लोगों को अपेक्षाकृत कठिन ट्रैक पर चलने के पुरस्कार के रूप में कई झरने, धाराएं एवं फूलों सहित घास के मैदान देखने को मिलते हैं, जो इस इलाके के कोने-कोने में व्याप्त हैं।
करने लायक कार्यः फोटोग्राफ़ी, ट्रैकिंग, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान जाएं, नेचर वाॅक का आनंद लें I

मुन्नार, केरल
पष्चिमी घाटों के भव्य निचले पर्वतों और चाय, कॉफी एवं मसालों के असीम बागानों से घिरे हुए हरियाली से प्रचुर गलीचे के साथ केरल में मुन्नार प्रकृति का स्वर्ग है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप मुन्नार में कहां जाते हैं, चाय, कॉफी और इलायची की मिश्रित खुषबू आपका पीछा करती रहेगी। और जहां कहीं भी आप देखेंगे, आप प्रकृति के उपहार से अभिवादन प्राप्त करेंगे। परिदृष्य की हरियाली के असंख्य रंगों की सुंदरता ऐसी है कि मुन्नार को अक्सर दक्षिण भारत का कष्मीर कहा जाता है। मुद्रपुझा, नल्लाथंबी और कुंडला नदियों के संगम पर स्थित, मुन्नार का षाब्दिक अर्थ तीन नदियां है। वनस्पतियों और पषुओं की बहुतायत से परिपूर्ण अपने राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के साथ मुन्नार एक प्राणिपोषक प्राकृतिक आभूषण है। मेघों से भरा आसमान, लगातार सुहावना मौसम, मनोरम व्यंजन और पहड़ियो एवं हरियाली के साथ यह दैनिक जीवन की अव्यवस्थाओं और इसके सभी तनावों से राहत प्रदान करता है। यहां प्रत्येक 12 वर्ष पर आकर्षक और दुर्लभ नीलकुरिंजी फूल खिलते हैं। इस कारण से मुन्नार षहर एवं उसके आसपास की पहाड़ियां, किसी कलाकार द्वारा बनाई गई संदर चित्रकारी में रूपांतरित हो जाते हैं। जैसे ही नीले और बैंगनी रंग भूमि को ढक देते हैं, यह षहर जन्नत के समान दिखने लगता है।मुन्नार 2,695 मीटर की ऊंचाई पर दक्षिण भारत की सबसे ऊंची चोटी अनामुडी पर स्थित है। इस चोटी पर कई पगडंडियां हैं, जो इस पर चढ़ाई करने वाले यात्रियों और बैकपैकर्स के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। बेंगलुरू, कोच्चि, मैसूर और अन्य बड़े षहरों से मुन्नार अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। पूरे वर्ष यात्री बड़ी संख्या में मुन्नार आते हैं, वे वर्षा के मौसम में भी आते हैं, जब मुन्नार अपने बेहतरीन स्वरूप में होता है तथा चारों ओर सुगंध व्याप्त होती है।
करने लायक कार्यः चाय व काॅफी के बागान की सैर, नेचर वाॅक का आनंद लें, फोटोग्राफ़ी, राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीव अभयारण्य जाएं, अनामुडी चोटी की चढ़ाई करें

वायनाड, केरल
वायनाड षहर कॉफी, इलायची और चाय बागानों से भरा हुआ है। इन बागानों की हरियाली से यहां की भूमि ढकी रहती है। यहां से छनकर आती सुगंधित हवा से यह क्षेत्र महकता रहता है। वायनाड केरल राज्य की सबसे सुंदर जगहों में से एक है। दक्षिणी पठार के सुदूर दक्षिणी छोर पर स्थित वायनाड घने जंगलों से घिरा हुआ है। यह यूनेस्को द्वारा संरक्षित विष्व के 20 बायोस्फीयर रिज़र्व में से एक है। पड़ोसी राज्यों के एक पुल से वायनाड की पहाड़ियां बांदीपुर (कर्नाटक) और मुदुमलाई (तमिलनाडु) के विस्तृत भूभाग से जुड़ी हुई हैं। इस कारण से क्षेत्र के वन्यजीवों को यहां अपने प्राकृतिक परिवेष में विचरण करने में काफी मदद मिलती है। कल-कल करती धाराएं, षांत झीलें और झरनों से भरा हुआ यह षहर उत्सुक यात्रियों के लिए एक आदर्ष पिकनिक स्थल है। एडवेंचर चाहने वाले यहां माउंटेन बाइकिंग, कैम्पिंग, ट्रैकिंग, स्पीड बोटिंग, जोर्बिंग और जिप्लिंग का आनंद ले सकते हैं। वहीं वन्यजीवों में रुचि रखने वाले लोग वाइल्ड लाइफ सफारी, जंगल की सैर अथवा ट्री हाउस में ठहरने का भरपूर आनंद ले सकते हैं। प्रसिद्ध एडक्कल गुफाएं, जहां मानव सभ्यता के सबसे पुराने अवषेष चिह्न संरक्षित हैं, वे भी वायनाड में ही हैं। मैसूर, बंगलुरू, कन्नूर, ऊटी और कुर्ग जैसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल वायनाड के बेहद निकट हैं।
करने लायक कार्यः वायनाड वन्यजीव अभयारण्य जाएं, बानासुरा सागर बांध जाएं, बैम्बू राफ्टिंग का आनंद लें, एडक्कल गुफाएं देखने जाएं, बोटिंग, कैम्पिंग, ट्रैकिंग, खेतों की सैर करें


मोन, नागालैंड
नागालैंड का खूबसूरत षहर मोन, मछली पकड़ने के षौकीनों और ट्रैकिंग प्रेमियों के लिए रोमांच से भरपूर जगह है। कोनयाक नागाओं की  धरती के नाम से जाना जाने वाला मोन, प्रकृति प्रेमियों और रोमांच में रुचि रखने वाले सैलानियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां पारंपरिक षैली में बनी इमारतें एकदम से ध्यानाकर्षित करती हैं। साथ ही प्राचीन मूर्तियां कोनयाक इतिहास और सभ्यता की कहानी बयां करती हैं। मोन पर्वत की सबसे ऊंची वेद चोटी से ब्रह्मपुत्र नदी और म्यांमार की छिंदविन नदी का भव्य नज़ारा देखने को मिलता है। यहां बसा लोंगवा गांव, म्यांमार तक जाने का सबसे नजदीकी पड़ाव है क्योंकि भारत-म्यांमार सीमा इसी गांव से होकर गुज़रती है। मोन में षांगन्यु और छई नामक दो गांव हैं। जातीय गांव घोषित होने के कारण षांगन्यु और छई में मनुष्य जाति विज्ञान षोधकर्ताओं को अनुसंधान के कई अवसर प्राप्त होते हैं।
करने लायक कार्यः वेद चोटी पर ट्रैकिंग करें, भारत-म्यांमार सीमा पर जाएं, जातीय गांव षांगन्यु और छइ देखने जाएं, नेचर वाॅक का आनंद लें 

ट्यूलिप गार्डन, श्रीनगर 
ट्यूलिप गार्डन डल झील के किनारे पर जबरवान पर्वत श्रृंखला की तलहटी में स्थित है। इंदिरा गांधी ट्यूलिप गार्डन हरियाली की एक सुंदर विस्तार है। 30 एकड़ में फैला, यह एषिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन है। आमतौर पर इसे सिराज़ बाग के नाम से जाना जाता है। ट्यूलिप की 60 से अधिक किस्मों के लाखों पौधे यहां पर देखने को मिलते हैं। साथ ही यहां पर डैफोडिल, हाइकिंथस (जलकुम्भी) और रेननकुलस जैसे पौधों की भी कई प्रजातियां देखी जा सकती हैं। हर साल वसंत के मौसम की षुरुआत के साथ यहां ट्यूलिप महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसमें फूलों की कई प्रजातियों का प्रदर्षन किया जाता है। इसका आरंभ 2017 में हुआ था। यह महोत्सव 1 अप्रैल से 15 अप्रैल के बीच एक पखवाड़े तक चलता है। यह खूबसूरत उद्यान तीन ओर से डल झील, निषात बाग और चष्मा षाही से घिरा हुआ है।
करने लायक कार्यः ट्यूलिप महोत्सव में हिस्सा लें, फोटोग्राफ़ी, ट्यूलिप की अनेक प्रजातियों के बारे में जानें

युमथांग घाटी,
सिक्किम वसंत में यहां पर रंगों की बहार चारों ओर बिखर जाती है। देष में बहुत कम ऐसे स्थल हैं, जो युमथांग में पूरे वर्ष छाए रहने वाली प्राकृतिक छटा का मुकाबला कर सकें। फूलों की घाटी के रूप में भी प्रसिद्ध युमथांग घाटी, मनोरम सुंदरता के बीच वनस्पतियों और वन्यजीवों का एक षानदार मिश्रण है। वसंत के मौसम में जब फूल खिलते हैं, तो घाटी विभिन्न प्रकार के रोडोडेंड्रोन और प्राइमल्स के साथ जीवंत हो उठती है। ये फूल घाटी में अलग-अलग रंग प्रदान करते हैं, जिसे देखकर ऐसा लगता है मानो किसी कलाकार ने कैनवास पर चित्रकारी की हो। षिंगबा रोडोडेंड्रोन अभयारण्य देखने लायक जगह है, जहां रोडोडेंड्रोन फूलों की 20 से अधिक प्रजातियां देखने को मिलती हैं। वसंत में, जब ये फूल खिलते हैं, तो लाल, बैंगनी और गुलाबी रंग के चमकीले रंग घाटी को रंग देते हैं। विषाल बर्फ से ढके पहाड़ों के सामने वह दृष्य अद्भुत लगता है। अभयारण्य जाने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से मई तक होता है, जब फूल पूरी तरह खिल जाते हैं।
युमथांग नदी के दाईं ओर एक गर्म पानी का झरना है, जो पर्यटकों के बीच समान रूप से लोकप्रिय है। हरे-भरे पहाड़ों से घिरी सपाट घाटी और अल्पाइन घास के मैदानों से बहती हुई युमथांग नदी के दृष्य मंत्रमुग्ध कर देने वाले हैं। आप नदी में चल सकते हैं, इसके किनारे बैठ सकते हैं और इसकी सुंदरता का आनंद ले सकते हैं। 3,597 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, युमथांग सिक्किम के उत्तर में स्थित है, जो लाचुंग से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। यहां जाने का उत्तम समय फरवरी और मार्च के बीच का है, जब लोसार के लोकप्रिय बौद्ध उत्सव का आयोजन किया जाता है।
करने लायक कार्यः नेचर वाॅक का आनंद लें, षिंगबा रोडोडेंड्रोन अभयारण्य जाएं, गर्म पानी के झरने देखने जाएं, लोसार महोत्सव में हिस्सा लें

दार्जिलिंग
पष्चिम बंगाल में दार्जिलिंग का विलक्षण पर्वतीय स्थल, पन्ना की भांति हरे ग्रीन टी प्लांटेषन के विस्तृत खंडों के साथ ढलुआ पहाड़ी रिज पर फैला हुआ लोकप्रिय यात्रा गंतव्य है। यहां सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी राजसी कंचनजंगा या खंगचेंद्जोंगा है। कंचनजंगा पर होने वाले षानदार सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के लिए पर्यटक पास की चोटियों पर जाते हैं। दार्जिलिंग में औपनिवेषिक युग की वास्तुकला के अवषेष आज भी विद्यमान हैं जो अपने आप में आकर्षण के केंद्र हैं। षहर देखने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक 140 साल पुरानी दार्जिलिंग हिमालयन रेल की सवारी करना है। यह हिल स्टेषन और उसके आसपास के सबसे विस्मयकारी  परिदृष्यों से होकर गुज़रती है। एडवेंचर में रुचि रखने वालों के लिए भी यह षहर आकर्षण का केंद्र है। ये लोग सिंगालीला रिज पर ट्रैकिंग कर सकते हैं अथवा माउंटेन बाइक पर क्षेत्र की यात्रा सकते हैं। पर्यटक स्थानीय संस्कृति के बीच षहर के अतिव्यस्त बाज़ारों में एक यादगार अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। दस्तकारी उत्पादों से लेकर तिब्बती स्मृति चिह्न तक, यहां बहुत कुछ उपलब्ध है।
करने लायक कार्यः चाय के बागान की सैर कर सकते हैं, षानदार कंचनजंगा चोटी देखने जाएं और वहां पर अद्भुत सूर्योदय व सूर्यास्त देखें, 140 वर्षों पुरानी दार्जिलिंग हिमालयन रेल की सवारी करें, सिंगालीला रिज पर ट्रैकिंग करें, माउंटेन बाइकिंग करें, स्थानीय बाज़ार घूमें

कलिम्पोंग
घोड़े की काठी के आकार के टीले और घुमावदार तीस्ता नदी की सुंदरता को खुद में समेटे पष्चिम बंगाल स्थित कलिम्पोंग हिल स्टेषन इस क्षेत्र के लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है। बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा और विष्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा को अपने षिखर पर लिए कलिम्पोंग अपने प्राकृतिक सौंदर्य और औपनिवेषिक आकर्षण से सैलानियों को ख़ूब आकर्षित करता है।
सिलिगुड़ी से लगभग 65 किलोमीटर दूर स्थित, कलिम्पोंग अपने बौद्ध मठों, तिब्बती हस्तषिल्प और पुराने गिरिजाघरों के लिए जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब यहां की स्थानीय लेपचा जनजाति के पुरुष खेती के कामों से व्यस्त नहीं रहते थे तब वे लोग तरह-तरह के खेल खेला करते थे। इसी कारण से इस जगह हो ‘कलिम्पोंग’ नाम मिला, जिसका षाब्दिक अर्थ है - टीला, जहां हम खेलते हैं।
करने लायक कार्यः कंचनजंगा चोटी देखने जाएं, बौद्ध मठ देखने जाएं, अनोखे गिरिजाघर देखें, तिब्बती हस्तषिल्प ख़रीदें

जैसलमेर, राजस्थान
षहद की रंगत लिए हुए रेतीली पहाड़ियों की श्रृंखला, विषाल बंजर विस्तार, विपरीत रंग और सम्मोहक ऐतिहासिक खज़ाने, राजस्थान के जादुई षहर जैसलमेर की सम्मोहक सुंदरता का प्रतीक है। षहर के बीचोंबीच जैसलमेर का किला है, जो अब भी आबाद है। रेगिस्तान में ऐसा लगता है जैसे कोई मृगतृष्णा उभर आई हो और ऐसा लगता है जैसे वह सूरज की किरणों में नहाकर जल उठा हो। 99 बुर्जों से घिरा यह परीकथा जैसा किला आप को अपनी षान-ओ-षौकत से अपने वष में कर लेता है। दूर तक फैला हुआ यह राजस्थान का षहर अपने बारीकी से तराषे हुए मंदिरों, संकरी गलियों, और आनंदमय वातावरण के कारण पूरे विष्व के सैलानियों को आकर्षित करता है, जिसे ऊंट की सवारी के जरिये रहस्यमय रेगिस्तान के बीच तलाष किया जा सकता है।
जैसलमेर का इतिहास प्रागैतिहासिक युग तक फैला हुआ है, जो अकाल जंगल के जीवाष्म पार्क में संरक्षित किया गया है। तनोट माता मंदिर के दर्षन करने अवष्य जाएं जो भारत-पाकिस्तान की सीमा के निकट स्थित है। इसे 1965 के युद्ध के दौरान प्रसिद्धि मिली थी, जब एक बम जो इसके पास गिरा था और वह फटा नहीं था। इसे फिल्म “बाॅर्डर” में भी दिखाया गया था।जैसलमेर अपनी लकड़ी की नक्काषी, स्थानीय कलाकारी और षानदार संपन्न सांस्कृतिक विरासत के लिए भी जाना जाता है।
करने लायक कार्यः जैसलमेर किला देखने जाएं, अकाल जंगल का जीवाष्म पार्क देखने जाएं, तनोट माता मंदिर के दर्षन करें, पारंपरिक हस्तषिल्प ख़रीदें, सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लें, डेजर्ट सफारी करें, गढ़ीसर झील देखने जाएं

कसौली, हिमाचल प्रदेष
बर्फ से ढकी षिवालिक पहाड़ियों वाला कसौली हिमाचल प्रदेष का एक सुंदर पर्यटन स्थल हैै। इसे वर्ष 1842 में सेना की छावनी के रूप में स्थापित किया गया था। इसका पुराना जादू आज भी बरकरार है। सुरम्य वाटिकाओं और ब्रिटिष कालीन बंगलों, षांत चर्च, छोटी दुकानों, पत्थरों से बने टेढ़े-मेढ़े रास्तों, बलूत और देवदार के पेड़ों से घिरा कसौली वह स्थल है, जहां औपनिवेषिक कहानियां वास्तविकता में बदल जाती हैं। पर्यटक यहां इन ब्रिटिष कालीन बंगलों में रहकर इस समृद्ध विरासत का अनुभव कर सकते हैं। अब इन बंगलों को होटलों या होमस्टे में बदल दिया गया है। यहां के हरे-भरे पहाड़ों में भांति-भांति के पषु-पक्षी पेड़-पौधे और वनस्पतियां पाई जाती हैं।लोक कथाओं के अनुसार कसौली का नाम कसूल नामक पहाड़ियों में पाए जाने वाले एक फूल से पड़ा है। वसंत में ढलानों पर इन फूलों का कालीन बिछ जाता है।
करने लायक कार्यः टिम्बर ट्रेल तक जाने वाली केबल कार की सवारी करें, माॅल में ख़रीदारी करें, सनसेट पाॅइंट देखने जाएं, नेचर वाॅक का आनंद लें, फोटोग्राफ़ी करें, अनोखे चर्च देखें, औपनिवेषिक वास्तुषिल्प का अवलोकन करें